हम जीते न जीतें पर हम लड़ेंगे : इलीना सेन

डॉ इलीना सेन का यह इंटरव्यू मैंने 9 साल पहले किया था जो कई जगह प्रकाशित हुआ। इलीना कल कैंसर से जंग हार गई लेकिन अपने मूल्यों आदर्शों के प्रति बेहद प्रतिबद्ध इलीना बराबरी के समाज की मांग को लेकर आखिरी सांस तक डटी रही। यह इंटरव्यू बिनायक सेन की गिरफ्तारी के तत्काल बाद लिया गया है और इलीना के व्यक्तित्व को जानने समझने का मौका देता हैआवेश तिवारी

  • जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है। “ ये शब्द बिनायक सेन ने जेल जाने से पहले अपनी पत्नी इलिना को कहे थे। इलीना बिनायक के साथ ,अराजकतावादी राज्य और साम्राज्यवादी अदालतों के निर्णयों के खिलाफ लगातार संघर्ष कर रही है वो हारी नहीं है ना आगे हारने वाली है। जब वे कहती हैं कि हम लड़ेंगे ,हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते तो इन शब्दों में उनका अदम्य साहस नजर आता है | सुनिये पूरी बातचीत

आवेश- इलिना आप अदालत के फैसले को किस तरह से देखती हैं ?

इलीना- बिनायक ने पैसे और सारी चीजें छोड़कर गरीबों – आदिवासियों के लिए काम किया ,उनके ऊपर ऐसा आरोप लगाना कि वो देशद्रोही है गलत हैं| उन्होंने हमेशा देश के लिए काम किया ,मेरे और मेरे पति के लिए देश का मतलब देश की जनता हैं |आश्चर्य ये है कि चोर ,लूटेरे ,गेंगेस्टर खुलेआम घूम रहे हैं ,और बिनायक सलाखों के पीछे हैं |

आवेश- आपके पति को जिस कानून के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गयी वो देश का ही कानून है ,आप हिंदुस्तान में लोकतंत्र को कितना सफल मानती हैं ?

इलीना- विकास के दौर में गरीबी और अमीरी की खाई लगातार बढ़ी है ,संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में साफ़ तौर पर कहा गया है कि इस खाई को ख़त्म करने की कोशिश की जायेगी ,लेकिन आजादी के साथ सालों बाद भी ये खाई निरंतर गहरी होती जा रही है ,आज देश में विशाल माध्यम वर्ग है जिसके हाँथ में पूरा बाजार हैं लेकिन जितना विशाल माध्यम वर्ग है उतना ही बड़ा वो वर्ग है जो बाजार तक नहीं पहुँच पाता ये लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा हैं | बिनायक सेन का मामले ने एक और नए खतरे को दिखाया वो खतरा देश में अदालतों और प्रशासन की मिलीभगत से पैदा हो रहा है ,कई बार झूठे मामले बनाये जा रहे हैं और फिर अपनी नाक बचाने के लिए लगातार झूठ को सच बनाने का खेल खेलने में लग जाते हैं और फिर वो अपनी झूठी दलीलों से अदालतों को भी प्रभावित करने लगते हैं ,जैसा बिनायक सेन के मामले में हुआ |

आवेश- छत्तीसगढ़ में बिनायक सेन की गिरफ्तारी हुई ,उत्तर प्रदेश में सीमा आजाद की गिरफ्तारी होती हैं ,वही दूसरी तरफ अरुंधती रॉय छतीसगढ़ के जंगलों में जाती हैं ,नक्सली हिंसा का समर्थन करती हैं ,उनका इंटरव्यू छपता है ,क्या आपको लगता है राज्य माओवाद के सम्बंध में दोहरे मापदंड अपना रहा हैं ?

इलीना- सीमा आजाद को मै अख़बारों के माध्यम से ही जानती हूँ ,फिर भी कहूँगी चाहे बिनायक सेन हों या सीमा आजाद ,साजिशन की जा रही कार्यवाहियां लोकतंत्र के लिए खतरनाक हैं |जहाँ तक अरुंधती का सवाल है मैंने उन्हें पढ़ा हैं कहीं कहीं अरुंधती और बिनायक सेन के विचारों से समानता हो सकती है ,लेकिन विचारों में अंतर भी है ,हर व्यक्ति के विचारों में ये विभिन्नता है हमें विचारों का समान करना चाहिए ,हम काला सफ़ेद देखने लगते हैं कि क्या काला है क्या सफ़ेद है ,ऐसा नहीं होना चाहिए |

आवेश/ मै देश के कई विश्वविद्यालयों में गया ,युवा पीढ़ी विनायक को अपना आदर्श मानने लगी है उनकी गिरफ्तारी को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं आन्दोलन हो रहे हैं ,आप बिनायक को कितना साहसी मानती हैं ?

इलीना- मेरे हिसाब से बिनायक साहसी जरुर है कई बार उन्होंने लोकप्रिय बातें न कहकर वो बातें कहीं जो कडवी लेकिन आम आदमी के हित की बात कही,जो उन्हें सही लगा उन्होंने बोला ये बात अलग है कि आप उनकी बात से सहमत और असहमत हों |

आवेश-आपको क्या लगता है कि छत्तीसगढ़ में अघोषित आपातकाल की स्थिति हैं ?
इलीना- इसे हम घोषित आपातकाल कहेंगे

आवेश-आपको क्या लगता है कि बार – बार सरकार आपके पति को ही निशाना क्यूँ बना रही है ,केंद्र सरकार की भी इस कार्यवाही में मूक सहमति है |

इलीना- दो दिन पहले हमारे डीजीपी ने कहा कि सारे एनजीओ शक के दायरे में है उन्होंने कहा कि पीयूसीएल पर प्रतिबन्ध लगाएगी तो जनता लगाएगी ,जनता के बारे में इस तरह के ब्यान देना बेहद खतरनाक है कुछ दिनो पहले संदीप पांडे और मेधा पाटेकर शान्ति का पैगाम लेकर दंतेवाड़ा गए थे वहां उन पर अंडे और टमाटर फेंके गए थे ,जब वो गए थे तो राज्य के मंत्रियों ने कहा कि इनके लिए हम कुछ नहीं कहेंगे इनका फैसला जनता करेगी |ये बातें मुझे विचलित करती हैं कि वो कौन सी जनता है और उसे क्या इशारा किया जा रहा ,ये साफ़ है कि वो पीयूसीएल के खिलाफ जनता को सन्देश दे रहे हैं |

आवेश-आपको क्या लगता है वो कौन सी जनता है ?
इलीना- वो उस जनता के बारे में बात कर रहे हैं जो उनके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो

आवेश-जेल जाने से पहले बिनायक सेन ने आखिरी बात क्या कही ?
इलीना- मेरी मुलाक़ात उनसे २६ को हुई थी जब कोर्ट ने ये खेदपूर्ण निर्णय सुनाया,अब चुकी सजा हो चुकी है मुझे १५ दिन में सिर्फ एक बार मिलने दिया जायेगा ,मैंने उने कहा कि हम लड़ेंगे ,हम जहाँ तक ले जा सकेंगे ले जायेंगे जीतेंगे या नहीं जीतेंगे हम नहीं जानते |इस परबिनायक ने कहा कि जनतंत्र में बहुत गलतियाँ होती हैं सालों बाद पता लगता है कि किसी के साथ नाइंसाफी हुई है अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो ये मान लेना कि इसमें जनता का हित जुड़ा है |

आवेश-क्या आपको लगता है कि हिंदुस्तान में जनता और मीडिया आदालतों के फैसलों की आलोचना करने से डरती हैं ,अदालतें साम्राज्यवाद का प्रतीक बन गयी है ?

इलीना-अदालती व्यस्था ने जो इस केस में भूमिका अदा की वो बेहद चिंताजनक है कानून की मौलिक समझ भी इस फासिले में नहीं दिखती ,बिनायक के खिलाफ फैसला सुननाने वाले जस्टिस वर्मा पहले वकील थे जो एक परीक्षा पास करके जज बन गए मुझे भी लगता ये कि लोकतंत्र है कोई राजशाही नहीं कि हम फैसलों के खिलाफ आवाज न उठा सके ,मुझे लगता है कि अदालतों के निर्णयों के मामले में भी अगर जनता सवाल कर रही है तो गलत नहीं कर रही है |

कल आठ बजे एक झकझोर देने वाली ख़बर से वास्ता पड़ा. पता चला कि सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षिक कार्यकर्ता, नारीवादी और जनांदोलनों से गहरा सरोकार रखने वाली लेखिका, प्रोफ़ेसर इलीना सेन नहीं रहीं. पिछले दस वर्षों से वो कैंसर से लड़ती-भिड़ती रहीं, लेकिन उन्होंने कभी कैसर से हार नहीं मानी. प्रोफ़ेसर इलीना सेन के अपनी आंखें बंद भी कीं तो उस दिन, जब दुनिया विश्व आदिवासी दिवस मना रहा था. डॉ इलीना सेन ने मुझे व्यवस्था के खिलाफ लड़ने का साहस दिया बल्कि मुझे कई मौके पर व्यक्तिगत मदद भी की । उन्होंने बस्तर और आदिवासी मुद्दों पर भी अपने छात्रों से कई शोध कराए थे। देश के प्रसिद्ध पत्रकार आवेश तिवारी का यह इंटरव्यू उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप यहां प्रस्तुत है, इस इंटरव्यू से आप इलीना सेन के महान व्यक्तित्व व विचार से अवगत होंगे – सम्पादक

आवेश तिवारी देश के जाने-माने पत्रकार हैं

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