26 मई काला दिवस छत्तीसगढ

कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ पूरे प्रदेश में ‘काला दिवस’, जले मोदी सरकार के पुतले, किसान संगठनों ने लिया राज्य सरकार को भी निशाने में, कहा : नहीं टिक सकती किसानों-आदिवासियों से टकराव लेने वाली कोई सरकार

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन और छत्तीसगढ़ किसान सभा के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा बनाये गए तीन किसान विरोधी कानूनों और चार मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं को निरस्त करने और सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बनाने, कोरोना महामारी से निपटने सभी लोगों को मुफ्त टीका लगाने तथा ग्राम स्तर पर बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने, गरीब परिवारों को मुफ्त राशन और नगद सहायता देने आदि प्रमुख मांगों पर आज प्रदेश में सैकड़ों गांवों में काले झंडे फहराए गए तथा मोदी सरकार के पुतले जलाए गए। माकपा सहित प्रदेश की सभी वामपंथी पार्टियों और सीटू सहित अन्य ट्रेड यूनियनों व जन संगठनों के कार्यकर्ता भी इस आंदोलन के समर्थन में आज सड़कों पर उतरे।

मोदी सरकार के कृषि विरोधी कानूनों के खिलाफ प्रदेश में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के बैनर तले 20 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं और कोरबा, राजनांदगांव, सूरजपुर, सरगुजा, दुर्ग, कोरिया, बालोद, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही, बिलासपुर, धमतरी, जशपुर, बलौदाबाजार व बस्तर सहित 20 से ज्यादा जिलों के सैकड़ों गांवों-कस्बों में, घरों और वाहनों पर काले झंडे लगाने और मोदी सरकार के पुतले जलाए जाने की खबरें आ रही हैं। लॉक डाऊन और कोविद प्रोटोकॉल के मद्देनजर अधिकांश जगह ये प्रदर्शन 5-5 लोगों के समूहों में आयोजित किये जा रहे हैं।I

आज यहां जारी एक बयान में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के संयोजक सुदेश टीकम और छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते ने इस सफल आंदोलन के लिए किसान समुदाय और आम जनता का आभार व्यक्त किया है और कहा है कि देश और छत्तीसगढ़ की जनता ने इन कानूनों के खिलाफ जो तीखा प्रतिवाद दर्ज किया है, उससे स्पष्ट है कि इन जनविरोधी कानूनों को निरस्त करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। किसान संघर्ष समन्वय समिति के कोर ग्रुप के सदस्य हन्नान मोल्ला ने भी प्रदेश में इस सफल आंदोलन के लिए किसानों, मजदूरों और आदिवासियों को बधाई दी है।

आंदोलन की सफलता का दावा करते हुए इन संगठनों ने आरोप लगाया है कि इन कॉर्पोरेटपरस्त और कृषि विरोधी कानूनों का असली मकसद न्यूनतम समर्थन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश मे खाद्य तेलों की कीमतों में हुई 50% से ज्यादा की वृद्धि का इन कानूनों से सीधा संबंध है। ये कानून व्यापारियों को असीमित मात्रा में खाद्यान्न जमा करने की और कंपनियों को एक रुपये का माल अगले साल दो रुपये में और उसके अगले साल चार रुपये में बेचने की कानूनी इजाजत देते हैं। इन कानूनों के बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कालाबाज़ारी और जमाखोरी बढ़ गई है और बाजार की महंगाई में आग लग है। इसलिए ये किसानों, ग्रामीण गरीबों और आम जनता की बर्बादी का कानून है।

किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं ने बताया कि कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ भी छत्तीसगढ़ के किसान आंदोलित हैं और उन्होंने आज सुकमा जिले के सिलगेर में आदिवासी किसानों पर की गई गोलीबारी का विरोध करते हुए इसकी उच्चस्तरीय न्यायिक जांच कराने और दोषी अधिकारियों को दंडित करने की भी मांग की है। वनोपजों की सरकारी खरीदी पुनः शुरू करने और आदिवासी किसानों को व्यापारियों-बिचौलियों की लूट से बचाने का मुद्दा भी आज के किसान आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा था। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेटों की तिजोरी भरने के लिए देश के किसानों से टकराव लेने वाली कोई सरकार टिक नहीं सकती।

(छत्तीसगढ़ किसान आन्दोलन की ओर से सुदेश टीकम, संजय पराते , आलोक शुक्ला, रमाकांत बंजारे, नंदकुमार कश्यप, आनंद मिश्रा, दीपक साहू, जिला किसान संघ (राजनांदगांव), छत्तीसगढ़ किसान सभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (कोरबा, सरगुजा), किसान संघर्ष समिति (कुरूद), आदिवासी महासभा (बस्तर), दलित-आदिवासी मजदूर संगठन (रायगढ़), दलित-आदिवासी मंच (सोनाखान), भारत जन आन्दोलन, गाँव गणराज्य अभियान (सरगुजा), आदिवासी जन वन अधिकार मंच (कांकेर), पेंड्रावन जलाशय बचाओ किसान संघर्ष समिति (बंगोली, रायपुर), उद्योग प्रभावित किसान संघ (बलौदाबाजार), रिछारिया केम्पेन, आदिवासी एकता महासभा (आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच), छत्तीसगढ़ प्रदेश किसान सभा, छत्तीसगढ़ किसान महासभा, परलकोट किसान कल्याण संघ, वनाधिकार संघर्ष समिति (धमतरी), आंचलिक किसान संघ (सरिया) आदि संगठनों की ओर से जारी संयुक्त विज्ञप्ति)

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