मुद्दों की कविता

वैभव बेमेतरिहा

जेएनयू की हिंसा पर बोलना जरूरी है
जरूरी है विरोध करना
लोकतंत्र की रक्षा की बात करना
लेकिन छत्तीसगढ़ में
जिस तरह से पार्षद जोड़े-तोड़े गए
जिस तरह से धान खरीदी पर बवाल मचा हुआ है
जिस तरह से हसदेव अरण्य में आदिवासी प्रताड़ित हैं
जिस तरह से एनएमडीसी की लीज बढ़ी
जिस तरह से पत्रकारिता की धार कमजोर हुई
जिस तरह से गौठानों की हालत बुरी है
जिस तरह तमाम जाँच अधूरी है
जिस तरह शराबबंदी कमेटी तक सीमित
जिस तरह के यहाँ के विश्वविद्यालयों में फीस
जिस तरह से यहाँ कुलपतियों के खिलाफ शिकायत
जिस तरह कृषि, केटीयू, सरगुजा विवि को लेकर विवाद है
इन पर नामचीन कलमकार क्यों खामोश हैं ?
इन पर क्यों ख़ामोश है तार्किक कहलाने वाले ?
क्यों ख़माोश है विवेकशील गुणी कहलाने वाले ?
क्यों खमोश हैं जय स्तंभ तक सड़क पर आने वाले ?
क्यों ?
क्यों नहीं वे इन सवालों पर नारे लगाते ?
क्यों नहीं सरकार से कुछ पूछने की हिम्मत जुटा पाते ?
क्यों नहीं इसके लिए वे सड़क पर इक्कठा हो पाते ?
क्यों नहीं ?
क्यों नहीं सर्व आदिवासी समाज के फैसलों पर अमल हो पाता ?
क्यों नहीं…क्यों नहीं ?

वैभव बेमेतरिहा

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