आखिर क्यों होता है बस्तर में ही पुलिस कैम्पों का विरोध

क्या है बस्तर के जंगलों में विकास का पैमाना

कब तक जारी रहेगा आदिवासियों की जान जाने का सिलसिला

प्रकाश ठाकुर

कांकेर/बस्तर:- बस्तर की पहचान कभी ढोल मांदर और उसके घने जंगलों के साथ आदिवासियों की रहन सहन संस्कृति और अनूठी परम्परायें हुआ करती थी….जहाँ आदिवासी भौतिक सुख सुविधाओं से कोसों दूर रहकर अपने देवी देवताओं के साथ सीमित संशाधनों में आजादी से जिया करते थे लेकिन उस बस्तर को ऐसा ग्रहण लग गया है कि उसकी सुरत बम बारूद बन गई है जहाँ जब तक लहू का एक कतरा ना बहे उसे बस्तर नहीं कहा जा सकता है….या ये कहा जाये कि नक्सलवाद के दो पाटों में रोज आदिवासी पीसकर अपनों को हमेशा के लिए खोते जा रहे है लेकिन उनका ये दर्द कभी रास्ट्रीय मुद्दा नहीं बन पाया जब कभी कोई आदिवासियों के लिए बोलना चाहता है तो उसे नक्सली समर्थक करार दे सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता है….12 मई 2021 को बीजापुर सुकमा के सिलगेर गाँव में हुए दर्दनाक हादसे के बाद ऐसे कई अनगिनत सवालात उठने लगे है की मारे गये आदिवासी ग्रामीण थे या नक्सली….आखिर क्यों आदिवासी ग्रामीण लगने वाले कैम्पों का विरोध करने सडक पर उतर आते है….क्यों नक्सली नेता घटना को लोकतंत्र की हत्या करार देते है….क्यों घटना के बाद सरकार वहां जाने वालों को रोकती है….बस्तर में नये पुलिस कैम्पों के विरोध की घटनाओं में एक बात सामने आई है की जहाँ भी नए कैम्पों खोले जा रहे है हजारों आदिवासी ग्रामीण राशन पानी के साथ लामबंद हो कैम्प हटाने की मांग करते है यहाँ तक की इन्द्रावती नदी में बनने वाले पुल का भी विरोध हो चुके है….कैम्पों के विरोध किये जाने की घटना पर बस्तर आईजी कहते आ रहे है की बस्तर में माओंवादी की जड़ें उखड़ने से माओंवादी भोलेभाले ग्रामीणों को डरा धमकाकर सरकार और पुलिस के खिलाफ इस तरह से प्रदर्शन करवाते है जिन इलाकों में सालों से उनका कब्जा रहा उन इलाकों में विकास और फ़ोर्स पहुचने से माओंवादी कमजोर हो चुके माओवादीयों ने जिस तरह से मुखबिरी के शक में निर्दोष ग्रामीणों और अपने सहयोगियों को मारते हुए आदिवासियों धोखा ही दिया है कि जिससे अब उनका असली चेहरा आदिवासी समझते हुए लोकतंत्र पर यकीन करने लगे है
बस्तर में आदिवासी ग्रामीणों द्वारा लगातार कैम्प खोले जाने के खिलाफत करने के मसले पर आदिवासी समाज के प्रदेशाध्यक्ष व पूर्व सांसद सोहन पोटाई कहते है की 05 अनुसूची क्षेत्र संवेदनशील क्षेत्र है बिना ग्रामसभा प्रस्ताव के कोई भी कार्य वैध नहीं माना जाता शासन-प्रशासन उन कानून का मखौल उड़ा कुछ भी मनमानी कर रही है जिसमें कैम्प खोलना भी शामिल है….80 के दशक में कभी भी आदिवासियों ने पुलिस कैम्पों का विरोध ग्रामीणों ने नहीं किया है….लेकिन जिस तरह बस्तर के विभिन्न इलाकों में कैम्प बढा सर्चिंग के नाम पर निर्दोष आदिवासी ग्रामीण महिला पुरुषों बच्चों को तरह तरह से प्रताड़ित कर उनके घरों को लुटा जाने लगा है यहाँ तक की फर्जी मुठभेड़ में जान से मार जा रहा है जिसकी वजह से अब खौफ में आकर आदिवासी ग्रामीण पुलिस कैम्पों का विरोध करने लगे है….आदिवासी समाज कभी भी विकास विरोधी नहीं रहा है आदिवासियों समाज को भी अच्छा स्वास्थ्य शिक्षा सहित अन्य मुलभुत सुविधाओं की जरूरत है लेकिन विकास के नाम पर सिर्फ फ़ोर्स तैनात कर सडक का निर्माण करना ही विकास नहीं है….बस्तर में जगह जगह पर इसलिए सुरक्षाबल तैनात किये जा रहे है ताकि बस्तर के बेशकीमती खनिज सम्पदाओं को पूंजीपतिओं के हाथों में आसानी से सौपा जा सकें और रोड़ा बन रहे आदिवासियों को हटाने के लिए नक्सली बता मारा और जेलों में बंदकर सालों तक सुनवाई नहीं की जा रही है….यदि बस्तर से नक्सलवाद का खात्मा ही मकसद है तो कैसे बस्तर में नक्सलवाद पनपता जा रहा है दरअसल में नक्सलवाद सरकार और अफसरों के लिए एक आय का स्रोत है जिसके नाम पर रोज आदिवासियों को निशाना बनाया जा रहा है और जब कभी विरोध के स्वर उठते है तो उन्हें नक्सलियों के नाम से जोड़ दिया जाता है….उन्होंने सिलगेर की घटना को अमानवीय अत्याचार करार देते हुए कहा की इस घटना ने आदिवासियों के घाव में नमक रगड़ने का काम किया है 2023 में आदिवासी समाज भाजपा कांग्रेस दोनों को सबक सीखते हुए उन लोगों को सदन में भेजेगी जो आदिवासियों के दर्द पर हुंकार भरेगें


बस्तर के अंतिम आदिवासी को मुलभुत सुविधाएं देना उनके पहुचविहीन गाँवों को पक्के रास्तों से जोडना ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए फ़ोर्स की तैनाती करने पर ग्रामीणों का विरोध किये जाने के सवाल पर पत्रकार कमल शुक्ला कहते है की बस्तर 5वीं अनुसूचित क्षेत्र है बस्तर के आदिवासियों को ये सवैधानिक अधिकार मिला हुआ जहाँ उनकी अनुमति सर्वमान्य है….जिन इलाकों कैम्प खोले गये उन इलाकों में अपराध के ग्राफ देखा जाए तो पहले से ही मारपीट दुष्कर्म लुट चोरी जैसे कोई अपराध ही नहीं है….बैलाडीला रावघाट हाहलद्दी छोटेडोंगर चारगांव जैसे जगहों पर कैम्प खोल सरकार ने जमीनें निजी कम्पनियों खनिज उत्खनन के लिए बेच दी है….और वहाँ कम्पनियों के भारी वाहनों के आवाजाही को सरकार और प्रशासन विकास बता रही है….इन्द्रावती नदी में पुल निर्माण का विरोध भी अबूझमाड़ की खनिज सम्पदा को पूंजीपतियों के हाथों में बिकने से आदिवासियों ने बचा लिया….वे आगे कहते है की यदि सरकार विकास का पैमाना पक्के रास्तों को मानती है तो लगभग 1921 के दशक में अंग्रेजों ने घने जंगलों के बीच कांकेर से लगे सिहावा में रेल की पटरियां बिछा चुके थे जो आज तक आगे नहीं बढ़ पाई उसी तरह 1968 में किरन्दुल विशाखापटनम रेललाइन का निर्माण किया गया जिस समय माओवादियों का कोई नामोनिशान तक बस्तर में नहीं था अब उस रेल पटरियों पे सिर्फ दो गाड़ियां ही बमुश्किल चलती है जिसे आदिवासी पटरियों में गुजरते देखते और दुसरे सफर का लुफ्त उठाते है और शेष मालगाड़ियां बस्तर का कच्चा लोहा लेकर विशाखापटनम जाती है यहाँ तक बस्तरवासी सालों से राजधानी से बस्तर तक रेललाइन की मांग करते-करते थक चुके है लेकिन सरकार को वहां कोई फायदा नहीं दिखता तो वो मांग बेईमानी है इसी तरह आज भी आदिवासियों को नक्सलवाद और विकास ने नाम पर सिर्फ ठगने का सब्जबाग दिखाया जा रहा है और जब बस्तर के आदिवासी दोनों सरकारों की नीतियों को समझकर विरोध में उतर आते है तो उसे नक्सलियों का नाम दे दिया जाता है….आदिवासी ब्रिटिशकाल से अपने जंगलों में बाहरी लोगों के हस्तक्षेप का विरोध कर है आदिवासी सालों से स्वास्थ्य शिक्षा पानी बिजली जैसी मांगे रहे है लेकिन वो मांगे आज भी दरकार में पड़ी हुई है लेकिन बस्तर से लोहा सरगुजा से कोयला निकालने के लिए आदिवासी अपना घर छोड़ दे तो उन्हें क्या हासिल होगा….आज जिन पक्के सडकों और रेललाइन का सब्जबाग आदिवासियों दिखाया जा रहा वो सब जंगल के लकडियाँ और खनिज सम्पदाओं को निकालने के किया जा रहा जिसमें सरकार ने दो भाइयों के हाथों बंदूक थमा सिर्फ आदिवासियों लहू बहाया जा रहा है….सिलेगर की हिंसक घटना निशिचित तौर पर नक्सलवाद की जड़ों को मजबूत करेगा जब तक बस्तर में आदिवासियों पर अत्याचार फर्जी मुठभेड़ होते रहेगे नक्सलवाद का फैलाव होता रहेगा
आदिवासियों द्वारा लगातार कैम्पों का विरोध और सिलेगर की घटना पर जब कांग्रेस के आदिवासी युवा नेता व् आदिवासी आयोग के सदस्य नितिन पोटाई से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा बीजापुर की घटना उन्हें खबरों के माध्यम से मिला है जिस पर वो जल्द ही बीजापुर जाकर पीड़ित ग्रामीणों और अधिकारीयों से जानकारी लेगे….वे कहते है की आदिवासी ग्रामीण यदि पुलिस कैम्पों का विरोध कर रहे तो उन्हें विश्वास में लेने की जरूरत है….भूपेश सरकार के राज में अत्याचार के घटनाओं में कमी आई यदि कही शिकायत मिल रही है तो कार्यवाहियां भी सरकार ने की है….सिलेगर घटना में जो भी दोषी है उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही के लिए आयोग सरकार से सिफारिश करेगी ताकि दुबारा किसी आदिवासी ग्रामीण के साथ इस तरह घटना ना हो सकें….नक्सलवाद के बीच बस्तर के आदिवासियों को मुलभुत सुविधाएं पाने के और कितनी कुर्बानियां देनी पड़ेगी ये तो आने वाला भविष्य तय करेगा लेकिन सिलगेर की घटना से आज भी हजारों आदिवासी न्याय की गुहार लगा विरोध जता रहे है सरकार के आदिवासी नेताओं के खिलाफ ग्रामीणों में नाराजगी कही ना कही आने वाले दौर में बस्तर के कई आदिवासी नेताओं के राजयोग पर ग्रहण लगाने के संकेत अभी से देने लगी है

प्रकाश ठाकुर

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