कल इरफ़ान गये, आज ऋषि कपूर भी चले गये!

हिन्दी-सिनेमा जगत में दोनों अलग-अलग अंदाज और मिज़ाज के कलाकार थे. दोनों की पारिवारिक और सामाजिक पृष्ठभूमि भी बिल्कुल अलग-अलग थी. पर यह दुखद संयोग रहा कि इनके जीवन-अवसान में एक समानता रही. इरफ़ान की तरह ऋषि कपूर भी सन् 2018 से ही कैंसर से जूझ रहे थे.


वह अपनी पहली फ़िल्म से ही मशहूर हो गये थे. होते भी क्यों नहीं, उनके पिता और भारतीय सिनेमा के महानतम शो-मैन राज कपूर साहब ने अपने छोटे बेटे के सिनेमाई-अवतरण के लिए हर संभव लोकप्रिय लेकिन इनोवेटिव-फार्मूले तलाशे, जो न सिर्फ उस फिल्म को बाक्स-आफिस पर कामयाबी दिलाये अपितु यादगार भी बना दे! यकीनन, वो फिल्म BOBBY हिन्दी सिनेमा की यादगार फिल्म बन गई!


वह फिल्म जब रिलीज़ हुई थी तो हम जैसे लोग इंटरमीडिएट के पहले साल में थे. अनगिनत सपनों के साथ ज़िंदगी किशोर से युवा होने की अंगड़ाई ले रही थी.


ठीक उसी दौर में ऋषि कपूर और डिम्पल कपाड़िया जैसे दो किशोर-किशोरी ‘हम तुम कमरे में बंद हों और चाभी खो जाये’—के साथ पर्दे पर आये! उसके बाद जो हुआ, वह हिन्दी सिनेमा के इतिहास का एक अविस्मरणीय अध्याय है!


दिवंगत ऋषि कपूर को सादर श्रद्धांजलि और उनके परिवार के प्रति हमारी शोक-संवेदना.

उर्मिलेश

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