हल्लो बोल !

आज की कविता

वो दबे-कुचले लोगों की आवाज़ बनता था, वो राजनीति से नाक-भौं सिकोड़ने वाले लोगों को जगाने का काम करता था, वो नाटकों के माध्यम से समाज को विरोध का ककहरा सिखाने की प्रथा का शिल्पकार बना, वो, जिसने मुखालफ़त के लोकतांत्रिक लेकिन असरदार तरीके से लोगों को वाकिफ़ कराया, वो, जिसका नाम सफ़दर हाशमी था, वो जिसे मार डाला गया.

12 अप्रैल 1954 को पैदा हुए नाटककार, एक्टर, डायरेक्टर, गीतकार सफ़दर हाशमी का 2 जनवरी 1989 में एक प्ले करते वक़्त क़त्ल कर दिया गया था. भारत के थिएटर इतिहास में जिस शख्स का रुतबा ध्रुव तारे जैसा है, उन सफ़दर हाशमी की उम्र अपनी मौत के वक़्त महज़ 34 साल थी.

नुक्कड़ नाटक शब्द के साथ जेहन में जो नाम उभरता है वह सफ़दर हाशमी जी का ही होता है ।

हाशमी यानी एक नाटककार, एक कलाकार, एक निर्देशक, एक गीतकार और एक कलाविद ।

भारत के राजनैतिक थिएटर का अप्रतिम सितारा । जन नाट्य मंच के संस्थापक ।

आज उनकी जयंती ( 12 अप्रैल 1954) पर निम्र वर्गीय किसानों, मज़दूरों और साधारण आदमी के लिए आमरण लड़ने वाले कामरेड को दिल से सलाम !

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो
क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो
ओ सड़क बनाने वालो, ओ भवन उठाने वालो
खुद अपनी किस्मत का फैसला अगर तुम्हें करना है
ओ बोझा ढोने वालो ओ रेल चलने वालो
अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है
क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो
पूछो, मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं?
पढ़ो,तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं?
पूछो, माँ-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं?
पढ़ो,तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं?
पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा
पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा
पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छुटकारा
पढ़ो, किताबें कहती हैं – सारा संसार तुम्हारा
पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक दिलवाना है
पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालो
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालो

सफ़दर हाशमी

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