गरीब और अमीर को अलग-अलग चश्मे से देखती है पुलिस : कुणाल शुक्ला

रायपुर । पुलिस अपनी पर आ जाये तो क्या नहीं हो सकता?पर इसकी पहली शर्त है आपको रसूखदार अथवा धनभैया होना पड़ेगा, यह कहना है प्रसिद्ध आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला जी का।

कुणाल के अनुसार यूपी में आज़म खान की चोरी गयी भैंसे खोज कर तत्काल लाती है पुलिस। दिल्ली में पीएम की भतीजी का छिन गया पर्स लाखों के बीच खोज लाती है पुलिस। तेलंगाना सीएम के ईलाज़ के दौरान मृत हुए कुत्ते के लिए डॉक्टर पर एफआईआर कर आती है पुलिस। ताज़ा मामला,छग में अपरहित किये उद्योगपति को सब काम छोड़ कर छुड़वा ले आती है पुलिस।

“मेरे देश में यहां प्रतिदिन सैकड़ों मामले होते हैं जहां एफआईआर लिखवाने पीढ़ित की चप्पलें घिस जाती हैं पर वह कभी लिखी नहीं जाती…प्रतिदिन सैकड़ों पर्स छीने जाते हैं कई भैंसे चोरी चली जाती है, क्या पुलिए इन पर तत्पर दिखती है?नहीं कभी नहीं….”

अपने फेसबुक पोस्ट में कुणाल ने लिखा है कि NCRB के आंकड़े उठा कर देखिए पिछले बीस बरसों में छत्तीसगढ़/झारखंड के ट्राइबल जिलों से कितनी मासूम आदिवासी लड़कियां मानव तस्करी की बलि चढ़ गयीं।क्या पुलिस इन पर तत्पर दिखती है?नहीं कभी नहीं ।

पुलिस के पास गरीब, मजदूर,किसान,रसूखदार,दबंगों, धनभैया सभी को देखने के लिए अलग अलग चश्में हैं.. मैं यह लिख इसलिए रहा हूँ कि क्या कभी पुलिस समाज के सभी वर्गों को एक ही चश्में से देख पाएगी?इसका जवाब भी नहीं में ही है।

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