हिंदू राष्ट्र बनाऐंगे

मनीष सिंह

ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ हिन्दू राष्ट्र- (पार्ट 1)

मितरों

कोई 13.5 बिलियन वर्ष पहले, टाइम- स्पेस- एनर्जी- मैटर अस्तित्व में आये। एक जोरदार विस्फोट हुआ। इसे बिग बैंग कहते है।

जोर की भूम की आवाज आई।
टाइम-स्पेस-एनर्जी-मैटर से साउंड निकला-

“हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे”

लेकिन बना नही सके।
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कोई दस बिलियन वर्ष पहले एनर्जी और मैटर ने अणु परमाणु में ढलना शुरू किया।

एलिमेंट्स बने कोई 110 प्रकार के – फिर इनने आपस मे जमना- मिलना शुरू किया। गैलेक्सी, तारामंडल, अगणित सूरज चांद बने। सबने मिलकर कहा-

“हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे”
मगर बना नही सके।
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कोई 6 बिलियन साल पहले धरती नाम के प्लेनेट पर अणु परमाणु जुड़ने लगे।

पानी बना, समुद्र हुआ। उसमे कार्बन नाम का तत्व दूसरो से मिलकर लम्बी लम्बी चेन बनाने लगा। इससे जीवन का जन्म हुआ।

पहले वायरस आये, फिर बैक्टीरिया, फिर प्रोटोजोआ, मल्टीसेलूलर जीव —

वायरस चिल्लाया- हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे।
सारे जीव चिल्लाए- हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे।

मगर बना न सके।
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समुद्र में मछलियां बनी। कुछ मछली जमीन पर आ गयी। सदा जमीन पर ही रहने लगी।

उसमे से कुछ छोटे है,
कुछ बहुत बड़े हो गए।

बड़े वाले बहुते बड़े हो गए, डायनासौर कहलाये। सबने मिलकर जोर लगाया , संकल्प लिया –
“हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे”

तभी एक उल्का गिर गयी।
तो वो बना न सके
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तो प्रभु प्रकोप से डायनासौर खत्म हुए, एक चूहा था। वह बड़ा होने लगा।

उछलता कूदता, पेड़ों पर चढ़ता। होमिनिड कहते थे। उससे बड़े बड़े कपि बनना शुरू किए।

मंकी, चिमपजी, ओरांगुटान, गोरिल्ला- सबने कहा- “हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे”

मगर बना न सके
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इन वानरों के बीच से अफ्रीका के एक कोने में एक नया जीव हुआ। गुफाओं में रहता, जानवर मारकर खाता, उनकी खाल पहन लेता।

वह कट्टर सनातनी था। सनातन, याने जो आदि काल से कंटिन्यू हो। और आदिकाल से कन्टीयूँ बस एक ही संकल्प था।

जो इस वानरसुत का संकल्प था। दिन रात, बस एक ही धुन- हिन्दू राष्ट्र बनाना है।

वह जीव दृढ़ निश्चयी था।
सँघर्ष शील था।

वह पुण्यभूमि की तलाश में था। कबीले लेकर निकल पड़ा। समुद्र पार किए , पहाड़ लांघे, तमाम खतरों का सामना किया क्यो-

“हिन्दू राष्ट्र बनाना है”
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आखिरकार 10 लाख साल के बाद उसे वह पुण्य भूमि मिली। हिमालय से हिन्द महासागर के बीच, उस पुण्य भूमि में एग्जेक्टली वही लक्षण थे, जो बिग बैंग के समय हिन्दू राष्ट्र के बताए गए थे।

इंसान की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

चटपट वहां झंडा लहराने वाला था, की तभी नदी के पार उसने देखा।

कुछ लोग मुल्ला राष्ट्र बना रहे थे।
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ढेंन्टेनेंन

(सँघर्ष दूसरी क़िस्त में जारी आहे)

मनीष सिंह

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