बस्तर के जंगलों को पुलिस छावनी में तब्दील करने के खिलाफ खड़े होईये

रूपेश कुमार सिंह

इस वीडियो को गौर से देखिये और गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज सुनिए। इस वीडियो को देखने के बाद साफ़ समझा जा सकता है कि सुरक्षा बलों के कैंप का विरोध कर रहे आदिवासियों पर हत्यारे सुरक्षा बल गोलियां चला रही है। लेकिन हमारे देश की अधिकांश मीडिया बता रही है कि माओवादियों ने ग्रामीणों की आड़ में सुरक्षा बलों पर हमला किया है, जिसमें 3 लोग मारे गए हैं और दर्जनों घायल हुए हैं।

मालूम हो कि छत्तीसगढ़ के सुकमा जिला के जगरगुंडा और बीजापुर जिला के बासगुड़ा की सीमा पर स्थित सिलगेर से लगे मुकुर गांव में 12 मई को सुरक्षा बलों का कैंप लगाया गया है, जिसके विरोध में दर्जनों गांव के हजारों आदिवासियों ने कैंप स्थल पर उसी दिन से विरोध-प्रदर्शन भी प्रारम्भ किया था। कल यानि 17 मई को सुरक्षा बलों ने कैंप का विरोध कर रहे आदिवासियों पर गोलीबारी की है, जिसमे 3 प्रदर्शनकारी शहीद हो गए हैं और दर्जनों घायल हैं।

यह सब उस राज्य में हो रहा है, जिसमें कांग्रेस की सरकार है, वही कांग्रेस जिसे बहुत सारे बुद्धिजीवी फासीवादी भाजपा का विकल्प बता रहे हैं, वही कांग्रेस जिसके साथ संसदीय वामपंथी पार्टियों का बेमेल गठबंधन चुनाव के समय होते रहता है। अभी सारे बुद्दिजीवी चुप हैं और चुप हैं सभी चुनावबाज नेता।

मैं स्पष्ट तौर पर मानता हूँ कि हमारे देश की जनता पर दमन के मामले में भाजपा और कांग्रेस में एक अघोषित समझौता है, जिसमें समय-समय पर और भी दल शामिल होते रहते हैं, इसलिए हमारे सामने इंकलाब के अलावा और कोई विकल्प नहीं हो सकता है।

ये तस्वीरें सुरक्षा बलों की गोलियों से घायल छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की है, इनकी गलती सिर्फ यही थी कि ये लोग अपने गांव के बगल में स्थापित किये गए सुरक्षा बल के कैंप का विरोध कर रहे थे। इस विरोध की कीमत इनके तीन साथियों की शहादत और 18 साथियों के घायल होने के रूप में चुकानी पड़ी।

आपको लगता होगा कि आखिर सुरक्षा बल के कैंप का विरोध ये आदिवासी क्यों करते हैं? तो इसके जवाब में मुझे आपसे सिर्फ यही कहना है कि कभी आप अपने पूरे परिवार के साथ सुरक्षा बल के कैंप से सटे गांव में आकर 4 दिन ठहरिये, आपको आपके सवाल का जवाब मिल जायेगा।

मैं तमाम प्रगतिशील साथियों से अपील करता हूँ कि आज अपने जल-जंगल-जमीन को बचाने की लड़ाई लड़ रहे आदिवासी-मूलवासी जनता के पक्ष में खड़े होइए और फासीवादी केंद्र सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए राज्य सरकारों द्वारा जंगलों को पुलिस छावनी में तब्दील करने के अभियान के खिलाफ खड़े होइए

रूपेश कुमार सिंह

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