अंतागढ़ उपचुनाव खरीदी-बिक्री कांड के खलनायक तत्कालीन एसपी राजेन्द्र नारायण दास जांच के दायरे में ?

कांकेर । बहुचर्चित अंतागढ़ उपचुनाव के खरीद-फरोख्त कांड में मंतूराम पवार के बयान के बाद प्रदेश की राजनीति में बवाल आ गया है । इस कांड में प्रदेश के बड़े नेता तो पहले से ही जांच के दायरे में हैं पर मंतूराम के बयान के बाद सामने आए कांकेर पुलिस अधीक्षक राजेंद्र नारायण दास की गुंडा के रूप में भूमिका भी संभवत अब जांच के दायरे में आ जाएगा ।

     ज्ञात हो कि मंतूराम ने अपने कलम बद्ध बयान में बताया है कि कांकेर पुलिस अधीक्षक ने उसे तब धमकी  दी थी कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और  पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के निर्देश का पालन नहीं करने पर उसे झीरम कांड की तरह परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ज्ञात हो की तब मंतूराम पवार के अलावा अन्य 9 प्रत्याशियों से भी जोर जबरदस्ती का नाम वापस करवाया गया था तब भाजपा का प्रयास था कि बिना चुनाव लड़े ही अपने प्रत्याशी भोजराम नाक को निर्विरोध चुनाव जीताया जा सके । संभवत इसके पीछे उद्देश्य यही रहा होगा कि चुनाव खर्च को बचाकर कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार को बिठाने के लिए किए गए सौदे की राशि  जुटाया जा सके ।


        बी फार्म जारी होने के बाद मंतूराम के अचानक नाम वापस ले लेने से बौखलाई कांग्रेस ने प्रयास किया था कि बागी खड़े दो और एक निर्दलीय प्रत्याशी को धमतरी के एक कांग्रेसी नेता के यहां सुरक्षित रखा जाए पर कांकेर पुलिस ने तत्कालीन पुलिस अधीक्षक राजेंद्र दास के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ता और गुंडा की तरह काम करते हुए धमतरी पुलिस के सहयोग से उस कांग्रेसी नेता के घर में आधी रात धावा बोल दिया और घर में घुसकर उन तीनों प्रत्याशियों को निकालकर नाम वापसी के आखिरी दिन सीधे भाजपा कार्यकर्ताओं के सुपुर्द कर दिया ।


    कांकेर के कई पत्रकारों के पास आज भी उस नंगे नाच का वीडियो मौजूद है जिसमें कांकेर पुलिस की मौजूदगी में भाजपा नेता अशोक, आलोक ठाकुर व सैकड़ों कार्यकर्ता किस तरह से कंधा पकड़ कर धकियाते हुए इन प्रत्याशियों को नाम वापसी के लिए कलेक्टर परिसर लेकर आए थे । बाद में इस कुख्यात एसपी ने अपने आपको बस्तर के कुख्यात आईजी कल्लूरी का सबसे खास चमचे के रूप में स्थापित कर लिया था । तब जगदलपुर एसपी रहते दास कल्लूरी के साथ अन्य 6 जिलों के दौरे में भी साथ रहते थे । 

     कई फर्जी मुठभेड़ के लिए कुख्यात हुआ यह अधिकारी अग्नि और समाजिक एकता मंच  नाम के कुख्यात संस्था के सदस्यों के साथ मिलकर बस्तर के सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर हुए हमले में सीधी भूमिका के लिए भी कुख्यात हुआ था । तब उक्त अधिकारी पत्रकारों से सीधे मुंह बात भी नहीं किया करते थे । एक बार तो इन्होंने अग्नि के एक पदाधिकारी फारुख अली के मोबाइल से लीगल एड के कार्यकर्ताओं को धमकाया भी था । अब देखना यह है कि बहुचर्चित अंतागढ़ उपचुनाव खरीद-फरोख्त कांड में जांच का दायरा उक्त अधिकारी तक पहुंचता है कि नहीं जिसने तत्कालीन भाजपा सरकार में एक पुलिस अधिकारी नहीं बल्कि एक गुंडे के रूप में भूमिका निभाई ।

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