शुक्र है कि अब भी बचे हुए हैं कुछ लोग !

सरला माहेश्वरी
शुक्र है कि अब भी बचे हुए हैं कुछ लोग
इन बचे हुए लोगों को कल से लगता है डर !
काल से लगता है डर !
शुक्र है कि इन्हें लगता है डर कि
कल को कोई यह न कह दे कि
इन्होंने बेच दी थी अपनी आत्मा !
न्याय के सर्वोच्च स्तर पर
न्याय के न्यून को ही गंवा दिया !
शुक्र है मुक्तिबोध कि
कुछ लोगों को अब भी लगता है डर कि वे
सफलता के चन्द्र की छाया में कहीं
घूग्घू, सियार या भूत तो नहीं बन जाएँगे !
शुक्र है कि उन्हें लगता है डर कि
कल को कहीं लोग यह न कहें कि
अब तक क्या किया,
जीवन क्या जिया,
ज्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश, अरे जीवित रह गये तुम…!
शुक्र है पाश !
कि अभी भी कुछ लोगों की आत्मा का सूरज डूबा नहीं है
शुक्र है कि उनकी आँखें पथराई नहीं है
शुक्र है उन्हें याद है पाश कि
बिना जमीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाये
आंख की पुतली में हाँ के सिवाय
कोई भी शब्द अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है !
शुक्र है मुक्तिबोध ! शुक्र है पाश !
कि सपना अभी ज़िंदा है !
जस्टिस लोया मर कर भी जिंदा है !
पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है लोकतंत्र का महा खेल अभी !
धरती फाड़ कर भी सच सामने आयेगा
इसकी संभावना ज़िंदा है !
मरी नहीं ये दुनिया, अभी ज़िंदा है !