इस दुनिया को बचा लीजिए…कोई मज़हब, जो दुनिया नहीं बचा पाया…वो किसी काम का नहीं होगा…याद रखिएगा…

मयंक सक्सेना

पिछली रात, हम कैब लेकर कहीं जा रहे थे…कैब में से मैं उतर कर एटीएम तक गया…इसी बीच में मुहम्मद नोमान खान का नाम 3-4 बार सुन चुके, कैब ड्राइवर (नाम नहीं लूंगा, पर बाक़ायदा दाढ़ी और टखने तक पायजामे वाले पक्के मोमिन थे…कॉलर ट्यून भी उसी हिसाब से थी…) उन्होंने नोमान से बेहद खराब (व्यंग्य और तल्खी) लहजे में पूछा…

“क्या नोमान भाई, कैसे मुसलमान हैं आप…हिंदू के साथ कैसे रह रहे हैं….”

मैं साथ में ये भी लिख दूं कि इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ…मेरे कैब ड्राइवर्स संयोगवश अमूमन मुस्लिम ही होते हैं और मुंबई में मैं और नोमान आमतौर पर साथ….यही नहीं हम हर रोज़ तमाम मुस्लिम और वो भी बेहद धार्मिक साथियों (ज्ञात और अनजान) से मिलते हैं…पर ये सवाल आएगा, ये हम सोच भी नहीं सकते थे…

मेरे कैब में लौटते ही, नोमान ने अपने गुस्से को दबाते हुए, तंज़ में कहा….

‘भाई पूछ रहे थे कि कैसे मुसलमान हो…हिंदू के साथ रहते हो…’

वो जब तक हड़बड़ाते मैंने कह दिया…

‘आपको पता है क्यों रहते हैं हम साथ…क्योंकि हिंदुस्तान का सपना बचाना है तो हिंदू-मुस्लिम को साथ रहना होगा…साथ होते तो ये दौर आता ही नहीं…’

न उनको नोमान से इस प्रतिक्रिया और तुरंत मुझसे बोल देने की उम्मीद थी…न ही हम दोनों की मुस्कुराती विनम्रता की…उन्होंने बात बदली और मेरी उर्दू की तारीफ़ करने लगे…और फिर पूरे रास्ते हम तमाम चीज़ों पर बात करते रहे…

कल रात से इस सवाल ने बेचैन किया हुआ है…और डर भी है कि दोनों ओर का कट्टरपंथ हमको क्या बनाएगा…हिंदुओं के तौर पर हमारे ही बीच के कुछ लोगों और इस देश की सत्ता में बैठी पार्टी ने जो माहौल बनाया है…वो इसे और बिगाड़ेगा…साथ ही कुछ मुस्लिम कट्टर मूर्ख उलेमाओं, उपदेशकों की मूर्खता, इसे और बिगाड़ती जाएगी…लेकिन मैं हूं तो नोमान भी है…और मेरे और आपके आस-पास कितने ही बेहतर और समझदार लोग…

जो हमने कल किया, उसे हम बिल्कुल उल्टा कर के भी देख सकते हैं…मुझसे तमाम दूर के रिश्तेदारों ने ये ही बात बोली है…और वो बेहद पढ़े-लिखे अंग्रज़ीदां लोग हैं…किसी मुस्लिम ने ये बात पहली बार ही बोली…इस बात को लिखना बहुत ज़रूरी था…क्योंकि ये नहीं लिखा कहा जाएगा, तो ऐसे लोगों की तादाद बढ़ेगी…ये भी समझना होगा कि इन सबसे संवाद करना होगा…जैसे मैं और नोमान और बाकी कई साथी भी कोशिश कर रहे हैं…पर ऐसी घटनाओं को सामने रखना होगा…ये याद रखना होगा कि एक ओर का कट्टरपंथ, दूसरी ओर के कट्टरपंथ का ख़ाद-पानी है…

हम को बहुत बदलना होगा…हमको बहुत बात करनी होगी…हमको बहुत प्यार करना होगा…किसी से नफ़रत हो, तो उससे भी…सबसे मुश्किल वक़्त में भी…हमको ढेर सारे नए दोस्त बनाने होंगे…और कोई रास्ता नहीं है….

और हां, रात को लौटते वक़्त भी हमको शहबाज़ ने घर पहुंचाया, जो कल पहली बार कैब चलाने निकला था…और हमारे निकलते वक्त उसे बेस्ट ऑफ लक कहने पर वो भावुक था…

इस दुनिया को बचा लीजिए…कोई मज़हब, जो दुनिया नहीं बचा पाया…वो किसी काम का नहीं होगा…याद रखिएगा…

मयंक सक्सेना

( मयंक गायक है , नाटककार है , अभिनेता है , पत्रकार है । वे सारे औजारों से लैस है जो वर्तमान कठिन समय में जनयुद्ध के लिए इश्तेमाल हों , वे जुझारू साथियों के साथ जनवादी बैंड व एक पोर्टल भी चलाते हैं )

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