आखिर नक्सलवाद के नाम पर कितने आदिवासी और सुरक्षाबल के जवानों की बलि चढ़ेगी ?

निर्मल कुमार शर्मा,


           अभी पिछले दिनों 4 अप्रैल 2021 को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों ने एक मुठभेड़ में 22 जवानों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दिए..इस दुःखद घटना के तुरंत बाद भारत के गृहमंत्री का एक घिसापिटा बयान आ गया कि ‘जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। ‘ पिछली काँग्रेसी सरकार के मुखिया सरदार मनमोहन सिंह जी ने भी भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सल समस्या को सबसे बड़ी समस्या बताए थे और ऑपरेशन ग्रीन हंट के तहत आदिवासी समाज के युवाओं को नक्सलियों से निपटने के लिए सीधे उनके हाथ में बंदूक पकड़ा दिए थे ! परन्तु हुआ कुछ नहीं। इसी प्रकार 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ की एक पूरी कंपनी को,जिसमें 75 जवान थे, नक्सलियों ने चारों तरफ से उन्हें घेरकर भूनकर रख दिया। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के कुरखेड़ा तहसील के दादापुर गांव में नक्सलियों ने 1-5-19 को गहन रात्रि में 1बजे से 4 बजे के बीच साजिशन सड़क निर्माण ठेकेदार की 25 वाहनों में आग लगा दी थी। उसके बाद वे उस रास्ते पर जिससे पुलिस आनी थी,बिस्फोटकों को लगाकर तैयार बैठे थे,पुलिसकर्मियों की गाड़ियों के आते ही उन्हें उड़ा दिया,जिसमें पुलिस के 15 कमांडो सहित ड्राइवर भी घटना स्थल पर ही उड़ा दिए गये,समाचार पत्रों में प्रकाशित फोटो देखकर बिस्फोट की भयावहता का सहज ही अंदाजा हो रहा है,जिसमें बिस्फोट में उड़ी बस के पहिए और उसकी इंजन अलग -अलग दिख रहे थे। इससे पिछले साल मतलब 22 अप्रैल 2018 को इसी गढ़चिरौली में ही महाराष्ट्र पुलिस ने 40 नक्सलियों को मार गिराया था,वैसे इसकी भी मजिस्ट्रेटी जाँच चल रही है कि वे सारे नक्सली ही थे या गाँव के निरपराध लोग ? इस घटना के बाद सरकार ने ढिंढोरा पीटकर बताया था कि ‘नक्सलियों की कमर तोड़ दी गई है ‘,परन्तु ठीक एक साल बाद ही उन्होंने 15 पुलिस कर्मियों को मारकर सरकारी दावे की धज्जियां उड़ा दिए,सूचना के अनुसार इस घटना को अंजाम देते समय उसके आसपास लगभग दो सौ नक्सली छिपकर बैठे हुए थे । हर बार ऐसी दुखद घटनाओं के बाद गृहमंत्री और प्रधानमंत्री का वही घिसापिटा बयान आ जाता है जैसे ‘नक्सलियों ने हताशा में यह कायराना हमला किया है। हमें अपने जवानों की बहादुरी पर गर्व है । इनका सर्वोच्च बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा आदिआदि । ‘ इन बयानों को सुनते-सुनते कान पक गए हैं । हर सुखसुविधा संपन्न बयानबाज सत्ता के कर्णधारों को शहादत की कितनी भयावह सजा उस मरनेवाले शहीद को मिलती है और उसके बाद उसकी विधवा,अनाथ बच्चों और बेसहारा माँ-बापों को ! ये उनके लिए कल्पनातीत बात है !       

     आखिर ये सत्ता के कर्णधार कितने लोगों की और बलि लेंगे और अपने भोथरे,घिसेपिटे बयान कितनी बार देते रहेंगे ?समाचार पत्रों के अनुसार पिछले 10 सालों में नक्सलियों द्वारा कुल 2289 घटनाओं को अंजाम दिए गये,जिनमें कुल 4467 लोगों की निर्मम हत्या हुई,जिसमें 1150 सुरक्षाबल के जवान अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं और 1300 जवान बुरी तरह से घायल होकर अपंग हो गये तो जाहिर सी बात यह है कि 2289 बार तत्कालीन प्रधानमंत्रियों और गृहमंत्रियों द्वारा खेद व्यक्त किया जा चुका है और इस समस्या के समाधान के लिए कसमें खाईं गईं होंगी !आखिर नक्सल समस्या का स्थाई समाधान क्यों नहीं किया जा रहा है ? सबसे बड़े दुःख की बात यह है कि इन दुखद घटनाओं में दोनों तरफ ही आम आदमी के भाई या उनके बेटे ही मरते हैं ! चाहे पुलिस वाले हों या गांव के आदिवासी युवक, युवतियां और बच्चे हों ! वास्तविकता यह है कि नक्सलवाद के नाम पर इन खूनी लड़ाइयों में नक्सलवादी कम,वहाँ के निरपराध गाँव वालों, उनके युवा लड़कों और लड़कियों को नक्सलवादी होने के शक में खून की नदियाँ बहा दी जातीं हैं, उनसे अकथनीय बलात्कार और दुर्व्यवहार की लोमहर्षक घटनाएं अलग से होतीं हैं ।           यक्षप्रश्न यह भी है कि पिछले 74 सालों से इन आदिवासी इलाकों का विकास क्यों नहीं हुआ ? सत्ताधारियों को विकास करने से कौन रोक रखा था ?विकास का मतलब केवल सड़क,पुल, बड़ी-बड़ी इमारतें और ऊँचे टेलीफोन टॉवर बनवाना नहीं होता हैं,अपितु वहाँ के गरीबी से अभिशापित आदिवासी समाज के बच्चों की शिक्षा,उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिए अस्पताल, उनके रोजी-रोटी के लिए रोजगार और अन्य विकास योजनाओं से उन सूदूर गाँवों के आदिवासियों को अब तक क्यों नहीं जोडा़ गया ? क्या वे पिछले 74 सालों से अपने देश के नागरिक ही नहीं हैं ?उन्हें अपना जीवन मनुष्य की तरह जीने का अधिकार अभी तक क्यों नहीं मिला है ? देश की स्वतंत्रता के 74 सालों बाद इन सूदूर आदिवासी इलाकों में इन पूँजीपतियों की गोद में खेल रही सरकारों को उन सुदूर आदिवासी इलाकों को जोड़ने वाली सड़क और पुलिया बनाने की अब सुध आई है,आदिवासियों के हित में काम करनेवाले पत्रकारों के अनुसार आज भी ये सड़कें और पुलिया आदिवासी पिछड़े समुदाय के विकास के लिए नहीं बनाए जा रहे,अपितु उनके जंगलों के नीचे छिपे अकूत खनिज संपदा को अडानियों और अंबानियों जैसे सरकार के कर्णधारों के लाडलों को सौंपने के पूर्व उन घने जंगलों वाले अभेद्य इलाके में पुलिस फोर्स आदि भेजकर उसे कब्जाने के लिए बनाए जा रहे हैं,ये साजिश आदिवासी समुदाय और समाज भी खूब ठीक से समझ रहा है,इसीलिए वे पुलिया और सड़क बनाने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।     


          बस्तर सॉलिडेरीटी नेटवर्क मतलब बी.एस.एन. के प्रवक्ता इसे सिर्फ सरकारों के कर्णधारों या पूंजीपतियों के दलालों द्वारा अमेरिका में कोलम्बस के बाद अमीरों के लिए, इतिहास की भूमि हथियाने का यह सबसे क्रूरतम् प्रयास है,भले ही इसका नाम नक्सलियों से या माओवादियों से युद्ध का नाम दे दिया जाय, अमेरिका में जैसे वहां के मूल निवासियों जिन्हें रेड इंडियन कहा जाता है और बाइसनों जो एक प्रकार का अमेरिकी भैंसा हैं उन दोनों का सामूहिक संहार कर यूरोपियन लूटेरे और हत्यारे अमेरिकी वहाँ की जमीन को बंदरबांट कर लिए,ठीक उसी की पुनरावृत्ति छत्तीसगढ़, झारखंड,उड़ीसा आदि आदिवासी बहुल इलाकों में उनकी सामूहिक रूप से नृशंस हत्या कर या जबरन भगाकर वहाँ की अमूल्य खनिज से समृद्ध जमीन को भारत सरकार के लाडले अंबानियों व अडानियों को कब्जाने का वीभत्स कुकृत्य तथाकथित इक्कीसवीं सदी के इस लोकतांत्रिक पद्धति में ये सत्ता के कर्णधार कर रहे हैं । यही लालच ही नक्सल समस्या की असली जड़ है । इसे न तो यहाँ की दृश्य मिडिया दिखाती है,न अधिकतर समाचार पत्र अपने अखबारों में छापना पसंद करते हैं ! न मोदी के चमचे कथित लेखक अपने लेखों में लिखते हैं। आज के ज्यादेतर तथाकथित लेखक और सम्पादक आदिवासी समाज के इस मूलभूत समस्या की असली जड़ को अपने लेखों से पूरी तरह गायब कर देते हैं,वे इस अतिअहंकारी और क्रूर सरकार को यह सलाह जरूर दे देते है कि अगली बार और ज्यादे फोर्स और सही खुफिया सूचनाओं के साथ हमला करके सारे नक्सलियों को खतम कर देना चाहिए ! जबकि वास्तविकता यह है कि इसी देश के एक अतिपिछड़े,गरीब,भोलेभाले और निश्छल आदिवासी लोगों के एक पूरे नस्ल और समूह की,लालच और हवश के वशीभूत होकर,सामूहिक और नियोजित हत्या कर या उनको दर-दर की ठोकर खाकर जीने को अभिशप्त करना किसी भी दृष्टिकोण से न तो न्यायोचित है,न मनुष्योचित  ! इसी देश में ठाटबाट से और विलासिता से रहने का अधिकार अगर दिल्ली सहित बड़े-शहरों में रहनेवाले तमाम धनाढ्यों,विधायकों,साँसदों, ब्यूरोक्रेट्स और अडानियों,अंबानियों को है,तो इसी देश में लाखों सालों से रहनेवाले धरतीपुत्रों और जंगलपुत्रों आदिवासियों को जीने के अधिकार से भी वंचित करने की यह सुनियोजित, सुचिंतित साजिश क्यों हो रही है ? इस देश,इस राष्ट्र और यहाँ के हर समाज के लोगों को भी इसी देश में अपना जीवन जीने का अधिकार यहाँ का संविधान देता है,कुछ बड़े गुँडों और शक्तिशाली समूहों को यह कतई अधिकार नहीं है कि वे अपने स्वार्थ और धनलिप्सा के लिए किसी को भी उसके इलाके से जबरन बेदखल करें। नक्सलवाद की समस्या की असली जड़ यही है कि अडानियों और अंबानियों के लिए दिल्ली की सत्ता पर बैठनेवाली सत्तारूढ सरकार के क्रूर और अमानवीय कर्णधार अपनी पालतू मिडिया के छद्मप्रचार और अपने फोर्स के बलपर आदिवासियों या जंगलपुत्रों को जबरन उनके जल,जमीन,जंगल से उजाड़ने का क्रूर कुप्रयास कर रहे हैं,ये सब कुकृत्य अब मानवता के नाते बंद होना ही चाहिए।-

निर्मल कुमार शर्मा,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!