कोरोना काल में घर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार की समस्या फिर से करने लगे है पलायन

रिपोर्ट लीलाधर निर्मलकर

भूमकाल समाचार भानुप्रतापपुर -जिन आंखों ने कुछ कर गुजरने के सपने देखे थे, आज वो आंसुओं से नम हैं। उम्मीदों की इमारत आज ढहने लगी हैं। कोरोना महामारी ने रोजगार के साथ ही दो वक्त का निवाला भी छीन लिया है। यह कहानी बस्तर संभाग के कांकेर जिले की उन हजारों मजदूरों की है जो दो वक्त की रोजी रोटी के लिए घर से सैकड़ों हजारों किलोमीटर दूर मेहनत मजदूरी करने गए थे। देश में कोरोना महामारी के चलते अचानक लगाए लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा दिक्कतो का सामना करना पड़ा है । जब उन्हें पता चला कि जिस फैक्ट्री और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का चलता था वह ना जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है । तो ऐसे हालत में मजदूर घर लौटने को झटपट आने लगे । ट्रेन बस सब बंद थी घर का राशन भी खत्म होने की कगार में था जिन ठिकानों में रहते थे उनका किराया भरना बहुत मुश्किल हो रहा था । जो मेहनत मजदूरी कर पैसा कमाए थे अब ओ भी ना के बराबर पैसे पैसे बचे थे और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों का भरा पूरा परिवार था अब जो राह था ओ पैदा ही चलना था चलते-चलते घर पहुंच ही जाएंगे यह और तो भूखे मरेंगे ऐसे हालत में कुछ पैदल तो साइकिल पर तो कुछ तीन पहियों पर निकल पड़े जो कमाई का साधन था वह फासला तय करना था वह कोई 20-50 किलोमीटर कि नहीं बल्कि सैकड़ों हजारों किलोमीटर लंबी चलना था । कुछ ऐसे ही घटना छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल की कांकेर जिला की पश्चिम दिशा में बसी ग्राम बैजनपुरी की जहां की प्रवासी मजदूरों की है । जो वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चलती लगी लॉकडॉउन में फंसे होने के बाद जिस तरह से देश भर में सभी उद्योग फैक्टरी से लेकर कॉन्ट्रैक्शन साइड सभी तरह के काम धंधा बंद होने के बाद सबसे ज्यादा तकलीफों की सामना मजदूरों को करना पड़ क्योंकि मजदूरों की रोज़ी रोटी की एक मात्र जरिया भी लॉकडॉउन की भेट चढ़ गई जिसे पेट पालना मुश्किल हो गया था । जब पूरे देश में लॉक डॉउन के बाद सभी तरह की गाड़ी मोटर, ट्रेन चलना सब बंद हो गई थी ऐसे में मजदूरों को भारी परेशानी की सामना करना पड़ था। कुछ इसी तरह की समस्याओं की सामना ग्राम बैजनपुरी की प्रवासी मजदूरों ने की जिसमें से गजेन्द्र रावटे (वर्ष 44) ने बताया कि वह बैजनपुरी से 300 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिलांतर्गत ग्राम रामपुर में बिल्डिंग मिस्त्री की कार्य करते थे जब देश में लॉक डॉउन हुआ उसके ठीक एक माह पहले ही काम पर गए थे और लॉक डॉउन हो गया । जिस उम्मीद से काम की तलाश में गए थे उतना नहीं कमा सके आगे गजेन्द्र रावटे ने बताया कि लॉक डॉउन में काम ना चलने की वह से खाने के लिए चावल दाल नहीं बची थी । हालांकि कुछ कोल माईस और सरकार के तरह से सहयोग मिल जो नौ लोगों के लिए पर्याप्त नहीं थी । जब घर आना चाह तो और भी आवागमन की साधन और परमिशन की समस्या का सामना करना पड़ । ऐसे में बार बार तहसील की चक्कर काटना पड़ तब जा कर परमिशन कि कागज मिली थी । जो पूरी रास्ते सायकल से सफर करना पड़ था जहां खाने के नाम पर मात्र चिवड़ा ( फोहा ) ही पकड़े थे। तो वहीं गजेंद्र के साथ रहे डालेश्वर कोरेटिया , सुरेश यादव , और माखन कोरेटिया ने बताया कि वह सिर्फ काम पर गए 8 दिन ही हुए था । अचानक लॉक डॉउन होने से काम बंद हो गया और घर आने को भी पैसे भी नहीं रही । लॉक डॉउन के बाद अभी गजेन्द्र रावटे के पास लोकल ठेकेदारों के पास तो काम कर रहे है । पर जिसे गजेन्द्र रावटे संतुष्ट नहीं और वह अभी खुद की काम चालू करना चाहता है पर पैसा की कमी के कारण लोन लेना चाहता है पर लोन की के लिए लगातार कोशिश करने के बावजूद सरकारी कागजी में ही उलझ के रहा गया है । माखन कोरेटिया के सामने रोजी रोटी की समस्या है ।


आंध्रप्रदेश में बोरवेल्स में काम कर घर वापस आइए मधु शोरी ने अपनी पत्नी अमेरिका बाई शोरी के साथ मिलकर बायलर चिकन की कटिंग कर रहे है और बैजनपुरी के आस पास की गांवो के हाट बाजारों में बेचने जाते जिसे कुछ खास आमदनी नहीं हो रही है । बैजनपुरी से 5 किलोमीटर की दूरी भैसाकन्हार (डू) निवासी युवक डोमन उईके कौशल विकास योजना के अन्तर्गत पेलेस मेंट के माध्यम से आंध्रप्रदेश के नैलुर जिलांतर्गत गुडुर नायडूकट्टा में काम करते थे डोमन उयके ने बताया कि गुडुर हास्टल से लगभग 70 लोग घर के लिए निकले थे क्योंकि शुरुवाती कि लॉक डॉउन में सब ठीक था पर लॉक डॉउन बढ़ने से हॉस्टल में खाने की कमी होनें लगी थी जिससे खाना हाफ मिलता था इसलिए काम और हास्टल दोनों छोड़ने के लिए मजबूरी हो गई थी । बहुत मुश्किल के बाद घर पहुंचा जा सका। अभी गांव में घर के खेतों में काम कर रहे है । तो बैजनपुरी से लगे ग्राम पंचायत कनेचुर के आश्रित ग्राम जामपारा के पलायन किए सभी मजदूर काम की कमी के कारण फिर से पलायन कर लिए हैं। इन्ही मजदूरों में से बैजनपुरी के मुकेश कुमार और सुरेश कुमार ने कहा कि अभी धान कटाई होने के बाद गांव में पर्याप्त काम नहीं मिलता है इसलिए बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों की ओर रुख करते है। जब तक दूसरे फसल की टाइम नहीं आती तब तक काम से बाहर काम करने को मजबुर है । पहले ऐसे परिस्थिति नहीं थी जब से लॉक डॉउन तब से घर में आर्थिक परेशानी की दिक्कत हो रही है । इसमें से ज्यादातर मजदूर छत्तीसगढ़ में जो पहले दूसरे राज्यो में काम की तलाश में जाते थे ओहि अब अपनी आस पास के क्षेत्रों में काम कर रहे है । लाक डॉउन के बाद थोड़ी सी बदलाव जरूर देखने को मिली है कि अब मजदूर दूसरे बड़े राज्यो और महानगरों जैसे महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , बैंगलुरु , तमिलनाडु , जैसे बड़े उद्योग वाली राज्यो में अब जाने से थोड़ी संकोच जरूर करने लगे है । पर अब भी दूसरे राज्यो में पलायन करने की सिलसिला अभी थमा नहीं है। आज भी बहुत से अंदुरूनी क्षेत्र के मजदूर दूसरे राज्यो में पलायन कर रही है । जिसे राज्य सरकार रोकने के लिए कोई कारगर योजना नहीं बना सकी है । जब बैजनपूरी सरपंच वंदना नेताम से प्रवासी मजदूरों के बारे में पूछने पर साफ तौर से कहा कि अभी यह से कोई मजदूर दूसरे राज्य नहीं गए है । पर हकीकत कुछ और ही है यह से बहुत से मजदूर दूसरे राज्यो में काम कर रहे है । तो सिवनी सरपंच उमेश्वरी मंडावी ने बताया की यह मजदूर बाहर काम गए है पर सब आस पास के क्षेत्रों में ही है ।

ये हाल सिर्फ 2 या चार गांव की नहीं है बल्कि पूरे क्षेत्र की है जहा मजदूरों की पलायन अभी भी थमी भी है । इसे यह तो स्पश्ट है कि लाक डॉउन में प्रवासी मजदूरों को सरकार रोजगार देने में पूरी तरह से असफल रही है।

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