आम चुनाव 2019: वोटर लिस्ट से दो करोड़ महिलाओं के नाम ‘ग़ायब’

आम चुनाव 2019: वोटर लिस्ट से दो करोड़ महिलाओं के नाम ‘ग़ायब’

भारत में महिलाओं को वोट देने का अधिकार उसी साल मिल गया था, जिस साल भारत देश बना था. एक औपनिवेशिक राष्ट्र रह चुके भारत के लिए ये एक बड़ी कामयाबी थी.

लेकिन इसके 70 साल बाद 2 करोड़ 10 लाख महिलाओं से वोट देने का अधिकार क्यों छिन लिया गया है? भारत के सामने ये एक बड़ा सवाल है.

भारत में महिलाएं बढ़-चढ़कर मतदान करती रही हैं: इस साल होने वाले आम चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से ज़्यादा रहने का अनुमान है. अधिकतर महिलाओं का कहना है कि वो अपने पसंद के उम्मीदवार को वोट डालेंगी और वो इसके लिए अपने पति या परिवार से नहीं पूछेंगी.

महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए अलग पोलिंग स्टेशन बनाए जाते हैं और महिला पुलिसकर्मियों को उनकी सुरक्षा में लगाया जाता है. पोलिंग स्टेशनों पर कम से कम एक महिला अधिकारी नियुक्त होती है.

2014 में हुए आम चुनावों में 660 से ज़्यादा महिला उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आज़माई थी. 1951 में हुए पहले चुनावों के मुकाबले ये आंकड़ा कहीं ज़्यादा था, क्योंकि उस वक्त महज़ 24 महिलाएं ही चुनावी मैदान में उतरी थीं.

राजनीतिक पार्टियां भी अब महिला मतदाताओं को ख़ास महत्व देती हैं. वो उन्हें एक अलग इकाई मानती हैं और उनके लिए कई वादे करती हैं जैसे सस्ती रसोई गैस देने का वादा, पढ़ाई में स्कॉलरशिप देने का वादा और कॉलेज जाने के लिए साइकिल देने का वादा.

लेकिन ये एक हैरान कर देने वाली बात है कि भारत में बहुत सी महिलाओं का नाम वोटर लिस्ट में नहीं है. इन महिलाओं की तादाद इतनी है, जितनी श्रीलंका की पूरी आबादी.

ये दावा एक नई किताब में किया गया है. चुनाव विशेषज्ञ प्रणॉय रॉय और दोराब सोपारीवाला ने ये किताब लिखी है. वो कुछ आंकड़ो का अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुंचे. इसका ज़िक्र उन्होंने अपनी आने वाली किताब ‘द वर्डिक्ट: डिकोडिंग इंडियाज़ इलेक्शन’ में किया है.

उन्होंने देखा कि जनगणना के हिसाब से 18 साल से ज़्यादा उम्र की महिलाओं की संख्या कितनी है. इस संख्या के आधार पर उन्होंने महिलाओं की मौजूदा तादाद का अंदाज़ा लगाया. इसके बाद उन्होंने इस संख्या की तुलना महिला मतदाताओं की ताज़ा लिस्ट से की.

उन्होंने इन दोनों में बड़ा अंतर पाया. उन्होंने पाया कि महिला मतदाताओं की लिस्ट में करीब दो करोड़ 10 लाख महिलाओं का नाम ही नहीं है.

ग़ायब महिला मतदाताओं में ज़्यादातर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की हैं, जबकि आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में स्थिति फिर भी बेहतर है.

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