बिना “पायलट” कांग्रेस का जहाज डूबना तय है

अपूर्व भारद्वाज

कॉंग्रेस रूपी जहाज का पायलट नाराज हो गया है सचिन पायलट दर्जन भर विधायक को लेकर दिल्ली बैठे है सोनिया गाँधी से मिलकर अपना दुःख बता रहे है मैंने नंवबर में सिंधिया को लेकर डाटावाणी की थी वो मार्च को कांग्रेस छोड़ गए मैंने मार्च में पायलट को लेकर चेताया था तो क्या सचिन सिंधिया होने की राह पर चल पड़े है ?

होली पर सिंधिया ने बीजेपी को ज्वाइन करने की घोषणा की लेकिंन उनके इस्तीफे से पहले कांग्रेस ने उन्हें निकाल दिया गया 2014 से कांग्रेस जिस डाल पर बैठ रही है उसे ही काट रही है 2019 की हार के बाद जब राहुल गांधी ने इस्तीफा दिया था तब ही सचिन या सिंधिया को कमान सौंप देने थी लेकिन कॉंग्रेस पता नही कौन से युग में जी रही है मोदी और शाह के बाद भारत की राजनीति बहुत डायनामिक हो गई है और कांग्रेस स्टेटिक हो गई है बूढ़ी कांग्रेस को युवा खून चाहिए, लेकिन पुराने चावल अपनी कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार ही नही है क्योकि उन्हें वंही राजनीति करनी है जो वो पिछले 40 सालों से कर रहे है

लोकसभा चुनाव हार और राहुल के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के पास एक सुनहरा मौका था की वो परिवार वाली पार्टी के टेग से अपने आप को मुक्त कर ले और नए नेतृत्व में नए सिरे से संगठन निर्माण में जुट जाए, अगर सचिन पायलट या सिंधिया के नेतृत्व में नई युवा टीम बनती तो आज कांग्रेस का कुछ अलग रूप देखने को मिलता और प्रियंका और राहुल को भी नयी राजनीति करने के लिए टाइम और स्पेस मिलता लेकिन कॉंग्रेस मोतीलाल,कमलनाथ अशोक गहलोत और दिग्गी जैसे घाघ नेताओं के मकडजाल से कभी निकल ही नही पाई

कमलनाथ ने एमपी में कुछ नया नही किया न तो उन्होंने शिवराज सरकार के दौरान हुए महा घोटालो की जांच करवाई और नया कोई रोडमेप रखा ऐसा की कुछ गहलोत कर रहे है पुराने नेता अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को ठिकाने लगाने लग गए , अब हालात ऐसे हो गए है कि अगर आज एमपी,राजस्थान में चुनाव हो जाये तो कांग्रेस का पत्ता साफ हो जाएगा सबसे पुरानी पार्टी अभी भी लोकसभा चुनावों की हार का मंथन ही कर रही है एक परमानेंट अध्य्क्ष चुनने में जिस पार्टी को 9 महीने से ज्यादा का समय लग जाये उसका भगवान ही मालिक है बिना पूर्णकालिक अध्य्क्ष के कांग्रेस हरियाणा और महराष्ट्र में बेमन से लड़ी और चुनाव हार गई जनता बीजेपी को हराना चाहती थी लेकिन कांग्रेस जीतना ही नही चाहती थी झारखंड में सोरेन ने बेड़ा पार कर दिया लेकिन दिल्ली में पत्ता साफ हो गया कांग्रेस तब भी नही जागी औऱ अभी भी आत्म मंथन ही कर रही है ।

सत्ता के जोंक रूपी पुराने घाघ नेताओं ने पार्टी की हालत इतनी दयनीय कर दी है की आज आज वायब्रेंट राजनीति के दौर में कांग्रेस पुराने घिसे पिटे तरीकों से राजनीति कर रही है उनका मुकाबला चनाव जितने वाली मशीन से है जिसे दो राजनीति के मंजे हुए शातिर खिलाडी चला रहे है और कांग्रेस ढुल मूल रवैये से उनका प्रतिकार कर रही है कांग्रेस ने सिंधिया को नही खोया है उसने एक बड़ा युवा चेहरा खोया है अगर वो पायलट को लेकर भी वैसी ही उदासीन रही और उसने तत्काल बड़े निर्णय नही लिए तो यह पार्टी केवल इतिहास बन कर रह जायेगी ।

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