हमें बचाओ… हत्यारे नक्सली अब पुलिस बनकर आ रहे हैं मारने : सुलेंगावासी

जिस बस्तर में पुलिस चिट्टी और पर्चों से डरती हो, उनसे नक्सलवाद के सफाये की उम्मीद लगाना बेमानी है । ये नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों की भी हत्या कर रहे हैं। बुरगुम, फूलपगड़ी और गोमपाड़ जैसे कई उदाहरण सामने आये जहाँ पुलिस पर सीधे आरोप लगे कि पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में पब्लिसिटी के लिए हत्याएँ की है | इनके साथ वे कुख्यात नक्सली शामिल होते हैं जो दूसरे तरफ कथित जनताना सरकार के जल-जंगल-जमीन की लड़ाई छोड़कर जान बचाकर लोकतांत्रिक सरकार का हिस्सा बनने इसलिए भागकर आ गए क्योंकि वहाँ उनकी संदिग्ध गतिविधियों की वजह से उनकी जान को खतरा हो गया था ।

जो हत्यारे नक्सली जंगलों में रहकर अवैध वसूली, हत्याएँ, आदिवासियों की मुखबिरी के नाम पर हत्या करते रहे हों वे यहाँ नहीं करेंगे इसका दावा केवल छत्तीसगढ़ सरकार की बस्तर पुलिस ही कर सकती हैं । छत्तीसगढ़ सरकार ने DRG में ऐसे कई हत्यारे नक्सलियों को जगह देकर पुलिस की वर्दी और हथियार सौंपे हैं।

ऐसे ही दो दुर्दांत नक्सली सन्नू और नेहरु जिसके नाम से इन्द्रावती नदी के किनारे के दर्जनों गाँव के लोग थर-थर काँपते थे | पहला कुख्यात नक्सली सन्नू  मारडुम थाना अंतर्गत करका गाँव का तो दूसरा दुर्दांत नक्सली नेहरु टुंडेर गाँव का निवासी है | इन नक्सलियों का काम आदिवासियों की हत्या करना रहा है | जिन पर कई संगीन वारदातों में शामिल रहने के आरोप हैं | उन्हें छत्तीसगढ़ सरकार ने आत्मसमर्पण कराकर हथियार सौंप दिए हैं | ये अब उन ग्रामीण आदिवासियों एवं उनके परिवार को निशाना बना रहे हैं जो इनका खिलाफत जब ये नक्सलियों के साथ थे तब से करते आ रहे हैं |

ग्रामीणों का कहना है कि सन्नू और नेहरु गाँव में पहले नक्सलियों को लेकर आते थे, अब पुलिस को लेकर आते हैं और हमें मारते-पीटते हैं और हत्या की धमकी दे रहे हैं | ये मारडुम पुलिस के थानेदार शुक्ला के साथ आकर गाँव के लोगों की हत्या करना चाहते हैं, जो इनकी खिलाफत करते थे | इनमें से नेहरु ने तो अपने भाई को भी नहीं बक्क्षा, करीब तीन-चार साल पहले अपने बड़े भाई की भी इसने हत्या कर दी थी | जो नक्सली अपने भाई का नहीं हुआ वह गाँव वालों का कैसे हो सकता है | सुलेंगा के लोगों का कहना है कि ये आदिवासियों के हत्यारे हैं, इन्हें जेल भेजना चाहिए | इन्हें पुलिस बनाकर सरकार नक्सलवाद ख़त्म नहीं कर रही नक्सलियों वाली सरकार बन रही है |

मुझे कुछ-कुछ याद है, करीब तीन-चार साल पहले की बात है | मैं बारसूर से चित्रकोट रोड होते हुए मोटरसाइकिल से जगदलपुर किसी काम से जा रहा था | टुंडेर घाट जहाँ ख़त्म होता है  उसके बाद एक गाँव पड़ता है मारिकोड़ेर | जहाँ बीच सड़क पर लाश रखी हुई थी | मैंने मोटरसाइकिल आगे खड़ी की और वहाँ उतर गया | तभी झाड़ियों से एक आदमी निकला, मैने उससे पूछताछ की तो मालुम पड़ा कि इसकी हत्या नेहरु नाम के नक्सली ने कर दी है | सुबह मारडुम थाने को गाँव के लोगों ने खबर की थी किन्तु दोपहर के 02 बजे तक कोई भी मौके पर नहीं पहुँचा था | इस बार सुलेंगा जाने पर ग्रामीणों से यह पता चला की यह वही घटना है जिसमें नेहरु ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी थी |

छत्तीसगढ़ सरकार को ऐसे दुर्दांत नक्सलियों के पुनर्वास की बड़ी चिंता है | ऐसे नक्सली किसी के भी नहीं है ये हत्यारे हैं | जो नक्सलियों के साथ रहकर भी आदिवासियों की हत्या करते रहे हैं, वे आत्मसमर्पण के बाद भी आदिवासियों को निशाना बना रहे हैं जो इनके खिलाफ बोलते थे | बस्तर में तैनात पुलिस अफसर यह दावा करते रहे हैं कि नक्सली गतिविधियों को बस्तर के बाहर दुसरे प्रांत के लोग संचालित करते हैं | लेकिन सवाल यही उठता है कि पिछले एक साल में अब तक कितने दुसरे प्रांत के माओवादी मारे गए हैं ? शायद एक भी नहीं !

जो नक्सली जंगल में आदिवासियों और देश के जवानों की हत्या करता था । वह आत्मसमर्पण के बाद पुलिस का जवान कैसे हो सकता है । छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर में बड़ा कंफ्यूजन पैदा कर दिया है | शहर से लेकर गाँव तक पुलिस की वर्दी में इतने नक्सली घूम रहे हैं कभी-कभी तो पहचानना मुश्किल हो जाता है जब पुलिस वर्दी में कोई जय-हिंद की जगह लाल-सलाम का नारा लगाता है ।

पुलिस के मौजूदा तंत्र से खफा छत्तीसगढ़ में पुलिस के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे एक्टिविस्ट राकेश यादव ने छत्तीसगढ़ सरकार की समर्पण नीति के सम्बन्ध में सोशल मीडिया फेसबुक पर पोस्ट लिखा हैं | जिसमें उन्होंने कहा है कि…

“क्या करोगे भाई ! एक बेरोजगार युवा को जब रोजगार ना मिले और सैकड़ों निर्दोषों के हत्यारे नक्सली को सरकार सम्मानित करे, रोजगार दे, लाखों रूपए दे, समर्पण के नाम से आज रोजगार पाने का आसान तरीका यही तो है भाई, पहले नक्सली बनो, कुछ वारदात को अंजाम दो, कुछ पुलिस, कुछ निर्दोषो का खून करो, फिर आपको मिलेगा, रोजगार-सम्मान-सुरक्षा”

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