भूपेश सरकार ने आदिवासियों के साथ किया धोखा, कांकेर ज़िले में ” जमीन अदला बदली” पीड़ित ग्राम में बेदखली की प्रक्रिया आरम्भ

छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन ने जताई चिन्ता

वन अधिकार पत्रक अप्राप्त, पांचवी अनुसूची एवं पेसा कानून का भी उल्लंघन ।

कांकेर जिले में अंतागढ़ तहसील के ग्राम कलगाँव में 30 से अधिक परिवारों को बेदखली के नोटिस प्राप्त होने पर छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन ने गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इसी गाँव की जंगल भूमि को 2017 में छत्तीसगढ़ शासन ने भिलाई इस्पात संयत्र (बीएसपी) को “अदला बदली” की फर्जी और गैर कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत हस्तांतरित किया था, जिस पर तब कांग्रेस पार्टी द्वारा इसी प्रक्रिया को गैर संवैधानिक और पेसा कानून 1996 के सिद्धान्तों के विपरीत बताया गया था, परन्तु आज उसी प्रक्रिया को यह सरकार आगे बढ़ाते हुए उस भूमि पर खेती कर रहे किसानों को बेदखल करने जा रही है।

ज्ञात हो कि इस “अदला बदली” के अन्तर्गत शासन द्वारा भिलाई इस्पात संयत्र (बीएसपी) की स्वामित्व की दुर्ग ज़िले में सामान्य क्षेत्र में भूमि आई आई टी भिलाई के निर्माण हेतु ली गई थी और उसके बदले में बीएसपी को रावघाट खनन परियोजना हेतु पांचवी अनुसूची क्षेत्र के कई गाँवों में ग्राम सभा की आपत्तियों के बावजूद निःशर्त भूमि प्रदान की गई थी ।

ग्राम कलगाँव में इस झुड़पी जंगल की भूमि पर आदिवासी और अन्य समुदायों के किसान कई पीढ़ियों से काबिज हैं, और इसका अन्य ग्रामवासियों द्वारा निस्तार के लिए भी प्रयोग होता है। सन् 2009 से ग्रामवासियों ने वन अधिकार मान्यता के लिए वन अधिकार दावे दर्ज किये हैं, परन्तु आज तक उन्हें इससे सम्बंधित कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। ग्रामवासियों के वन अधिकारों को मान्यता देने के बजाय इस भूमि को बीएसपी को आवंटित करने की गैर कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ ग्रामवासियों ने दर्जनों शिकायत, प्रदर्शन एवं पत्राचार किये है। परन्तु इन नोटिसों से स्पष्ट है कि वे आज भी अतिक्रामक ही माने जा रहे हैं, और बीएसपी भूमिस्वामी। चुनाव समाप्त होने के तुरन्त बाद अप्रैल 24 से लेकर अप्रैल 27 तक अंतागढ़ में इन ग्रामीणों की बेदखली पर सुनवाई नियत है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के केसव शोरी, शालिनी व अर्चित ने आज जरी विज्ञप्ति में छत्तीसगढ़ सरकार की दोगली नीतियों की निन्दा करते हुए कहा कि जहाँ एक ओर राष्ट्रीय स्तर पर भूपेश बघेल की सरकार सर्वोच्च न्यायालय के 13 फरवरी के वन अधिकार पत्र के निरस्तीकरण उपरांत बेदखली के आदेश को चुनौती देनी की बात कर रही है, वहाँ दूसरी ओर अपने ही ग्रामों में वन अधिकार मान्यता कानून की अधूरी प्रक्रिया के बावजूद ग्रामवासियों को बेदखल किया जा रहा है। आदिवासियों और ग्रामीणों की बेदखली के लिये यह अभियान जो चुनावी समय पर भी चालू है, चुनाव के पश्चात और भी रफ़्तार पकड़ेगा और न जाने कितने आदीवासी परिवारों को चपेट में लेगा। छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन ने इस बेदखली की प्रक्रिया का पुरज़ोर विरोध किया है और तत्काल इसे रोकने, गैरकानूनी जमीन अदला बदली प्रक्रिया को निरस्त कर काबिज लोगों के वनाधिकारों को मान्यता देने की मांग की हैं।

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