क्या मोदी सरकार ने एयरपोर्ट भी बेच दिए हैं?

अब भी आपको इस सरकार की नीयत पर संदेह नही होता तो मुझे आपकी समझ पर संदेह जरूर होता है !!

गिरीश मालवीय

सरकार हवाई अड्डों को निजी हाथों में सौंपने का दूसरा चरण शुरू करने जा रही है ओर पिछली बार की तरह इस बार भी अडानी के हाथों ही बाजी लगने वाली है…….. पहले चरण में अदानी एंटरप्राइजेज छह में से छह हवाई अड्डों के संचालन की बोली जीत चुका है और अब नए छह हवाई अड्डे में वाराणसी, इंदौर, रायपुर, भुवनेश्वर, अमृतसर और तिरची की बोली लगाई जाएगी

यदि आप किसी सरकारी ठेके की प्रक्रिया से वाकिफ हो तो जानते ही होंगे कि ठेका या तो एक साल या तीन साल या बहुत अधिक से अधिक 5 साल की अवधि के लिये दिया जाता है, अगर आपकी पकड़ बहुत तगड़ी हो तो आप नियम शर्तों में परिवर्तन करवा कर इसे 10 साल के लिए हासिल कर सकते हो. लेकिन आप को यह जानकर बेहद हैरानी होगी कि अडानी इंटरप्राइजेज को बोली दस्तावेजों के नियमों और शर्तों के अनुसार इन 6 हवाई अड्डों के संचालन, प्रबंधन और विकास के लिए 50 साल का ठेका मिला हैं……..

क्या आपने किसी भी इससे पहले 50 साल के लिए ठेका दिए जाने की बात कभी सुनी है?……. यह लगभग ऐसा ही है जैसे किसी आपके नाम, आपकी अगली पीढ़ी के नाम पर पूरी प्रोपर्टी लिख दी हो ऐसे भी चमत्कार इस सरकार में हो रहे हैं ओर यह सारे धतकरम पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के नाम पर किये जा रहे हैं…….

सरकार की ही जानकारी बताती है कि देश में 123 में से केवल 14 हवाई अड्डे लाभ की स्थिति में हैं, शेष 109 नुकसान में हैं। और इन 14 में से 5 हवाई अड्डे निजी हाथों में सौंपे जा रहे हैं। ओर बाकी बचे अब सौप दिए जाएंगे……

एयरपोर्ट निजी क्षेत्र को सौपने के साथ मोदी सरकार ने एक बड़ा कमाल ओर किया है जिसकी जानकारी अभी लोगो को नही है …………..मोदी सरकार ने दुबारा शपथ लेने के बाद पहला काम यह किया कि उसने भारतीय हवाईअड्डा आर्थिक नियमन प्राधिकरण संशोधन अधिनियम संसद से पास करवा दिया………..

अब तक यह व्यवस्था है कि हवाईअड्डों की निगरानी का पूराजिम्मा इंडियन एयरपोर्ट ऑथोरिटी AAI के पास होता है लेकिन अब इस नए अधिनियम के अनुसार पूर्व-निर्धारित शुल्कों या शुल्क-आधारित निविदा के आधार पर ऑपरेटरों को सौंपे गए हवाईअड्डों का नियमन अब AAI के हाथों नहीं होगा। उस से सलाह अवश्य ली जाएगी लेकिन अब बड़े हवाईअड्डों पर हरेक पांच साल पर शुल्क निर्धारित करने में नियामक की प्रभावी भूमिका नहीं रह जाएगी। सरकार ने तर्क दिया है कि ‘ऐसे शुल्क-आधारित मॉडल में बाजार अपने-आप शुल्क दरें तय करता है और परियोजना आवंटित कर दिए जाने के बाद शुल्क तय करने में नियामक की कोई जरूरत नहीं है’।

अब भी आपको इस सरकार की नीयत पर संदेह नही होता तो मुझे आपकी समझ पर संदेह जरूर होता है

गिरीश मालवीय

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