बस्तर और आदिवासी मेरा पहला और आख़री प्यार हैं मुझे इनसे कोई जुदा नहीं कर सकता – हिमांशु कुमार

बस्तर में मानव अधिकार कार्यकर्ता और समाजसेवियों पर सरकार की नजर टेढ़ी, आखिर किस बात से डर रही सरकार

रायपुर (भूमकाल समाचार)। छत्तीसगढ़ सरकार बस्तर के आदिवासियों के साथ कुछ तो जरूर ऐसा करने जा रही है या कर रही है जिसे लेकर खुद इतना डरी हुई है कि बस्तर में सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर एक तरह से अघोषित बंदिश लगाया जा रहा है । कुछ दिन पहले ही जल जंगल जमीन के अधिकार वह अन्य मुद्दों को लेकर आदिवासियों द्वारा बीजापुर में किए जाने वाले एक बड़े प्रदर्शन में जाने से प्रसिद्ध समाजसेवी आदिवासी नेत्री सोनी सोढ़ी को भी रोक दिया गया था । अब प्रसिद्ध समाजसेवी हिमांशु कुमार ने छत्तीसगढ़ सरकार पर आरोप लगाया है की वह उन पर नजर रख रही है और आदिवासियों से मिलने जुलने पर उन्हें डराया जा रहा है ।

ज्ञात हो कि प्रसिद्ध समाजसेवी हिमांशु कुमार के खिलाफ पिछली भाजपा सरकार के समय कई अपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिए गए थे । इसके पीछे प्रमुख कारण सरकार के समर्थन में चलाए जा रहे हैं, सलवा जुडूम और आदिवासी अत्याचार के खिलाफ उनकी मुहिम को माना जाता है । हिमांशु कुमार ने सलवा जुडूम से हुए अत्याचारों और खाली कराए गए गांव का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचाया था, तब सुप्रीम कोर्ट ने खाली कराए गए गांव को बसाने का निर्देश भी दिया था । बाद में दंतेवाड़ा प्रशासन ने सरकार के निर्देश पर कँवलनार स्थित उनके आश्रम पर बुलडोजर चलवा दिया था और उन्हें बस्तर छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया । मगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने पर वह फिर से आदिवासियों के हित में काम करने की इरादे से पिछले कुछ महीनों से दंतेवाड़ा में रह रहे हैं ।

ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ सरकार बनने से पूर्व चुनाव की तैयारियों के लिए कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश के तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी संस्थाओं, मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्थाओं से भाजपा काल में हुए दलित आदिवासी अत्याचारों, जल जंगल और जमीन कार्पोरेट को सौंपने के खिलाफ व आदिवासियों के संवैधानिक अधिकार उन्हें सौंपने का वादा कर उन्हें चुनाव में कांग्रेस का साथ देने का वादा भी किया, चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह के कई वादे भी तब राहुल गांधी ने किये । जबकि सरकार बने दो साल के करीब हुए, तब इनमें से कई प्रमुख वादों का अता-पता नही है, जबकि सरगुजा, कोरबा,रायगढ़ और बस्तर में कोयला और बांध के नाम से उन्हें उजाड़ने की तैयारी में जुट गई है । बस्तर में फर्जी मुठभेड़ और गिरफ्तारी का दौर भी लगभग उसी तरह जारी है जैसे पिछले कार्यकाल में चल रहा था । आपको ध्यान दिला दें की सबसे बड़े चुनावी मुद्दा जिसने सत्ता परिवर्तन में प्रमुख भूमिका निभाई, किसानों को धान का ढाई हजार रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य दिलाने के वादा को भी अभी तक कांग्रेस पूरा नहीं कर पाई है, किसानों की उधारी चुकाने को न्याय योजना का नाम दिया हुआ है । बस्तर में समाजसेवी कार्यकर्ताओं वह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दबाव बनाने की कोशिश के पीछे केंद्र और राज्य दोनों की सहभागिता से अति शीघ्र शुरू किए जाने वाले बोध घाट परियोजना को भी माना जा सकता है । इस मुद्दे पर आदिवासी सर्व समाज आंदोलन की भूमिका भी बना चुका है और अब सरकार का डर भी साफ दिख रहा है ।

*अपने साथ घटी घटना को अपने फेसबुक वॉल पर शेयर करते हुए समाजसेवी हिमांशु कुमार जी ने जो भी लिखा है हम उन्हीं के शब्दों में यहां प्रस्तुत कर रहे हैं कि इस तरह उन पर नजर रखा जा रहा है और कैसे आदिवासियों से मिलने से उनको रोका जा रहा है *

” कल मेरे साथ बड़ा मजेदार वाकया हुआ, मेरा एक दोस्त है, उनका नाम कोपा कुंजाम है, कोपा कुंजाम पहले गायत्री मिशन से जुड़े हुए थे

फिर जब 1992 में मैं और मेरी पत्नी ने आदिवासियों के गांव में रहकर सेवा कार्य शुरू किया, तब कोपा हमारे साथ जुड़ गये, 2005 में जब सलवा जुडूम में आदिवासियों के गाँव खाली कराये गये तब सर्वोच्च न्यायालय ने इन गावों को दोबारा बसाने का आदेश दिया, पर भाजपा सरकार ने आदेश पर अमल नहीं किया

हमारी संस्था ने वीरान हो गये आदिवासियों के गावों को दुबारा बसाने का काम शुरू किया और हम लोगों ने चालीस से ज्यादा गावों को दोबारा बसा दिया, इससे भाजपा सरकार कोपा कुंजाम से चिढ़ गई, कोपा के ऊपर हत्या और अपहरण का एक फर्जी मामला बनाया गया ।

कोपा को थाने में ले जाकर उल्टा लटका कर सारी रात नीचे मिर्च का धुआं दिया गया और इतना मारा गया कि कोपा की पीठ की खाल उतर गई । कोपा को जेल में डाल दिया गया, हम लोगों ने सुप्रीम कोर्ट से कोपा की जमानत करवाई, बाद में कोपा कुंजाम को अदालत ने निर्दोष माना और बरी कर दिया

इस साल जब ग्राम पंचायतों के चुनाव हुए तो कोपा को गाँव वालों ने अपना सरपंच चुना । सरपंच बनने के बाद कोपा अक्सर मुझे फोन करके मिलने के लिए बुलाते थे, लेकिन लाक डाउन की वजह से मैं टालता रहा ।

कल मैं कोपा कुंजाम से मिलने उनके गाँव गया, मुझे देख कर आस पास रहने वाले एक दो लोग भी आ गये
चाय पीते पीते कोपा ने कहा गुरूजी बताइये कि हम लोग आपने गाँव को कैसे बेहतर बनाएं

मैनें कहा नौकरियां तो अब मुश्किल होती जा रही हैं इसलिए नौजवानों को खेती पर ही ध्यान देना होगा । गावों में जितने भी सिंचाई के स्रोत हैं वहाँ फेंसिंग की व्यवस्था पर ध्यान दो, रासायनिक खाद की बजाय केंचुआ खाद की शेड बनवाओ

अभी हमारी चाय पूरी भी नहीं हुई थी कि कोपा के पास थानेदार का फोन आ गया कि आप किसी बाहर के व्यक्ति को बुलाकर बैठक नहीं करा सकते । कोपा ने कहा कि कोई बैठक नहीं हो रही है

इतनी देर में दो तीन अन्य अधिकारीयों के भी फोन कोपा को आ गये, मैंने कहा कोपा लगता है प्रशासन नहीं चाहता कि मैं किसी से मिलूँ जुलूँ इसलिए मैं जा रहा हूँ, मैं नहीं चाहता कि तुम पर कोई मुसीबत आये, मैं वापिस आ रहा था तो रास्ते में मैंने कोपा के गाँव की तरफ जाती हुई सरकारी गाड़ियां देखीं

एसडीएम दंतेवाड़ा,जिला पंचायत दंतेवाडा के सीईओ और तहसीलदार कोपा के पास पहुंचे । उन्होंने पूछा कि यहाँ हिमांशु कुमार क्यों आये थे ? क्या वह यहाँ मानवाधिकार के बारे में बता रहे थे ? कोपा से कहा गया कि तुम मुसीबत में पड़ जाओगे जो कि एक तरह की धमकी ही थी ।

*मैं तबसे हैरान हूँ *

क्या कांग्रेस शासित प्रदेश में एक गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता किसी पड़ोस के गाँव में नहीं जा सकता ? क्या खेती बाड़ी की बात करना अपराध है? सभी राजनैतिक पार्टियों के नेता और अधिकारी पुलिस और अर्ध सैन्य बल गावों में जा रहे हैं । फिर मेरे ही गाँव में जाने से इतना हडकम्प क्यों ?

अगर मैं आदिवासियों से उनके मानवाधिकार की भी बात करना चाहता हूँ तो क्या अब संविधान में वर्णित मानवाधिकारों की बात आदिवासियों से करने पर कोई पाबंदी लगा दी गई है?
मैं बस्तर में तीस साल पहले आया था, तब मैं पच्चीस साल का युवा था, अब मैं पचपन साल का हूँ

बस्तर के ज्यादातर गाँव के लोग मुझे पहचानते हैं मुझे प्यार करते हैं मुझसे अपने सुख दुःख बांटते हैं । मेंरी शादी मेरे बच्चों का जन्म उनका बचपन सब इन लोगों ने अपने सामने देखा है, यह लोग मुझे अपने परिवार के सदस्य जैसा मानते हैं

मुझसे अब कोई कहे कि आप इन लोगों से बात नहीं कर सकते तो मैं तो सदमे से ही मर जाऊंगा बस्तर और आदिवासी मेरा पहला और आख़री प्यार हैं मुझे इनसे कोई जुदा नहीं कर सकता – हिमांशु कुमार “

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