सरकारी शराब दुकानों में सेल्समैन और कर्मचारी ही बने कोचिया

खुलेआम लुटे जा रहे नक्सली इलाकों में ग्रामीण आदिवासी

कांकेर:- कांग्रेस सरकार प्रदेश में सत्ता संभालने के बाद से ही शराब के मुद्दे लेकर आज तक विपक्ष के निशाने पर है विपक्ष को जब कभी भी मौक़ा मिलता है सरकार को घेरने में पीछे नहीं रहती। सरकार भी उनके सवालों का जवाब कार्यवाही कर देने की कोशिश करती है। प्रदेश में जारी विधानसभा सत्र में सरकारी शराब दुकानों में निर्धारित मूल्य अधिक कीमत में शराब बेचने और गबन कर सरकारी संरक्षण देने सवाल का नेता प्रतिपक्ष ने सवाल उठाया तो आबकारी मंत्री ने ७०० सौ कर्मचारियों को निकाल देने का जवाब दिया है। विधान सत्र में ७०० कर्मचारियों को निकालने का जवाब भी ठीक ढंग खत्म नहीं हो पाया है कांकेर जिले के अंदरुनी इलाकों के सरकारी शराब दुकानों में खुलेआम सेल्समैन खुद ही कोचिया बनकर आदिवासियों को लुट दबंगई पर उतारू है।

जी हां ये वाकया कांकेर जिले के धुर नक्सल प्रभावित अंतागढ और पंखान्जुर के सरकारी शराब दूकान है जहाँ दूकान के सेल्समेन और कर्मचारी दबंगई के साथ खुद कोचिया बनाकर मनमाने कीमत में देशी विदेशी शराब बेचकर मदिरा प्रेमियों के जेब में डाका डाला अपनी अपनी तिजोरियां भर रहे है। जब मदिरा प्रेमियों द्वारा बिल की मांग व अधिक कीमत शराब बेचने को लेकर सवाल पुछा जाता है तो बड़े रौब से जवाब दे कहते है की चाहे तो मदिरा प्रेमी पुलिस में शिकायत कर दे वे निबट लेगे।

अंतागढ और पंखाजूर के सरकारी शराब दुकानों लम्बे अरसे चले आ रहे इस अवैध कारोबार पर क्षेत्र के मदिरा प्रेमियों का कहना है मूल्य सूची में अलग कीमत दर्ज है बिल मांगने पर कागज नहीं होने व मशीन खराब होने का हवाला उन्हें धुतकार कर भगा दिया जाता है उनके इस अवैध कारोबार को रोकने वाला ज़िम्मेदार आबकारी विभाग के बड़े अफसर नक्सलियों के डर का बहाना बता कभी इन इलाकों में दौरे पर आते नहीं यहा तक स्थानीय पुलिस भी कोई कार्यवाही नहीं करती। जिसका फायदा उठा सेल्समैन और कर्मचारी लुट के इस कारोबार को बेख़ौफ़ ढंग संचालित कर रहे है जिन्हें रोकने वाला कोई नहीं है।
अंदुरनी इलाकों में चल रहे इस लुट के कारोबार में इस बात का भी खुलासा हो पाया की सरकारी नियमों के अनुसार प्लेश्मेंट कम्पनियों के माध्यम स्थानीय बेरोजगारों को काम पे रखा जाना है लेकिन उनके जगहों यूपी बिहार के उन लोगों को रखा गया है जो शराब के ठेकेदारी प्रथा में अवैध शराब बेचने में मास्टर मांइड के रूप रह इन इलाकों में काम कर चुके है तो ऐसे सवाल उठना लाजमी है की बस्तर के इकलौते आबकारी मंत्री के राज में ही उनके ही आदिवासियों को खुलेआम लुटा जा रहा है जहां शराब आदिवासियों के हर त्यौहार और परम्पराओं में शुमार है।

     *कहां है आदिवासियों के रहनुमा...?*

बस्तर अंचलों में संचालित तमाम सरकारी शराब दुकानों में चल रही खुली लुट पर ये सवाल लाजमी है की आदिवासियों को जल जंगल जमीन के नाम पर बंदूक थमा न्याय दिलवाने वाले नक्सली इस लुट के कारोबार में पुरी तरह खामोश है। ये वही नक्सली है लोकतंत्र को मानने से इंकार करते है बस्तर में उधोग कारखानों के स्थापना पर तो लुटने की बात कह नक्सली खुलकर विरोध जताते है लेकिन उसी लोकतंत्र के आड़ में इस लुट के कारोबार में विरोध का एक शब्द तक उनके जुबान से सुनने को नहीं आया जबकि इन इलाकों में नक्सली जब चाहे जहां चाहे दिनदहाड़े अपनी बातों को बैनर पर्चों में लिखकर दहशत फैलाते है। कही ऐसा तो नहीं की इन इलाकों में अवैध की काली कमाई के हिस्से शराब कोचिये नक्सली के जड़ों में डालकर खाद का काम कर रहे है चाहे उसके लिए उन गरीब आदिवासियों को ही क्यों ना लूटना पड़े। हालांकि सूचना मिली है कि दक्षिण बस्तर के कुछ इलाकों में माओवादियों ने शराब दुकानों के खिलाफ लोगों को सचेत करने और शराब दुकानों को तोड़ने की धमकियां दी है ।

   *स्थानीय कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में*

नक्सली इलाकों में नक्सलियों से निबटाने के साथ कानून व्यवस्था को भी सुचारू रूप से संचालित करना स्थानीय पुलिस के जिम्मे है जिसमें शराब की अवैध बिक्री रोकना भी शामिल उन इलाकों में घरों में अवैध शराब बिक्री के कारोबार पर तो स्थानीय पुलिस की तत्परता देखते ही बनती है लेकिन सरकारी शराब दुकानों में हो रही अवैध बिक्री पर खामोशी क्यों…..अगर दुकानों चल रहे इस लुट कारोबार की भनक नहीं तो फिर कुछ तो लजीज खिचडी पक रही है जिसकी महक चंद लोगों को ही है।

अंतागढ़ और पखांजूर के सरकारी शराब दुकानों में खुलेआम चल रही अवैध वसूली के मसले पर जब हमने उस क्षेत्र कांग्रेस जिलाध्यक्ष और विधायक से बात करनी चाही तो विधायक जी का मोबइल बंद व अध्यक्ष महोदया ने फोन उठाने की जहमत नहीं उठाई….लेकिन जिला आबकारी जयलाल मरकाम ने बेहद संजीदा ढंग से बताया की वे बाथरूम में आधा ही नहाये है नहाते नहाते ही फोन उठाये है वो कोई बात नहीं करते सकते।
खैर कोई बात नहीं नेता अफसर इस अवैध लुट के कारोबार में कोई कुछ ना कहे लेकिन इस लुट के कारोबार कितने हिस्सेदार है ये सवाल बने रहेगी क्योंकि उन गरीब आदिवासियों ने ही तो खुद को लुटवाने का हक दिया है।

प्रकाश ठाकुर

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