न अदालत, नोटिस न सफाई का मौका, बस बंदूक के दम पर निर्मम कुटाई , दूध पिलाती महिलाओं की भी निर्मम पिटाई

माओवादियों द्वारा आदिवासियों की लीचिंग के खिलाफ आवाज किस अदालत में ?

माओवादी और सरकार के बीच की लड़ाई में पिसते आदिवासी

रायपुर ( भूमकाल समाचार ) । 15 से अधिक बंदूकधारी जवान गांव में घुसते हैं, और लोगों को घरों से निकालकर उन पर एकतरफा आरोप लगाकर निर्मम पिटाई करते हैं । लाठी-डंडों से पिटाई करते समय ये निर्मम लोग दूध पिला रही मां को भी नहीं छोड़ते । कई को तो इतना ज्यादा मारा कि वह चल फिर भी नहीं पा रहे । निरीह आदिवासियों की यह निर्मम पिटाई कथित रूप से जनता की लड़ाई लड़ने वाले, बस्तर के आदिवासी अंचलों में जनताना सरकार चलाने का दावा करने वाले और कथित जन अदालत के आधार पर फैसला करने वाले बंदूकधारी माओवादियों द्वारा किया गया, क्या यह लीचिंग नही है ?

पुलिस की पिटाई के कई निर्मम वीडियो हम सब ने देखा और पुलिस के रवैय्ये पर थू-थू किया, कई पुलिस थानों में हिरासत के दौरान पुलिस की पिटाई से कई लोग के मारे जाने की भी खबर भी हमे उद्वेलित करते रही है । पुलिस अत्याचार के बहुत सारे मामलों में विभागीय जांच से लेकर न्यायिक जांच भी हुई और कई मामलों में दोषी कर्मियों पर कार्रवाई भी हुई । पर बस्तर के जंगल में घटने वाली इन घटनाओं के खिलाफ माओवादियों की अदालत में क्या आवाज उठाई जा सकती है ? क्या बंदूक के दम पर लगाए जाने वाले अदालत को जनअदालत कहा जा सकता है ?

आदिवासी गांव में अचानक कभी पुलिस टूट पड़ती है तो कभी माओवादी , दोनों तरफ से मार खाना उनकी नियति बन गई कभी माओवादी को साथ देने के नाम पर पुलिस तो कभी मुखबिरी के नाम पर माओवादी । पुलिस की पिटाई के विरुद्ध तो लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठाया भी जा सकता है और कई समाजसेवी और पत्रकार इस तरह की खबर पर अपनी आवाज उठाते ही हैं पर माओवादी द्वारा किए गए इस तरह के अत्याचार पर आवाज कौन उठाएगा ? और क्या वे अपने इस तरह के अत्याचार के बारे में कोई कार्यवाही है जांच करने की हिम्मत करते हैं ? जन युद्ध के नाम पर अपनी ही जनता पर इस तरह जुल्म ढहाने को क्या न्यायोचित कहा जा सकता है ?

ताजा मामला दंतेवाड़ा जिले के परचेली गांव के बोरपदर पारा का है । 2 दिन पहले अचानक गांव में बंदूकधारी माओवादी पहुंचे और ना कोई जन अदालत और ना किसी नोटिस के ग्रामीणों की बेदम पिटाई कर दी नक्सलियों ने । निर्ममता की हद तो यह कि एक ग्रामीण के गुप्तांग पर भी किये जबरदस्त प्रहार । पीटे गए ग्रामीणों की हालत चलने फिरने लायक नहीं । मासूम दुधमुँहे बच्चों की मांओं को भी बुरी तरह मारा गया ।

पुलिस ने सूचना मिलने पर घायल ग्रामीण कोया पोडयामी , मासा , लच्छू कोवासी , हड़मा , बुधराम , भीमा और लख्मी आदि ग्रामीणों को एम्बुलेंस से लाकर जिला अस्पताल में भर्ती कराया है ।

यही नहीं बल्कि 20 से अधिक ग्रामीणों को मुखबिर बताते हुए उनकी हत्या का जारी किया फरमान भी माओवादियों ने जारी किया है । मलंगीर एरिया कमेटी के सचिव सोमडू द्वारा जारी किया पर्चे में जिन ग्रामीणों को जनता का दुश्मन बता कर मारने की धमकी दी गई है वे नए खुले थाना गुमिया पाल क्षेत्र के हैं । इनमें से ज्यादातर ग्रामीण पहले उनके साथी रहे होंगे । फिलहाल आदिवासियों के सामने एक तरफ कुआं एक तरफ खाई है । माओवादी प्रभावित जिन गांव में पुलिस की पहुंच मजबूत होते जा रही है उन गांव के ग्रामीण माओवादी के दुश्मन बनते जा रहे हैं और माओवादी प्रभावित गांव के ग्रामीण पुलिस की नजर में सीधे-सीधे हार्डकोर और ईनामी तो रहते ही हैं ।

आप इसे केवल साधारण मारपीट का मामला ही ना समझ लें, जिनके साथ मारपीट हुई है अगर अब वह पुलिस के साथ अस्पताल आ चुके हैं तो इसका सीधा मतलब है कि अब वह अपने गांव, अपने जमीन, अपने खेत, अपने घर वापस नहीं जा सकते । जिन 20 लोगों को धमकी मिली है वह भी अपने परिवार, बच्चों, घर-खेत सब को छोड़कर गांव से बाहर रहने के लिए मजबूर होंगे । इस तरह अपना सब कुछ छूट जाने का दर्द भोगने के लिए बस्तर वासी अभिशप्त हो चुके हैं !! काश आप इस दर्द को महसूस कर पाते !

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