कुकर्मी नायक ट्रंप! मुंह में कोरोना ।

अमीरों की देह में छुपकर आया कोरोना गरीबों के जिस्म पर कहर ढा रहा है। कौरवों की राजशाही और गरीब पांडवों की जनवादिता का नया महाभारतनुमा संघर्ष हो रहा है। भारत के मृतकों की 25 प्रतिशत मौतें मुंबई में विदेशों से आते अमीर रिटर्न गिफ्ट के रूप में कारोना का वायरस बनकर लाए हैं। उत्तरप्रदेश, गुजरात, दिल्ली पर भी यही हमला है। कई हिन्दुओं ने बारिशों की गैरमौजूदगी में या लावारिस मुसलमानों की लाशें दफनाई। कई लावारिस या बारिशों की गैर मौजूदगी हिन्दू लाशों को मुसलमानों ने जलाया। यह सबक भारत सीख ले कि हिन्दू अपनी नफरत को दफना दे और मुसलमान हिन्दू के प्रति अपनी घृणा को जला दे। मजहबी एकता का नया अध्याय शुरू तो हो।

सरकार सिखा रही है वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जनता सरकार से बात करे। अदालतें मुकदमों में पीठ पीछे निपटारे का रुक्का पकड़ा दें। बैंक डिजिटल हों। लोग घरों के बिल में घुसे रहें। देश को पस्तहिम्मत बना दिया गया है। दिल्ली के सांसद और कर्नाटक के मंत्री ने लाॅकडाउन नियम खुलेआम तोड़े। उनका बाल बांका नहीं हुआ। गरीबों को लेकिन पुलिस जानवर समझकर पीट रही है। गुरुघंटाल किस्म के निजाम की गिरफ्त में देश आ गया है। वह विश्वगुरु खाक बनेगा! यूनान, मिस्त्र, रोम, चीन भी इसी तरह बेदखल हुए।

फ्रांस की राज्यक्रांति के वक्त कहा गया था कोई भवन नहीं मिलेगा तो टेनिस कोर्ट पर बैठकर संविधान रचेंगे। दिल्ली में जबरिया नया संसद भवन बनाया जा रहा है। इस अय्याशी से राजधानी का सौंदर्य बिगाड़ेगा। अनावश्यक खर्च और वैभव का ठीकरा जनता के सिर फूटेगा। देश राजपथ नहीं जनपथ पर चले। नया संसद भवन नहीं नया भारत भवन बने। कई कानूनी पहलू जनता की जानकारी में नहीं होते। अचानक आई चुनौतियां मनुष्य जीवन का चेहरा नोच रही हैं। जनचौपाल में विमर्श हो कि संविधान में समाजवाद ठोस मक्सद बनकर नहीं आया। नेहरू और अंबेडकर ने संकोच में कहा मौजूदा हालात में समाजवाद के साथ निजी उद्योग और पूंजीवाद की भूमिका रखनी होगी। भविष्य के भारत की इबारत झरती थी के.टी. शाह, शिब्बनलाल सक्सेना, हरिविष्णु कामथ, दामोदर स्वरूप सेठ और विशंभरदयाल त्रिपाठी जैसे समाजवादी तेवर के सांसदों में। हिमालयी कद के संविधान में अंतरंग सुरंगें बन गईं। कुकर्मी लोग उनसे गुजरते हैं। उनका कुछ बिगाड़ नहीं हो पा रहा।

जनता की अभिव्यक्ति के बराबर मीडिया को संविधान ने अधिकार दिए। मीडिया सत्ता प्रतिष्ठान का ढिंढोरची बन गया है। टेलीविजन चैनल पर एंकर और एंकरानियां नायाब बदतमीजी के साथ इंद्रसभा के दरबारियों जैसा आचरण कर रहे हैं। कथित गोदी मीडिया के खिलाफ सोशल मीडिया जनता तक सही तथ्य पहुंचाने की कोशिश तो करता है। वहां भी ट्रोल आर्मी का टिड्डी दल लोकतंत्र की फसल को बरबाद कर रहा है। मीडिया की नायक भूमिका में बेशर्म खलनायकी है। इलेक्ट्राॅनिक मीडिया जनता के विवेक पर घातक हथियार है। एंकर एंकरानियां धृतराष्ट्र के संजय की भूमिका के बदले सरकारी संरक्षण पाकर सच और झूठ, सत्ता और जनता, असहयोग और खुशामद के दरमियान खुद की बकझक को पांचजन्य की आवाज समझते हैं। कोरोना वायरस मनुष्य की देह पर लेकिन मीडियाकर्मियों का जनता की आत्मा पर हमला हो रहा। मीडिया सत्ता, व्यवस्था और नौकरशाही की खुशामद और प्रचार में लगा।

मजहबी फसाद के आरोपियों के खिलाफ पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने आदेश देते दिल्ली हाईकोर्ट जज मुरलीधर का रातों रात तबादला हो जाता है। गुजरात के सरकारी कोरोना इंतजाम में नर्क जैसी हालत बताते हाईकोर्ट जजों जे.बी. पारडीवाला और इलेश वोरा की बेंच बदल दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट से सरकार गठजोड़ की गंध आती है। साजिश की आग में रंजन गोगोई के करतब याद आते हैं। सुप्रीम कोर्ट में झूठे सरकारी हलफनामे दायर हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी पूर्वजों का उजला संस्करण नहीं बचा। सुप्रीम कोर्ट और सरकारें तक कुछ भी कहें, यह चट मंगनी पट ब्याह जैसा लगता तो है। लोग कहते हैं आग नहीं होगी तो धुआं कैसे उठेगा? सुप्रीम कोर्ट की छबि पर दाग लग रहे हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर चार वरिष्ठ सहयोगियों ने पक्षपात और संभावित भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। आरोपकर्ता जस्टिस रंजन गोगोई चीफ जस्टिस बनने पर जनअदालत में अभियुक्त लगने लगे। सुप्रीम कोर्ट की बड़ी कुदरती झील सिकुड़कर तालाब बनने पर न्याय का बहाव नहीं दिखे तो चिंता होती है।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अजीब किरदार हैं। मजदूर विरोधी कई कानून बनाए या संशोधित किए हैं। गरीब के घर का आटा और गीला होगा। वैधानिक अधिकार छिन जाएंगे। वे पूंजीपतियों की तुनकमिजाजी के हत्थे रहेंगे। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने हजारों मजदूरों और कर्मियों को नौकरी से बाहर निकालकर कड़क तेवर दिखाए थे। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत असोसियेशन और ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकारों के रहते हुए भी बर्खास्तगी को वाजिब ठहराया। मजदूर आंदोलनों पर तबसे फालिज गिरी।

मंत्रिपरिषद ही कार्यपालिका है। वह प्रशासन की जिम्मेदारी से गायब या गौण है। देश के प्रधानमंत्री और प्रदेशों के मुख्यमंत्री ही सर्वेसर्वा प्रचारित हैं। स्कूली बच्चे तक बता देंगे पंडित नेहरू की कैबिनेट में डाॅक्टर अंबेडकर, राजकुमारी अमृत कौर, मौलाना आजाद और रफी अहमद किदवई थे। आज के मंत्रियों के नाम इतिहास ऐसे ढूंढ़ेगा जैसे चिकनी खोपड़ी पर कोई बाल ढूंढ़े। देश और प्रदेशों के मुखिया स्वास्थ्य मंत्रियों का नाम तक उजागर नहीं होने देते।

भारत अमेरिका की गोद में बैठा तो उसकी पीठ पर पड़ोसी चीन, नेपाल ओर पाकिस्तान खंजर मार सकते हैं। अब्राहम लिंकन जैसे जाबांज प्रजातांत्रिक प्रेसीडेंट का मौजूदा उत्तराधिकारी ट्रंप भारत में कोरोना वायरस फैलाने का सबसे पहला खलनायक है। गुजरात में कोरोना की सबसे ज्यादा मृत्युदर है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का प्रदेश है। आंकड़ों को लेकर ट्रंप की गुजरात यात्रा पर थूकना लोग नहीं छोड़ रहे हैं। ट्रंप खुद भारत से धमकियाकर मंगाए गए हाइड्रोरेक्सीक्लोरोक्विन खा रहा है। गाल बजा रहा है एक लाख अमेरिका में मर भी जाएं तब भी बड़ी बात नहीं। चीन के खिलाफ विश्व युद्ध की भूमिका बनाता लग रहा है। भारत चीन के बीच लद्दाख के सीमा तनाव में जबरिया मध्यस्थ बनने की भूमिका मांगता है। यह कुकर्मी राष्ट्रपति पीर, बवर्ची, भिश्ती, खर एक साथ बनकर अंतर्राष्ट्रीय सियासत की रसोई बिगाड़ रहा है।

लब्बोलुआब यही कि चुनाव, विकास, युद्ध, आपातकाल, महामारी, महंगाई या भ्रष्टाचार हो। निजाम अवाम से कहता है ‘चित मैं जीता, पट तू हारा।‘ कोरोना भी दुनिया से कह रहा है ‘हमारे साथ रहोगे तो मर जाओगे। हम तुम्हारे साथ रहेंगे तो जी जाएंगे। फैसला करो। चित मैं जीतूं पट तुम हारो।‘

कनक तिवारी

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