रविशंकर प्रसाद, संविधान और नन्दलाल बोस

कनक तिवारी

केन्द्रीय विधिमंत्री रविशंकर प्रसाद की एक बंद कमरे की सभा में व्याख्यान के वीडियो का एक टुकड़ा एक मित्र ने भेजा था। उनके अनुसार भारत के संविधान की मूल प्रति में सभा की इच्छा ने देश की विरासत का प्रयोजन गूंथने के लिए शांतिनिकेतन के प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस को जिम्मा दिया। राजनीतिक लिहाज से कांग्रेस ही कांग्रेस थी। गांधी जी द्वारा नेहरू और पटेल को समझाइश के बाद कांग्रेसी समर्थन से श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी जिताकर शामिल किए गए।

मंत्री जी ने चेहरे पर आत्मगौरव के सायास कंटूर उगाते नागरिकता का परिच्छेद श्रोताओं को दिखाते बताया उसमें वैदिक जीवन का चित्रण है। भाग 3 के मूल अधिकारों की शक्ल पर गौरवमयी भावना उगाकर दिखाया उस पर भगवान राम श्रीलंका से लौटकर अयोध्या के सिंहासन की ओर बढ़ रहे हैं। (उस समय हालांकि श्रीलंका नहीं लंका ही थी।) प्रायोजित सभा में तयशुदा तालियां बजीं। आत्मतुष्टि तथा सावधानी के अनुपात में आत्मगौरव से कहा इस पृष्ठ पर भगवान श्री कृष्ण महाभारत के युद्ध में अर्जुन को शिक्षा दे रहे हैं। द्वापर समर्थक तालियां बजीं। पन्ने पलटते कहा दिखाना चाहता हूं ठेके वगैरह से संबंधित व्यावसायिक मुद्दों के हिस्से में भगवान नटराज की मूर्ति का चित्रण है। दक्षिण भारतीय मित्रों सहित तालियां बजीं। सगर्व कहा पुस्तक में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हैं। राणाप्रताप हैं। कबीरदास हैं। महात्मा गांधी हैं। सुभाषचंद्र बोस हैं। अकबर भी हैं। लेकिन यह महत्वपूर्ण है औरंगजेब नहीं हैं। ऐसा कहते कहते मंत्री जी की बाछें खिल गईं।

फिर संविधान का अखिरी पृष्ठ दिखाया। उस पर संविधान सभा के अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, अंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू और तमाम सदस्यों के हस्ताक्षर हैं। (नेहरू का नाम आखिर में ही ले लिया।) 26 नवंबर 1949 को संविधान बनने का काम पूरा होने पर अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने साफ कहा था ‘‘संविधान के लक्ष्यमूलक संकल्प को ओजस्वी भाषण द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पेश किया था जो संविधान की प्रस्तावना है। भिन्न भिन्न पहलुओं पर विचार करने के लिए नियुक्त कई समितियों के सभापति या तो पंडित नेहरू थे या सरदार पटेल। इस प्रकार हमारी संविधान की मूलभूत बातों का श्रेय इन्हीं दोनों को है।‘‘ गंभीर चेहरा बनाकर मंत्री ने कहा बताना चाहते हैं ऐसा आज चुनिंदा दर्शकों को क्यों दिखाया। (यही क्लाइमैक्स था जिसके लिए यह सभा प्रायोजित की गई थी।) प्रसाद ने जोर देकर कहा संविधान हमारे अस्तित्व की बुनियादी पुस्तक है। अचानक वामपंथी तत्वों पर हमला किया। पूछा कि क्या वामपंथियों ने मूल संविधान की प्रति देखी भी है? फिर कहा सवाल इसलिए उठा रहा हूं आज भारत का संविधान लिखना पड़े तो क्या हम ठीक इसी रूप में संविधान लिखकर और ऐसा ही चित्रित कर देश को दे सकते हैं। उन्होंने फिर पूछा जिस तरह संविधान सभा ने यह संविधान चुनिंदा चित्रों के कोलाज सहित इतिहास की तरह दिया है। क्या आज हम मौजूदा परिस्थिति में ठीक उसी तरह संविधान बनाकर प्रकाशित भी कर सकते हैं। (सधे हुए ढंग से कैमरा श्रोताओं की ओर मुड़ा और कई लोग सिर हिलाकर मंत्री का समर्थन करते दिखाए गए।) उन्होंने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा लोग कह रहे हैं भारत सांप्रदायिक हो रहा है। सबका स्तर इतना नीचे गिर गया है। यह ऐसे लोग कर रहे हैं जो राज्य शक्ति से फायदे का लेनदेन कर मिलीजुली शोधवृत्ति के जरिए संविधान के मर्म को ही हाइजैक करते रहे हैं।

रविशंकर प्रसाद ने तथ्यों की गलतबयानी भी की। संविधान सभा ने नंदलाल बोस को कोई निर्देश नहीं दिए थे। प्रसिद्ध कलाविद ने स्वेच्छा से सांस्कृतिक वांग्मय से कुछ कालजयी क्षण चुने और जगह जगह अंकित किया। चित्रकार ने 22 चित्रों को इतिहास के कालखंडों में विभाजित करते कलात्मकता गूंथी। प्रसाद ने नहीं बताया पहला परिच्छेद मोहनजोदड़ो की सभ्यता से लिया गया जो प्रतीक चिन्ह पृष्ठ 1 पर अंकित है। मोहनजोदड़ो संविधान निर्माण के पहले से ही पाकिस्तान में चला गया। फिर भी संविधान सभा ने नंदलाल बोस के चित्र को स्वीकार किया। क्या संविधान की यह कलात्मक महायात्रा मौजूदा सत्ताधारियों को कुबूल है? वैदिक कालखंड में गुरुकुल का चित्र तो है। वह लेकिन आज की शिक्षा व्यवस्था के निजीकरण पर गहरा तमाचा नहीं है?

महाकाव्य युग लिखा है। उसमें ही राम और कृष्ण के चित्र का विवरण है। नंदलाल बोस ने उन्हें ऐतिहासिक नहीं सांस्कृतिक पथिक कहा। (रामजन्मभूमि से लेकर रणछोड़दास की द्वारिका की साहसिक हिंदुत्व यात्रा लेकिन ऐसी नहीं है। उन्हें धार्मिकता उभारने की खमीर नंदलाल बोस ने नहीं कहा।) बोस शांतिनिकेतन के कला विभाग के अध्यक्ष रहे। वहां गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की राष्ट्रवाद समीक्षक थ्योरी उपजी। वह पूरी तौर से हिंदुत्व की संकीर्ण थ्योरी को नकारती है। यह मंत्री जी ने नहीं बताया।

महान जनपद और नंदयुग में बुद्ध और महावीर को शिक्षाएं देते हुए बताया गया है। दोनों मसीहा बौद्ध और जैन धर्मों के संस्थापक के रूप में संकीर्ण हिंदुओं के मनसबदारों के कारण अलग हो गए थे। यह संकेत नंदलाल बोस के चित्रों के चुनाव से समझा जा सकता है। बुद्ध की शिक्षा को बढ़ाता सम्राट अशोक का चित्र मौर्यकाल खंड से लिया गया है। गुप्त युग से तीन चित्रों में युग का विकास, विक्रमादित्य का दरबार और नालंदा का प्रतीक चिन्ह है। (वही नालंदा जिसके पास तक्षशिला बताई गई)। मध्ययुग के तीन चित्र उड़ीसा के शिलालेख, नटराज की मूर्ति और भगीरथ द्वारा गंगा अवतरण की तपस्या दिखाई गई है जो महाबलिपुरम के प्रस्तर अभिलेखों में है। मुस्लिम कालखंड में अकबर के दरबार और शिवाजी और गुरु गोविंदसिंह के चित्रों का समावेश है। यहां औरंगजेब का जोर देकर उल्लेख करते मंत्री जी ने झटके में कहा संविधान में महाराणा प्रताप और कबीरदास के चित्र हैं। इन दोनों महापुरुषों के चित्र संविधान में बिल्कुल नहीं हैं।

मजेदार तब हुआ जब ब्रिटिश कालखंड में हुकूूमत के खिलाफ केवल झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और टीपू सुल्तान को दिखाया गया। बाकी को छोड़ दिया ऐसा निष्कर्ष निकलेगा? टीपू सुल्तान को लेकर मंत्री जी चुप रहे। यदि संविधान में अनुदेश के रूप में चित्र हैं तो मौजूदा शासन टीपू सुल्तान का मूल्यांकन करने के कुछ कर भी रहा है? आजादी की लड़ाई वाले परिच्छेद में दांडी मार्च और नोआखाली यात्रा करते गांधी हैं। गांधी नोआखाली में हिंदू मुस्लिम हिंसा मिटाने गए थे। संघ परिवार उस वक्त गांधी के साथ तो नहीं था। यदि सहमत था तो गांधी की हत्या क्यों की गई। नेताजी सुभाष बोस देश के बाहर से हिंदुस्तान को आजाद कराने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहते आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांग रहे हैं। जबकि उन्हें आसमान के देवता की तरह बता रहे हैं। (कहां है कांग्रेस? उसे तो यह चित्र बड़े बड़े होर्डिंग बनाकर सारे देश में प्रचारित करना चाहिए और रविशंकर प्रसाद को धन्यवाद देना चाहिए कि देश को नसीहत देते केवल जुमलेबाजी करते रहे। हिमालय, मरुस्थल और समुद्र के भी चित्र हैं।)

रविशंकर प्रसाद ने 1942 के विश्व युद्ध और भारत छोड़ो आंदोलन को गड्डमगड्ड करके एकाध असंगत सा वाक्य कह दिया जिसका खुलासा नहीं किया। फिर वामपंथी इतिहासकारों और सरकार की सांठगांठ को कोसा। भूल गए कि भारत का संविधान 1942 के 8 वर्षों बाद बना। रवींन्द्रनाथ टैगोर और मोतीलाल नेहरू दोनों मित्र 1861 में पैदा हुए। गुरुदेव ने जवाहरलाल नेहरू को भारत का ऋतुराज कहा था। शांतिनिकेतन में इंदिरा गांधी को शिक्षा और प्रियदर्शिनी नाम मिला। श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी बंगाल से थे और नंदलाल बोस के काम से अच्छी तरह परिचित भी। वे नेहरू मंत्रिमंडल के सदस्य थे भले ही हिंदू महासभा से नेहरू और श्यामाप्रसाद मुखर्जी की नंदलाल बोस के चित्रों की अनुकूलता के संबंध में सहमति अवश्य रही होगी। यह याद रखना भी रविशंकर प्रसाद के लिए महत्वपूर्ण था।

संघ परिवार में अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दू मुस्लिम साझा विरासत को अपने बाकी कुल भाइयों से बेहतर समझते रहे हैं। तभी तो साझा सरकार पूरे कार्यकाल तक चला सके। आडवाणी कुछ कम समझते थे लेकिन उन्होंने और जसवंत सिंह ने जिन्ना की तारीफ करके बाबरी मस्जिद गिराकर भी राजनीतिक वनवास मोल ले लिया। संविधान की आयतों, विवेकानन्द की शिक्षाओं, भगतसिंह के कथन और सुभाष बोस के नेतृत्व में चुन छांटकर ये राष्ट्रवादी ऐसी मान्यताएं ढूंढ़ते हैं जिनका हिन्दुत्वीकरण करके नासमझ मतदाताओं के गले उतार दिया जाए। यह काम वे बखूबी कर रहे हैं और आगे नहीं करेंगे इसकी कौन गारंटी लेगा। चित्रों के जरिए नंदलाल बोस संवैधानिक मान्यताएं स्थिर कर ही नहीं सकते थे। वे भारतीय इतिहास के कुछ कालक्षण बहुत कम समय दिए जाने पर भी चित्रित कर रहे थे। अंत से लेकर अनंत तक शोध हिन्दुत्व की ताकतें करती रही हैं। रविशंकर प्रसाद भी उसकी अकादेमिक काउंसिल में तो हैं ही।

कनक तिवारी जी छत्तीसगढ़ सरकार के महाधिवक्ता हैं , वे देश के विद्वान राजनीतिक विचारक व लेखक के रूप प्रसिद्ध हैं

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