सर्जिकल स्ट्राइक बनाम मीडिया : सुनील कुमार

सर्जिकल स्ट्राइक बनाम मीडिया : सुनील कुमार (स्वतंत्र लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता)

मीडिया के वार रूम से कुछ सवाल 

आज कल भारत की मीडिया में एक ही चर्चा है, सर्जिकल स्ट्राइक। कहा जा रहा है कि देश की 125 करोड़ जनता सरकार के साथ है। इस मौके पर जो कोई भी सरकार की किसी भी तरह की आलोचना करे उसे तुरंत देश-द्रोही या सेना के अपमान की बात से नवाजा जा रहा है। जब 125 करोड़ भारतीय नगारिक की बात होती है तो उसमें से मैं भी एक नागरिक हूं। मेरा भी मत उसी तरह से मान लिया जाता है, जिस तरह से वे चाहते हैं। वातानुकुलित न्यूज रूम (वार रूम) में बैठकर कुछ मीडिया घराने और कुछ संगठन व व्यक्ति लोगों को देश भक्ति का सर्टिफिकेट बांटने लगे हैं। मैं ऐसे न्यूज एंकर, संगठनों से जानना चाहता हूं कि सेना के हाथ मों जो बंदूक है उस बंदूक को बनाने वाला मजदूर देश भक्त है या नहीं; सेना के जवान जिस बुलेट प्रुफ जैकेट को पहन कर अपनी हिफाजत करते हैं उसको बनाने वाले मजदूर देश भक्त हैं या नहीं; सेना जिस वर्दी को पहनती है उस वर्दी का कपड़ा बनाने वाले कारीगर और वर्दी की सिलाई करने वाले टेलर देश भक्त हैं या नहीं? सेना जिस अनाज, फल को खाकर अपनी सेहत को ठीक रखती है उसे पैदा करने वाला किसान देश भक्त है या नहीं? अगर इन मजदूरां, किसानों को देश भक्त नहीं मानते तो फिर मुझे आपसे कुछ नहीं कहना। आप सबसे महान ‘देश भक्त’ हो! अगर आपकी निगाह में ये देश भक्त हैं तो आपसे कुछ सवाल हैं। जिस समय इस सर्जिकल ऑपरेशन का न्यूज चल रहा था उसी समय होंडा के मजदूर अपनी नौकरी बचाने के लिये जंतर मंतर पर बैठे हुये थे, उसी समय नोएडा के मजदूरों पर लाठियां बरसाई जा रही थी, उसी समय दिल्ली के अलीपुर में करेंट लगने से एक मजदूर की मौत हो जाती है और छह गम्भीर रूप से झुलस जाते हैं, क्या आपने उनकी तकलीफों, समस्याओं को खबर बनाने के लिये सोचा? देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। 2014 की तुलना में 2015 में40 प्रतिशत ज्यादा किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी। क्या वातानुकुलित वार रूम में बैठ कर आपने उन किसानों पर बात करने की सोची? आदिवासी लड़की मडकम हिड़मे के साथ बलात्कार कर, हत्या कर दी गई और उसके हत्यारों को राज्य सरकार ने ईनाम भी दिया। एक बुर्जुग पिता इस आस में जिंदा है कि वह अपनी बेगुनाह बेटी मीना खल्को (15 साल) के हत्यारे, बलात्कारी 25 पुलिसकर्मी को सजा दिला पाये। मिना खल्को की हत्या के बाद जब उसकी रिपोर्ट विधान सभा की पटल पर रखी गई तो एक ‘देश भक्त’ मंत्री ने यहां तक कह डाला कि मीना सेक्स की आदी थी, क्षेत्र में आने वाले ट्रक ड्राइवरों से उसके सम्बंध थे। न्यायिक जांच में जब यह बात साबित हो गई कि मीना खल्को बेगुनाह थी, उसकी हत्या करने से पहले उसके साथ बलात्कार हुआ था, उसके एक साल बाद भी छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री राम सेवक पकेरा ने विधान सभा में बताया कि इस मामले में कोई चालान पेश नहीं किया गया है, न ही रेप की धारा जोड़ी गई है। 16 अगस्त को 19 वर्षीय अर्जुन मरकाम की हत्या माओवादी बतलाकर कर दी जाती है जबकि वह रेगुलर कोर्ट केस की डेट पर जाता था। अर्जुन मरकाम की हत्या इसलिए की गई कि उसको जिस केस में फंसाया गया था वहां से वह बेगुनाह साबित हो जाता। इस नाबालिग लड़के को 2015 में पुलिस वालों ने 30 वर्षीय अर्जुन मरकाम कहकर पकड़ा था। वह बाईज्जत बरी हो पाता, इससे पहले उसकी हत्या कर दी गई। क्या वातानुकुलित वार रूम में बैठी मीडिया मडकम हिड़मे, मीना खल्को, अर्जुन मरकाम जैसे हजारों आदिवासियों की कहानी लोगों को बतायेगी? हम कश्मिरियों, उत्तर पूर्व के लोगों की बात ही नहीं करते, क्योंकि वे हमेशा आप की नजर में ‘देश द्रोही’ हैं, वे तो आजादी की बात करते हैं और आजाद रहना चाहते हैं। सीआरपीएफ ने जम्मु कश्मीर हाईकोर्ट में हलफनामा दे कर बताया है कि32 दिन में 13 लाख पैलेट गन का इस्तेमाल कश्मिरियों पर किया गया है। आप को तो कश्मीर चाहिये, कश्मिरियों से क्या मतलब! हम उन मुसलमानों की बात ही नहीं करते जिसके पूर्वज अशफाकउल्ला खां, वीर अब्दुल हमीद जैसे लोग भी रहे होंगे क्योंकि वे तो आपकी नजर में ‘देश द्रोही’ हैं, ‘पाकिस्तान जिन्दाबाद का नारा लगाते हैं’। तभी तो आप जैसे ‘देश भक्त’ वार रूम में बैठ कर उनके घर के फ्रिज पर नजर रखते हैं कि उनके फ्रिज में क्या रखा हुआ है और उसकी मौत को भी जायज मान लेते हैं। अखलाक की हत्या के आरोपी के शव को तिरंगें में लपेट कर रखना तिरंगे का अपमान नहीं दिखता, वह तो आपके लिये सौभाग्य की बात लगती है। ऐसी जगहों पर समर्थन व्यक्त करने के लिये केन्द्रीयमंत्री, सांसद व विधायक तक पहुंच जाते हैं। यह मीडिया न तो तिरंगे के अपमान पर सवाल करती है और न ही सासदों, विधायकों को कठघरे में खड़ा करती है। वातानुकुलित ‘वार रूम’ में बैठे एंकरों के जेहन में सवाल ही पैदा नहीं होता! क्या ब्राह्माणवादी, कारपोरेट जगत की दलाली करने वाली मीडिया के लिये दलितों, आदिवासियों, महिलाआें, मजदूरों, किसानों, की रोज रोज की हत्याएं और उत्पीड़न प्राईम टाईम में जगह बना पाती है?

खैर छोड़िये मैं भी क्या ‘देशद्रोही’ बातें करने लगा हूं। ये सब तो ‘छुद्र’ लोग हैं जो आये ही हैं दूसरों की सेवा करने के लिये। इनकी क्या औकात, ये तो हमारे बाजार का हिस्सा भी नहीं हैं, ये तो जल-जंगल-जमीन पर कब्जा किये बैठे हैं जो पूंजीपतियों की बपौती है। हम जानना चाहते हैं, आप ही की तरह वातानुकुलित रूम में बैठ कर आपके युद्धोन्माद पर तालियां बजाते हुये वे जो आपके बाजार का हिस्सा हैं, उनके बारे में। मैं जानना चाहता हूं कि हरियाणा के मुरथल में गाड़ियों से खींच कर जिन महिलाओं के साथ गैंग रेप किया गया, क्या उनको न्याय मिल पायेगा? मैं जानना चाहता हूं बी.के. बंसल के परिवार के विषय में (अगर हम बी.के. बंसल को घुसखोर मान भी लें तो, उनकी पत्नी, बेटी, बेटे तो निर्दोष थे) जिन्होंने आत्महत्या की। बी.के. बसंल और उनके बेटे योगेश के सुसाईड नोट, जिसमें सीबीआई अधिकारियों का नाम आया, उस पर क्या कार्रवाई हुई या हो रही है? उसका जायजा लेने के लिये आप अपने ‘वार रूम’ से बाहर निकले? छोड़ दीजिये सीबीआई अधिकारियों की बात, वह तो पिंजड़े का तोता है। बी.के. बंसल ने सुसाईड नोट में डीआईजी संजीव गौतम और अमित शाह के सम्बंधों की चर्चा की है, जिसके बल पर संजीव गौतम ने बीके बंसल के परिवार का उत्पीड़न किया। वह अमित शाह आज देश का सबसे बड़ा ‘देश भक्त’बना हुआ है और लोगों को ‘देश भक्ति का सार्टिफिकेट’ बांट रहा है। उस घटना के बाद मीडिया से अमित शाह के प्रेस कांफ्रेस में मुलाकात भी हुई, लेकिन आपने उनसे बंसल सुसाईड के विषय में सवाल किया? आप मेरठ में कर्ज में डुबे व्यापारी मोहन अरोड़ा के परिवार के आत्महत्या के कारणों के विषय में भी नहीं सोचते, जिसके घर में 70 साल से लेकर 15 साल तक के पांच लोगों ने सामूहिक आत्महत्या कर ली। आये दिन सैनिक/अर्द्धसैनिक बल के जवान आत्महत्या कर रहे हैं, क्या वह खबर भी अपके न्यूज रूम की खबर बन पाती है? आप अपने वातानुकुलित ‘वार रूम’ में बैठकर चांद बाबू लाल चौहान नामक सैनिक की भी बात करते हैं, जो पकिस्तानी कब्जे में है। कम से कम आप उसको पाकिस्तानी कब्जे से छुड़ाने के लिए ही सरकार पर दबाव बनाते। कहां है आप का सैनिक प्रेम?

 

देशद्रोही कौन ?

पिछले कुछ साल से (खासकर एनडीए सरकार के समय से ज्यादा हुआ है) बात-बात पर ‘देशी द्रोही’ का सर्टिफिकेट बांटने का चलन भारत में तेजी से बढ़ा है। अपने को स्वघोषित ‘देश भक्तों’ को ही यहां की मीडिया हवा दे रही है। भारत के राष्ट्रपति कहते हैं कि विरोधी विचार से लोकतंत्र मजबूत होता है, विरोधी विचारों को भी तरजीह देनी चाहिये। राष्ट्रपति के विचार से उलट इस देश के कुछ तथाकथित ‘राष्ट्रभक्त’ मीडिया, संगठन, और व्यक्तियों का गठजोड़ काम कर रहा है। विरोधी विचारों को दबाने के लिये एंकर चिल्लाने लगता है और उसकी बात पुरी होने नहीं देते और उसपर सवालों की बौछार लगा देते हैं। वह अपने विरोधी पर इस तरह चिल्ला-चिल्ला कर सवाल दागना शुरू करता है जैसे युद्ध के मैदान में खड़ा होकर गोले दाग रहा हो। गोले दागने के बाद शुरू होता है ‘राष्ट्र भक्त’ संगठनों द्वारा उसका पुतला फुंकना, घरों-दफ्तरों पर पत्थर फेंकना, चिल्लाना उस न्यूज का क्लिपिंग दिखलाना और बतलाना कि वह देश का गद्दार है। ‘रष्ट्रभक्त व्यक्तियों’ द्वारा सोशल मीडिया पर फर्जी एकांउट के जरिये शुरू हो जाता है मां-बहन की गाली के साथ-साथ पाकिस्तान भेजने का सिलसिला।

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद महाराष्ट्र नवनर्मिण सेना (मनसे) ने पाकिस्तानी कलाकारों को 48 घंटे में मुम्बई छोड़ कर चले जाने का अल्टीमेटम दिया (यह वही पार्टी है जो भारत के आम नागरिकों (बिहार और यूपी) के साथ मार-पीट कर महाराष्ट्र छोड़ कर जाने की बात करती है)। सलमान खान से पाकिस्तानी कलाकारों को देश छोड़ने के विषय में पुछा गया तो उनका कहना था कि एक कलाकार, कलाकार होता है आतंकवादी नहीं। उसको देश की सरकार विजा देती है आने के लिये, तो वह आता है। सलमान खान की इस छोटी और सही बात पर भारतीय मीडिया में गला फाड़ चिल्लाने की प्रतियोगिता शुरू हो गई। ऐसी ही एक प्रतियोगिता में ओमपुरी फंस गये। एंकर चिल्ला चिल्ला कर उनकी राय जानना चाह रहा था। वे अपनी राय दे भी रहे थे। वे बोल रहे थे कि ‘‘इस्राइल और फिलिस्तिन मत बनाओ, एक हफ्ते से और कोई मुद्दा नहीं मिल रहा है आपको। देश में 22 करोड़ मुसलमान हैं उनको भड़काओ मत। आप लोग पता नहीं कैसी-कैसी फिल्में बनाकर पाकिस्तान पर थूकते हो बेशर्मों, मैं सेना का सम्मान करता हूं। सेना को हमारी जरूरत नहीं है।’’ ओमपुरी की इन बातों में एंकर सुमित अवस्थी को मजा नहीं आ रहा था। ओम पुरी की बात पूरी भी नहीं होने दे रहा था और प्रश्न पर प्रश्न पुछे जा रहा था। सेना की शहादत पर ओम पुरी ने बोल दिया कि हमने कहा था कि फोर्स में भर्ती हो। बस यही बात सेना के लिये अपमान हो गई! सुमित अवस्थी ने चिल्लाना शुरू कर दिया कि ओमपुरी ने सेना का अपमान किया। उसी समय से सोशल मीडिया पर ओम पुरी के खिलाफ गाली-गलौज शुरू हो गया। दूसरे दिन न्यूज पेपर में हेडिंग बनी ‘‘ओमपुरी के बेतुका बयान, बिगड़े बोल, शहीदों का अपमान किया इत्यादि’’ कोई उनको पाकिस्तान भेजने लगा तो किसी ने उनको नशेड़ी घोषित कर दिया। क्या ओम पुरी की बात गलत थी? दिल्ली के जंतर मंतर पर 50 दिनों से देश भर के कुछ नवयुवक धरने पर बैठे हैं कि उनकी भर्ती ली जाये, रिक्त पदों को भरा जाये। इसी तरह के एक डिबेट में न्यूज एंकर अर्नव गोस्वामी के चिल्लाने पर अभिनेत्री मीता वशिष्ट को डिबेट छोड़ कर जाना पड़ा। कुछ ‘देश भक्त’ अभिनेता हैं जो खुद भारतीय नागरिकता छोड़ कर केनेडियन नागरिकता और पासपोर्ट ग्रहण किये हुये हैं, वे पकिस्तानी कालाकारों पर गलबाजी कर रहे हैं। कहां हैं वे ‘देश भक्त’, विकलांग (दिव्यांग) सैनिकों की पेंशन में कटौती कर दी जाती है और वे चुप रहते हैं? श्रम कानूनों को बदल दिया जाता है चुप रहते है! उनकी देश भक्ति गला फाड़ चिल्लाने की प्रतियोगिता और गाली गलौज में है?

स्वयंभू ‘देश भक्तों’ द्वारा सेना की बातों का अतिक्रमण करना

सेना ने अपने प्रेस वक्तव्य में कहा कि ‘‘प्राप्त हुई विशिष्ट और विश्वसनीय सूचनाओं के आधार पर घुसपैठ और जम्मू-कश्मीर व अन्य राज्यों में विभिन्न बड़े शहरों पर आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए कुछ आतंकी दलों ने नियंत्रण रेखा के पास लांच पैडों पर अपने ठिकाने बना लिए थे, इसलिए आतंकवादियों द्वारा घुसपैठ की कोशिश को पहले ही रोकने के लिए भारतीय सेना ने इन लांच पैडों में से कई पर सर्जिकल स्ट्राइक (योजना बनाकर हमला करना) किए। कार्यवाही का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि ये आतंकवादी अपनी विध्वंसकारी योजनाओं और हमारे नागरिकों के जीवन को खतरे में डालने में सफल ना हो पाएं।’’

‘‘इन जवाबी आतंकवाद विरोधी कार्यवाहियों में आतंकियों और उनके सहयोगियों को गंभीर नुकसान हुए जिनमें कई मारे गए और घायल हुए। कार्यवाही का उद्देश्य आतंकियों को निष्क्रिय करना था। इस समय इसे आगे जारी रखने की हमारी कोई योजना नहीं है। हालांकि भारतीय सेनाएं किसी भी प्रकार के हमलों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार है।’’

मैं पाकिस्तानी सेना के डीजीएमओ के साथ संपर्क में रहा और उन्हें अपनी कार्यवाहियों के बारे में सूचित किया। भारत का उद्देश्य इस क्षेत्र में शांति और तनावमुक्ति का माहौल देना है।’’

सेना ने ये नहीं बताया कि सर्जिकल स्ट्राईक में कितने लोग मारे गये कितने नहीं, तो ‘देश भक्तों’ को कैसे पता चला कि दुश्मन का कितना नुकसान हुआ है। मीडिया में उसी दिन खबरें आने लगी कि 38 मरे। उसके एक दो दिन बाद 50 की संख्या हो गई। आगरा में मनोहर पार्रिकर की मौजदूगी में बीजेपी नेता अश्वनी वशिष्ठ ने कहा कि मारे गए आतंकियों की संख्या 200 के पार है। जब सेना अपने प्रेस वक्तव्य में बोल रही है कि इसे आगे जारी रखने की हमारी कोई योजना नहींं है, हमने पाकिस्तान के डीजीएमओ को सूचित कर दिया है। भारत का उद्देश्य इस क्षेत्र में शांति और तनावमुक्ति का माहौल देना है। सेना के इतने स्पष्ट बोलने के बावजूद देश में इस तरह का युद्धोन्माद का माहौल क्यों बनाया जा रहा है? क्या यह सेना की बातों का अतिक्रमण नहीं है? सेना के अतिक्रमण से किसका अपमान हो रहा है?

यहां तक कि पूंजीपति सैनिकों की वीरता को अपने माल के उत्पादन की बिक्री बढ़ाने के लिये करते हैं जैसा कि ‘हीरो टू व्हीलर’ के विज्ञापन में देख सकते हैं। इस पर स्वयंभू ‘देश भक्तों’ और ‘राष्ट्रवादी मीडिया का खून क्यों नहीं खौलता? क्या यह शहीदों का अपमान नहीं है?

सर्जिकल स्ट्राइक से लाभ किसका

जैसा कि खबरें आ रही हैं, पहले भी कई बार सर्जिकल स्ट्राइक किये जा चुके हैं, लेकिन उसका प्रचार नहीं किया गया है। सेना के इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पूरे संसद ने एक सुर में इसका समर्थन किया। पहली बार ऐसा क्या हुआ कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सेना को प्रेस कान्फ्रेंस के माध्यम से जानकारी देनी पड़ी? पांच राज्यों में चुनाव को देखते हुये बीजेपी की तरफ से यूपी में पोस्टर लगाये गये, जिसमें सैनिकों के बदले नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, मनोहर पर्रिकर, राजनाथ सिंह के फोटो लगे और उस पर एक सड़क छाप डायलॉग दिखा ‘‘हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे, लेकिन वो बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी, वक्त भी हमारा होगा, बस जगह तुम्हारी होगी’’। इसी तरह का डायलॉग राजनाथ सिंह इस्तेमाल करते है कि‘‘गोलियां की गिनती नहीं की जायेगी’’। बीजेपी के इस डायलॉग के बाद ‘आतंकवादी’ पुलिस चौकी पर हमला कर एके 47 राइफल लूटने में कामयाब हो गये।

आम लोगों में इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद खतरे और बढ़ गये हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद शहरों को हाई अर्ल्ट पर रखा गया है कि कहीं उनका ‘स्लीपर सेल’ ‘आम जन को नुकसान’ नहीं पहुंचा दे। बॉर्डर पर सैनिक/अर्द्धसैनिक शिविरों पर हमले बढ़ गये हैं। एल.ओ.सी पर लगातार फायरिंग होने की खबरें आ रही है।

सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा के बाद दोनों देशों में युद्धोन्माद का माहौल बना हुआ है, इससे हथियारों की होड़ बढ़ेगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याणकारी योजनाओं में से कटौती कर हथियार खरीदे जायेंगे। मोदी जी के उन बातों का क्या होगा कि ‘गरीबी के खिलाफ लड़ते हैं’ देखते हैं कौन जीतता है? सर्जिकल स्ट्राइक को सही साबित करने के लिये एक्सन में भाग लेने वाले फौजी दस्तों का नाम ओपन किया जा रहा है जो तकनीकी रूप से गलत है। इससे दुश्मन देशों को फायदा मिलता है।

युद्ध किसकी कीमत पर

युद्धोन्माद की स्थिति में सबसे बड़ा नुकसान बॉर्डर पर रहने वाले लोगों का हो रहा है। बिना उचित तैयारी के उनको बोल दिया गया कि आप अपना घर छोड़ दस किलोमीटर दूर चले जाओ। किसान तैयार फसलों, जानवरों, घरों को छोड़ कर जाने को विवश हैं। गुरू नानक देव विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रो0 जगरूप सिंह शेखों बताते हैं कि इन ईलाकों के 21,000 किसानों की कम से कम 25,000 एकड़ जमीन सीमा पर लगे बाड़ की चपेट में आकर बेकार हो चुकी है। उन्होंने कहा ‘‘पूरे इलाके में रोजगार, विकास, दूरसंचार, सुविधाएं, शिक्षा और दूसरी चीजें मुहैया नहीं हैं। इसकी वहज यह है कि किसी सरकार का इलाके के विकास की ओर ध्यान ही नहीं गया।’’ प्रो. शेखों कहते हैं कि सीमा पर रहने वाले लोग समय से पहले ही स्थिति को भांप जाते हैं और खुद ईलाका छोड़ देते हैं। 1965-71 और संसद पर हुए हमलों के बाद जो स्थिति बनी थी, उस समय लोगों ने गांव खुद ही खाली कर दिया था।’’  उन्होंने सवाल किया  ‘‘यह सरकार नहीं बता रही है कि ऐसे में बड़ी तादाद में गांव खाली कराने की क्या जरूरत है?’’ अटारी बॉर्डर ट्रक एसोसिएशन के गुरूविंदर सिंह का कहना है कि ‘‘हमारे एसोसिएशन के पास 450 ट्रक हैं। इस तनाव का हमारे काम पर कोई असर नहीं पड़ा है। काम रोज की तरह ही चल रहा है। यह सब राजनीतिक स्टंट है, लोगों से दस किलोमीटर पीछे जाने को कहा जा रहा है, कहां जाएंगे लोग? किसानों की पकी हुई फसल खेत में पड़ी है, उसे छोड़कर कहां जाएं?’’ वाघा बार्डर के करीब ही दुकान चलाने वाले कंवलजीत सिंह का कहना है, ‘‘इस जगह पर एक हजार लोग काम करते हैं, जो दुकान, रेहड़ी या पार्किंग से पैसा कमा कर अपना गुज़ारा करते हैं, लेकिन चार दिनों से सारा काम बंद पड़ा है।’’ (स्रोत : बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम)।

देश की आर्थिक स्थिति ऐसी बना दी गई है कि सेना या अर्द्धसैनिक बलों के अलावा कहीं स्थायी नौकरी नहीं है। मजदूर-किसान के घर के लड़कों के पास इन बलों में जाने के अलावा और कोई चारा नहीं है। सैनिक/अर्द्धसैनिक बलों की भर्ती में कई बार नौजवानों की जानें गई हैं। ये सैनिक उन्हीं मजदूर, किसान के घर के होते हैं (युद्ध में अधिकांश संख्या में यही मारे जाते हैं), जिनकी बात यह युद्धोन्मादी मीडिया नहीं उठाती है। सैनिकों की शहादत पर एक आध दिन घड़ियाली आंसू बहाने वाली मीडिया,राजनेता कुछ ही दिनों में उनकी शहादत को भूला देते हैं।

बात हो रही है सेना के साथ खड़े होने की। मेरा पुरा विश्वास है कि भारत के लगभग 14 लाख सैनिकों (पैरा मिलट्री और पुलिस जवानों को छोड़कर) के रहते पाकिस्तान से आये ‘पांच-दस या पचास-सौ-दो सौ आतंकवादी’ भारत को बंदी नहीं बना सकते।

देश की रक्षा की जिम्मेदारी इन्हीं सैनिकों पर क्यों होनी चाहिये? देश के हर नागरिक को फौजी ट्रेनिंग दी जाये। उसको भी ‘युद्ध क्षेत्रों’ में एक-दो साल के लिये नियुक्त किया जाये, जैसा कि ब्रिटेन के राजकुमार को भी युद्ध क्षेत्र में जाना पड़ता है। भारत के हर आईएएस, आईपीएस, राजनेता/नेत्री, अभिनेता/अभिनेत्री के बच्चों को भी ट्रेनिंग दी जानी चाहिये और उनको भी सीमा पर भेजना चाहिये। कुछ समय के लिये सैनिकों को सीमा से हटा कर उत्पादन कार्य में लगाया जाना चाहिये। इससे सभी भारतवासियों को एक-दूसरे को जानने-समझने का मौका भी मिलेगा।

क्या इस सर्जिकल स्ट्राइक के बहाने केन्द्र सरकार अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है? देश में बढ़ रही महंगाई, बेराजगारी पर कोई सवाल खड़ा न हो, किसानों, मजदूरों की दुर्दशा पर बात नहीं हो, चुनावी वायदों से ध्यान भटकाया जाये और आगामी चुनाव में अंध राष्ट्रवाद के सहारे चुनाव जिता जा सके, हथियारों के लिये रक्षा बजट बढ़ाया जा सके, बी.के. बंसल की आत्महत्या को भुला दिया जाये, देश में आदिवासियां, दलितों, महिलाओं पर हो रहे हमले को छुपाया जा सके, इन चीजों से ध्यान हटाने के लिये सर्जिकल स्ट्राइक को मुद्दा बनाया जा रहा है। देश का निर्माण बॉर्डर पर नहीं देश के अंदर होता है। देश में अंधराष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाली मीडिया अपने ही पत्रकार बंधुओं (नेशनल दस्तक की पत्रकार की पिटाई, पटियाला कोर्ट में पत्रकारों की पिटाई, छत्तीसगढ़ में पत्रकारों पर फर्जी केस) पर हुये हमले पर चुप क्यों हो जाती है? क्या वे वातानुकुलित ‘वार रूम’ में बैठकर व्यक्तिगत फायदे के लिये पत्रकारिता को तिलांजली देकर सत्ता की दलाली कर रहे हैं? क्या वे सैनिकों की लाशों पर राजनीति कर देशी-विदेशी पूंजीपतियों के लूट पर पर्दा डाल रहे हैं? जरूरत है ऐसे अंध राष्ट्रभक्तों के दिमाग की सर्जिकल करने की; तभी भारत-भारत बनेगा। मैं फिर से कहूंगा कि देश का निर्माण बॉर्डर पर नहीं देश के अंदर होता है।

इस पोस्ट में व्यक्त विचार लेखक के अपने विचार है। यदि आपको इस पोस्ट में कही गई किसी भी बात पर आपत्ति हो तो कृपया हमें ई-मेल करें… धन्यवाद

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