सलवा जुडूम के समय बेघर-गांव हुए आदिवासियों को 15 साल बाद भी नही मिला आवास पट्टा, पहले भाजपा ने ठगा अब कांग्रेस ने

यूकेश चंद्राकर

बीजापुर (भूमकाल समाचार)। कोरोना का खौफ, पूरी दुनिया देख रही है । कोरोना से होने वाली मौतें बस्तर के बाशिंदों के लिए लगभग सामान्य मौतों जैसी बात है क्योंकि कोरोना से भी भयानक खौफ बस्तर ने देख रखा है । सलवा जुडूम ये नाम जब भी बस्तर के बीहड़ों के वो लोग सुनते हैं जो नक्सलवाद और सलवा जुडूम के बीच फंसे थे, आज भी सहमकर चुप रह जाते हैं । ये वो दौर था जब आदमी का खून मांगे बिना बस्तर की सुबह नहीं हुआ करती थी ।


किसी तरह जो कुछ लोग बीजापुर जिला मुख्यालय आ गए उनके रहने के लिए बफर जोन की भूमि चुनी गई। हम बात कर रहे हैं सन 2004 की, जब हजारों परिवार अपने जल जंगल जमीन से सिर्फ जान बचाने बेघर हो गए थे । सलवा जुडूम के दौर में पूरे बस्तर से लाखों निरीह आदिवासी बेघर हो गए थे और इन्होंने उस समय के राहत कैम्प्स में पनाह ले ली थी । ये परिवार अब खुद के देश मे परदेसी ज़िन्दगी जी रहे थे । तब की भाजपा सरकार ने नक्सलियों के खिलाफ मैदान ए जंग में उतरने वाले युवाओं को एसपीओ बनाया । एसपीओ के हाथों में बंदूकें आईं, हाईकोर्ट के दखल के बाद ये जवान जिला पुलिस बल के जवान बना दिए गए, सलवा जुडूम भी रुक गया मगर नहीं रुकी तो नक्सलियों से जंग ।
सवाल ये था कि इन परिवारों के रहने का इंतजाम कौन करेगा ? जिस जमीन पर ये परिवार रह रहे हैं उस पर इन्हें 15 साल से ज़्यादा का समय गुजर चुका है । शांतिनगर के लोग बताते हैं कि पूर्व वन मंत्री महेश गागड़ा ने तब के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह से प्रभावितों को मिलवाया था जिसके बाद ये आदेश किया गया था कि प्रभावितों को आवास पट्टा दिया जाए । मगर राजनीति का दांव है, तब का विपक्ष याने वर्तमान काँग्रेस की भूपेश सरकार इस फैसले के खिलाफ थी जिसके विरोध स्वरूप भाजपा सरकार को आदेश वापस लेने को मजबूर होना पड़ा । ये मामला अब राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिए तैयार हो चुका था ऐसा इसलिए भी क्योंकि जिस फैसले का विरोध काँग्रेस ने किया था विगत चुनाव के समय वही कांग्रेस ज़मीन का मालिकाना हक दिलाने की बात कहकर मैदान में उतरी भी और जीती भी लेकिन जीत के बाद ये मुद्दा सिर्फ बयान और जुबान तक सीमित रह गया है ।
शांतिनगर में बसने वाले परिवारों के लिए जमीन के मालिकाना हक की बात करने वाले वर्तमान विधायक विक्रम मंडावी के कथन अनुसार पट्टे की प्रक्रिया चल रही है ।
इस मामले में जो बात ज्यादा ध्यान देने वाली है वो है पहले विरोध कर आदेश रोकना और बाद में, क्या चुनाव जीतने के लिए इन प्रभावितों को एक उम्मीद दिखाई गई ? अगर प्रदेश के गरीब और नक्सलियों के सताए लोग राजनीति का शिकार हों तो ज़रा सोचियेगा प्रदेश सरकार आपके और हमारे लिए क्या कर रही है ?
लोगों ने पलायन कर जिंदगी तो चुन ली है लेकिन ये उन्हें नहीं मालूम कि उन्हें जो जमीन यहां मिली है उसका मालिकाना हक वर्तमान विधायक विक्रम मंडावी नहीं दिला पा रहे हैं । बीजापुर के शांतिनगर की बफर भूमि पर करीब 2000 परिवारों के बसेरे हैं । इन परिवारों का यदि सर्वे कराया जाए तो लगभग आधी आबादी दूसरे राज्यों से आकर बसे लोगों की होगी या फिर ये ऐसे लोग होंगे जिन्हें नक्सलियों से किसी जान माल का खतरा नहीं है बल्कि इन्होंने आपदा में फंसे लोगों की आड़ में अपने अवसर तलाश लिए हैं । स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों के बीच इन परिवारों को पट्टा देने के लिए कई बैठकें होती हैं लेकिन नतीजा अब तक शून्य ही रहा है । बताया जाता है वर्तमान कलेक्टर ने बीजापुर के अन्य स्थान पर यहां के निवासियों के लिये व्यवस्था के निर्देश दिए थे लेकिन उनके इस फैसले का भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया है ।
बीजापुर जिला मुख्यालय में बढ़ रही आबादी के लिए कोई भी विकल्प बहरहाल कारगर नही है । प्रशासन इसलिए भी चिंतित है क्योंकि मुख्यालय में बफ़र भूमि, वन भूमि बहुत अधिक है और यही वो कारण है कि यहां बसाहट के लिए कोई ज़मीन दिखाई नहीं देती ।

यूकेश चंद्राकर

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