छत्तीसगढ़ का ड्राफ्ट कानून: सरकारी कर्मचारी जो पत्रकारों की सुरक्षा में नाकाम होंगे, जेल जायेंगे !

छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने वादे के अनुसार ““छत्तीसगढ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ मीडियापर्सन्स कानून” (“Chhattisgarh Protection of Mediapersons Act”), जिसका ड्राफ्ट एक समिति द्वारा तैयार किया गया है, जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अफताब आलम जी हैं ।

यह एक सराहनीय कदम है, और इसके लिए मुख्य मंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में छत्तीसगढ़ सरकार बधाई की पात्र है । लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि छत्तीसगढ़ में मीडिया कर्मियों और जन-संगठनों ने इसके लिए लम्बा संघर्ष किया है, और कुर्बानी दी है । यहाँ तक कि कई मीडिया कर्मियों को इस संघर्ष के दौरान उत्पीडन और हिंसा का सामना करना पड़ा है ।

न्यायमूर्ति अफताब आलम की अध्यक्षता वाली इस समिति के ड्राफ्ट के बारे में मोटी-मोटी जानकारी *“द वायर”* (The Wire) में प्रकाशित एक लेख को पढने से मिली थी, जिसे *मेहताब आलम*ने लिखा है । भूमकाल समाचार के लिए इस लेख का अनुवाद छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध जनवादी चिंतक राजेन्द्र सायल जी ने किया है । जनहित में इसे ज्यों का त्यों “द वायर” की अनुमति लेकर साभार प्रकाशित कर रहे हैं ,ताकि यह जानकारी कम-से-कम छत्तीसगढ़ के मीडिया कर्मियों और जन संगठनों को मिल सके, जिन्होंने पिछले तीन वर्षों से पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए एक सघन अभियान चला था ।

यहाँ तक कि छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. (लोक स्वातंत्र्य संगठन) और “पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति” ने इस कानून का ड्राफ्ट तैयार कर इस पर सघन चर्चा चलाई थी ।

लेकिन इस खबर से पता चलता है कि इस ड्राफ्ट को बनाते समय न केवल इस कानून के हितधारकों (stakeholders) को दरकिनार कर दिया गया है, वरन उस ड्राफ्ट कानून को भी नज़रंदाज़ किया गया जो दो वर्ष पहले ही तैयार किया गया था, और जिसमें देश के तमाम जाने-माने वरिष्ठ और युवा पत्रकार और साथ ही वरिष्ठ न्यायविद , अधिवक्ता शामिल थे ।

फौरी तौर पर इस ड्राफ्ट के बारे में “द वायर” (The Wire) प्रकाशित लेख को पढने से ऐसा लगता है कि जाने-अनजाने मीडिया कर्मियों की लगाम कहीं पुलिस और प्रसाशन के हाथ में तो नहीं दी जा रही है? ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग ने ” द वायर ” से बातचीत में बताया है कि इस ड्राफ्ट के अनुसार प्रत्येक जिले में जो “जोखिम प्रबंधन इकाई” रहेगी उसमें कुल 5 सदस्यों में से मीडिया से केवल 2 सदस्य होंगे जबकि बाकी तीन सदस्यों में जिला जनसंपर्क अधिकारी, पुलिस अधीक्षक व जिला कलेक्टर शामिल होंगे । सच तो यही है कि अक्सर सत्ता पक्ष की ओर से पत्रकार ज्यादातर प्रताड़ित होते हैं और यह प्रताड़ना अक्सर जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक की जानकारी में या निर्देशन में ही होता है तीसरे सदस्य जिला जनसंपर्क अधिकारी की भूमिका तो वैसे भी सत्ता पक्ष के साथ ही रहता है तो अब इस समिति से पत्रकारों की सुरक्षा का भरोसा कैसे किया जाए ?

आशा है छत्तीसगढ़ सरकार इस कानून को अंतिम रूप देते समय इन खामियों को दूर करते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों का पालन करते हुए एक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में इस कानून के हितधारकों (stakeholders) को शामिल करेगी

संपादक भूमकाल समाचार

वर्षों से मीडिया और पत्रकारों पर हमलों के लिए राज्य सुर्ख़ियों में रहा है


अंग्रेजी मूल से अनुवादित

महताब आलम


नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अफताब आलम की अध्यक्षता वाली समिति ने छत्तीसगढ़ में मीडिया के लोगों की सुरक्षा के लिए विधेयक का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. इस समिति का गठन फरवरी माह में एक ड्राफ्ट विधेयक बनाने के लिए किया गया था, जिसके ज़रिये राज्य में मीडिया के बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की जाएगी.

Representative image. Credit: Karnika Kohli/The Wire


यह विधेयक ऐसे सरकारी कर्मचारियों के लिए एक वर्ष तक की कैद का प्रावधान निर्धारित करता है, जो उसके अधीन किए जाने के लिए आवश्यक कर्तव्यों की जानबूझकर उपेक्षा करते हैं. अगर अधिनियिमित किया गया, तो इस अधिनियम के तहत किये गए अपराधों की जांच एक पुलिस अफसर द्वारा की जाएगी, जो उप-अधीक्षक के पद से नीचे नहीं होगा, और ऐसा अपराध संज्ञेय और जमानती होगा.


हालांकि, एक सदस्य के मुताबिक, जिन्होंने गुमनाम रहने का अनुरोध किया, यह अंतिम मसौदा नहीं है. “इसे अंतिम प्रारूप देने के पहले हम पत्रकारों और मीडिया संगठनों से जैसे कि प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया और एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया से भी सुझाव लेंगे”, उन्होंने “द वायर” (The Wire) को सूचित किया.


इस ड्राफ्ट विधेयक के मुताबिक, जिसे “छत्तीसगढ़ प्रोटेक्शन ऑफ़ मीडियापर्सन्स कानून” (“Chhattisgarh Protection of Mediapersons Act”), के नाम से जाना जायेगा, सरकार द्वारा मीडिया कर्मियों की सुरक्षा के लिए एक समिति का गठन किया जायेगा. यह राज्य-स्तरीय समिति मडिया कर्मियों के उत्पीड़न, धमकी या हिंसा की शिकायतों या मीडिया कर्मियों पर ठोंके गए अनुचित मुकदमों और गिरफ्तारियों से निपटेगी. इस समिति में एक पुलिस अफसर होगा जो अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के रैंक से नीचे नहीं होगा, जनसंपर्क विभाग के प्रमुख, और तीन मीडिया कर्मी जिन्हें कम-से-कम बारह वर्षों के अनुभव हो, और जिनमें से कम-से-कम एक महिला होगी. ड्राफ्ट के अनुसार, मीडिया कर्मी इस समिति के सदस्य के रूप में दो वर्षों के लिए नियुक्त होंगे, और लगातार दो कार्यकालों से अधिक पद धारण नहीं करेंगे.


कई वर्षों से पत्रकारों और मीडिया पर हमलों के लिए छत्तीसगढ़ ख़बरों की सुर्ख़ियों में रहा है. मीडिया वाच डॉग की वेबसाइट द हूट (The Hoot) में सन 2017 में प्रकाशित रपट के अनुसार, छत्तीसगढ़ में पुलिस ने 13 पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाई की, जो देश भर में सबसे अधिक रही. पिछले साल, विधान सभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी – जो उस समय विपक्ष में थी, और वर्तमान में राज्य में सत्तारूढ़ है – ने अपने घोषणा पत्र में वायदा किया था कि अगर उसे चुन कर सत्ता में बैठाया गया तो वह पत्रकारों की सुरक्षा पर एक कानून लागू करेगी.

विलंब के लिए चिंता: Concerns over delay

इस नवीनतम विकास पर टिपण्णी करते हुए, वरिष्ट पत्रकार और “पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति” के अगुवा कमल शुक्ल ने कहा कि उन्होंने ड्राफ्ट नहीं देखा है, “जब तक हम विधेयक का ड्राफ्ट न देख लें, मैं उस पर टिपण्णी करने में असमर्थ हूं”, उन्होंने “द वायर” (The Wire) को बताया.

शुक्ल के अनुसार, जहां तक पत्रकारों की सुरक्षा और रक्षा का मसला है तो कांग्रेस शासन काल में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने कहा कि जब से भूपेश बघेल मुख्य मंत्री बने हैं, कम-से-कम 22 पत्रकारों पर अभियोग दायर किया गया है, और छह पत्रकारों को जेल भेजा गया है, जिसमें से तीन पत्रकारों के साथ बेरहमी से मार-पीट की गई है.
उन्होंने इस कानून के अधिनियम में देरी पर चिंता जताई, यह इंगित करते हुए कि कांग्रेस ने सरकार बनाने के 100 दिनों के भीतर कानून लाने का वादा किया था. “अभी तक तकरीबन एक वर्ष पूरे होने को आ गया है, और अभी तक विधेयक पारित नहीं हुआ है. ड्राफ्ट तैयार करने के पहले, समिति ने किसी भी स्थानीय पत्रकार से मुलकात नहीं की”, शुक्ल का कहना है.
लेकिन, एक स्रोत जो समिति के नज़दीकी है ने दावा किया कि न्यायमूर्ति आलम द्वारा नियुक्त एक टीम ने छत्तीसगढ़ का दौरा किया और स्थानीय लोगों से विचारों का आदान-प्रदान किया. मुख्य मंत्री बघेल के मीडिया सलाहकार, रुचिर गर्ग, जो इस विधेयक को ड्राफ्ट करने वाली समिति के सदस्य भी हैं, ने कहा कि सरकार इस कानून को लाने के प्रति समर्पित है, और वह “इस दिशा में गंभीरता से काम कर रही है.” “इसकी गंभीरता के बारे में कोई शक-शुबह नहीं है. समय इसलिए लग रहा है क्योंकि यह एक महत्त्वपूर्ण कानून हैं, और समिति इस मसले के हरेक पहलू पर नज़र डाल रही है”, गर्ग ने “द वायर” (The Wire) को बताया.

“जोखिम प्रबंधन इकाइयाँ” ‘Risk management units’

इस विधेयक में हरेक ज़िले में “जोखिम प्रबंधन इकाइयों” (Risk Management Units) की स्थापना भी निर्धारित की गई है. इन इकाइयों में जिला कलेक्टर, ज़िला जन-संपर्क अधिकारी, पुलिस अधीक्षक, और दो मीडिया कर्मी होंगे, जिन्हें कम-से-कम सात वर्षों का अनुभव हो, और इनमें से कम-से-कम एक महिला होगी. कलेक्टर और ज़िला जन-संपर्क अधिकारी क्रमश: इसके अध्यक्ष और सदस्य सचिव होंगे.

विधेयक में यह भी है, कि:

“जोखिम प्रबंधन इकाई के प्रत्येक सदस्य पर यह अनिवार्य होगा कि सुरक्षा की ज़रुरत में व्यक्तियों को उत्पीड़न, धमकी या हिंसा की धमकी की शिकायत या सूचना मिलने पर तुरंत उस शिकायत या सूचना को ज़िला कलेक्टर या पुलिस अधीक्षक को प्रेषित करना है, जो अविलम्ब उस पर – अ) आवश्यकता अनुसार ऐसे आपातकालीन सुरक्षा उपाय करेंगे; और ब) जोखिम प्रबंधन इकाई की बैठक आयोजित करेंगे.”

ड्राफ्ट के अनुसार, इसके बाद “जब जोखिम प्रबंधन इकाई यह निर्धारित कर ले कि सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होगी, तो यह उन लोगों की सुरक्षा के लिए जल्द-से-जल्द एक संरक्षण योजना तैयार करेगी जिन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है, और किसी भी ऐसी घटना में शिकायत या सूचना मिलने के 15 दिनों के भीतर ऐसा करेगी.”

यह विधेयक सुरक्षा योजना और आपातकालीन संरक्षण उपायों को भी निर्धारित करता है जिन्हें “उस व्यक्ति के परामर्श से तैनात किया जाएगा जिसे सुरक्षा की आवश्यकता है, सिवाय इसके कि जोखिम की प्रकृति या उस व्यक्ति के लिए खतरा एकदम नज़दीक है कि परामर्श के लिए समय ही नहीं है।”

Chhattisgarh has been in the news for attacks on journalists. Representative image. Photo: Reuters

किसे सुरक्षा प्रदान की जाएगी? Who will be granted protection?

जिनको सुरक्षा प्रदान की जानी है उनके लिए ड्राफ्ट कानून में सुरक्षा पाने की तमाम योग्यताएं तय की गयीं है. यह मॉस मीडिया को “संचार के कोई भी माध्यम जो नियमित रूप से सूचना के प्रसार के प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं, और विचारों और राय की अभिव्यक्ति के उद्देश्यों के लिए उपयोग किये जाते हैं, जिसमें डिजिटल मीडिया, जैसे कि समाचार पोर्टल, वेब पत्रिकाएं, शामिल हैं.” उन मीडिया कर्मियों को संरक्षण दिया जाएगा जिन्होंने पूर्ववर्ती तीन महीनों में मास मीडिया में छह लेख प्रकाशित किए हैं, और उन लोगों को भी जिन्होंने पिछले छह महीनों में समाचार संकलन के लिए मीडिया प्रतिष्ठानों से तीन भुगतान प्राप्त किए हैं, या जिन्होंने ऐसी तस्वीरें लीं हों जो पूर्व के तीन महीनों में तीन बार मॉस मीडिया में प्रकाशित की गईं.
स्तंभकार या फ्रीलांसर जिनकी कृति पूर्ववर्ती छह महीनों में मॉस मीडिया में छह बार प्रकाशित हुई हो या पूर्ववर्ती तीन महीनों में छह बार मास मीडिया के लिए रिपोर्ट की गई खबरों या विचारों को भी इस कानून के तहत संरक्षित किया जाएगा. जिन मीडियाकर्मियों के पास एक वैध पहचान पत्र या एक पत्र है जो प्रमाणित करता है कि आवेदक वर्तमान में एक मीडिया प्रतिष्ठान द्वारा नियोजित है, उसको भी इस कानून के तहत सुरक्षा दी जाएगी.

अंग्रेजी मूल से अनुवादित
राजेन्द्र सायल
rajendrasail@gmail.com


अंग्रेजी लेख के लिए देखें:
https://thewire.in

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