नंदराज पर्वत के खनन विरोधी आंदोलनकारियों पर हुए “एनकाउंटर” की न्यायिक जांच हो: पीयूसीएल

बेला भाटिया, सोनी सोरी, दंतेवाड़ा के सरपंचों व 150-200 अन्य ग्रामीण आदिवासियों के उत्पीड़न की कडी निंदा

रायपुर । मानव अधिकार संरक्षको (बेला भाटिया, सोनी सोरी, मड़कम हिडमे और लिंगराम कोड़ोपी) के द्वारा किए गए फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट, मीडिया में आए समाचार और विभिन्न सामाजिक व राजनैतिक संगठनों के कथनों के आधार पर पीयूसीएल ने छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार से मांग की है कि 13 सितम्बर 2019 की रात को तथाकथित मुठभेड़ में मारे गए पोडिया सोरी और लच्छू मंडावी के मामले में उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा जांच के आदेश तुरंत जारी किये जाए।

इसके अलावा, पीयूसीएल दंतेवाड़ा पुलिस की कार्यवाही से चकित है जिसने सामाजिक कार्यकर्ताओं, दंतेवाड़ा के सरपंचों, साथ ही 150-200 अज्ञात आदिवासी ग्रामीणों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है, जो केवल एक गैर कानूनी हत्या की शिकायत दर्ज कर रहे थे और अन्याय के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध में लगे हुए थे। पीयूसीएल ने पुलिस की इस कार्रवाई की निंदा की है, जो आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वालों को डराने के मंशा से है।

पीयूसीएल ने बताया है कि यह तो सभी जानते हैं कि पोडिया सोरी और लच्छू मंडावी दंतेवाड़ा जिले के ग्राम गुमियापाल के सम्मानित युवा नेता थे, जो किरंदुल के नंदराज पर्वत में लौह अयस्क खनन कार्य शुरू करने के लिए खनन दिग्गज अडानी समूह की योजनाओं के खिलाफ जन आंदोलन में सक्रिय थे। नंदराज पर्वत को आदिवासी समुदाय पवित्र देवस्थल मानते है, जिसका काफी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। हाल ही में, प्रभावित गाँव की ग्राम सभा से प्राप्त फ़र्ज़ी अनापत्ति प्रमाणपत्र [नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट (NOC)] के खिलाफ व्यापक जन विरोध व प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद मामले की जाँच के लिए एक मजिस्ट्रेटी जाँच शुरू हुई है। लेकिन 13 सितंबर 2019 को,पोदिया सोरी और लच्छू मंडावी, दोनों को उनके अपने ही गांव में सुरक्षा बलों ने मार डाला और 5 लाख के इनामी नक्सली कमांडरों के रूप में घोषित किया ।

विज्ञप्ति के अनुसार ग्रामीणों का दावा है कि पोदिया और लच्छू किसी भूमिगत माओवादी आंदोलन में शामिल नहीं थे, और पुलिस के आरोपों का सरासर खंडन करते हुए बताया कि वे सुरक्षा बलों के साथ गोलीबारी में नहीं मारे गए थे। फैक्ट-फाइंडिंग टीम (बेला भाटिया, सोनी सोरी, लिंगा कोडोपी और हिडमे मदकम) को ग्रामीणों ने बताया कि 13 सितंबर 2019 की रात दोनों युवक तीन अन्य युवाओ के साथ कुछ मनोरंजन के लिए स्कूल के परिसर में इकट्ठे हुए थे। रात लगभग 9 बजे, जब पोदिया स्कूल परिसर छोड़कर अपने किसी दोस्त के घर सोने चला गया था तब वहाँ सुरक्षा बल वहाँ अचानक आये और स्कूल प्रांगण में युवकों को घेर कर पोदिया को अपने दोस्त के घर से घसीट निकाला। सुरक्षा बलों ने पांचों ग्रामीणों को, जिसमें पोडिया और लच्छू शामिल थे, थप्पड़ मारे, पिटाई की और वहाँ से बलपूर्वक उन्हें ले गए। रास्ते में, दो युवक चकमा देकर भागने में सफल रहे और वे वापस अपने घरों के आ गए। अगली सुबह, ग्रामीणों को पता चला कि पोदिया और लच्छू मारे गए हैं और उन्हें खूंखार नक्सली के रूप में दिखाया गया है। पांचवां युवक अजय तेलम पुलिस की हिरासत में ही था।

उपरोक्त जानकारी के साथ 16 सितंबर की शाम अधिवक्ता और शोधकर्ता बेला भाटिया, AAP नेता सोनी सोरी, दो आदिवासी महिला कार्यकर्ता हिडमे मडकाम और पांडे कुंजामी किरंदुल पुलिस थाना पहुंचे। इस अन्याय के विरोध में सैकड़ों ग्रामीण अपने अपने गाव से रैली निकालकर थाना आए और वहां शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शांति से बैठे थे। पुलिस थाने में शिकायत और आदिवासी ग्रामीणों द्वारा शांतिपूर्ण प्रदर्शन का उद्देश्य दो युवकों की फर्जी मुठभेड़ में हत्या के खिलाफ आवाज उठाना और तीसरे युवा के बारे में जानकारी प्राप्त करना था। लेकिन उनमें से किसी को भी पुलिस ने थाने में प्रवेश नहीं करने दिया और शिकायत को केवल थाने के बंद गेट की सलाखों से लिया । अगले दिन जब टीम शिकायत की फॉलो अप के लिए लौटी तो एसडीओपी किरंदुल ने ऊचे स्वर में उन पर आरोप लगाए कि वे ग्रामीणों को घेर कर लाये हैं और सारा विरोध इन्हीं के द्वारा रचाया गया है।

यह विडंबना है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं की पुलिस के खिलाफ शिकायत को एफआईआर के रूप में भी दर्ज नहीं किया गया, उल्टा उनके ऊपर आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाकर बेला भाटिया, सोनी सोरी, सरपंच नंदा, सरपंच पति भीमा और 150-200 अन्य ग्रामीणों के ऊपर भा.द.वि. की धारा 188 के तहत एफआईआर क्र 62/2019 किरंदुल थाना में दर्ज हुआ।

पीयूसीएल छत्तीसगढ़, दंतेवाड़ा पुलिस के इस शत्रुताग्रस्त व्यवहार से हैरान है। छत्तीसगढ़ के बघेल सरकार के कई वादों के बावजूद धरातल पर बहुत कम बदलाव हुआ है। फर्जी मुठभेड़ जारी हैं और निर्दोष आदिवासी जो अपने अधिकारों के लिए खडा होता है, उसे अभी भी नक्सली के रूप में सुरक्षा बलों द्वारा जानबूझकर निशाना बनाकर मारा जा रहा है। जब भी मानवाधिकार कार्यकर्ता शांतिपूर्ण ढंग से पुलिस की जवाबदेही और पारदर्शिता की माँग करे, तो शासन प्रशासन उन्हें जन विरोधी, कठोर और न्यायविरोधी उपायों से परेशान करते हैं।

पीयूसीएल ने छत्तीसगढ़ सरकार और स्थानीय पुलिस की इन कार्रवाइयों का पुरजोर विरोध किया है। पीयूसीएल ने मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा स्वतंत्र जांच तुरंत करवाई जाए, जिसमें गुमियापाल गाँव के पोदिया सोरी और लच्छू मंडावी की हत्या, अजय तेलम का गैर कानूनी हिरासत शामिल हो। किरंदुल थाना में बेला भाटिया, सोनी सोरी, और अन्य ग्रामीणों के खिलाफ दर्ज एफआईआर क्रा 62/2019 के संबंध में खात्मा रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट को तुरंत भेजी जा और पुलिस द्वारा मानव अधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न को बंद किया जाए।

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