बाबा नागार्जुन का सवाल आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना पहले था
गणतंत्र दिवस के अबसर पर आपको बधाई !

‘किसकी है जनवरी किसका अगस्त है ?
कौन यहां सुखी है कौन यहां मस्त है ?
सेठ है शोषक है नामी गला-काटू है
गालियां भी सुनता है भारी थूक-चाटू है
चोर है डाकू है झूठा-मक्कार है
कातिल है छलिया है लुच्चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है
उसी की जनवरी 26 उसीका 15 अगस्त है
बाकी सब दुखी है बाकी सब पस्त है
कौन है खिला-खिला बुझा-बुझा कौन है ?

कौन है बुलंद आज कौन आज मस्त है ?
खिला-खिला सेठ है श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलंद है कुली-मजूर पस्त है
सेठ यहां सुखी है सेठ यहां मस्त है
उसकी है जनवरी उसी का अगस्त है
पटना है दिल्ली है वहीं सब जुगाड़ है
मेला है ठेला है भारी भीड़-भाड़ है
फ्रिज है सोफा है बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है पर सबकुछ उघाड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
गिन लो जी गिन लो गिन लो जी गिन लो
मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी गिन लो गिन लो जी , गिन लो
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है !
गिन लो जी गिन लो गिन लो जी गिन लो
बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है !
देख लो जी देख लो देख लो जी देख लो
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है!
महल आबाद है झोपड़ी उजाड़ है
ग़रीबों की बस्ती में उखाड़ है पछाड़ है

धत् तेरी धत् तेरी कुच्छों नहीं ! कुच्छों नहीं
ताड़ का तिल है तिल का ताड़ है
किसकी है जनवरी किसका अगस्त है !
कौन यहां सुखी है कौन यहां मस्त है!
नेता सेठ सुखी है नेता सेठ मस्त है
मंत्री ही सुखी है मंत्री ही मस्त है
उसी की है जनवरी उसी का अगस्त है !”