मानवाधिकार के योद्धा लाखन सिंह का जाना समाज की बड़ी क्षति

छत्तीसगढ़ बॉस्केट

सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक आंदोलन में मानवाधिकार के लिए लंबे समय से संघर्षरत जुझारू और सुलझी हुई शख्सियत के धनी लाखन सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका जाना मानवाधिकार आंदोलन लिए छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है।

मिलिट्री साइंस में डॉक्टरेट लाखन सिंह ने अपनी लड़ाई एसएफआई से शुरू की, जो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र संगठन है। सत्तर के दशक में ग्वालियर मिलिट्री साइंस कॉलेज में 1979 में अध्ययन के बाद छह माह तक रविशंकर विश्वविधयालय में प्रोफेसर रहें हैं। उसके बाद अस्सी के दशक में यानी 1980 के आसपास खादी ग्राम उद्योग में निरीक्षक के रूप में बिलासपुर आ गए। भारत ज्ञान विज्ञान, साक्षरता समिति तथा अक्षर यात्रा कार्यक्रम के संयोजक की भूमिका में महत्वपूर्ण कार्य किया।

2007 में जाने माने चिकित्सक डॉक्टर विनायक सेन की गिरफ्तारी के बाद जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित छत्तीसगढ़ में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज के अध्यक्षीय पद को आज तक निर्वहन करते रहे। आदिवासियों, मजदूरों, किसानों, दलितों, महिलाओं के अधिकार के लिए वे लगातार लड़ते रहे। पिछले पांच सालों से और छत्तीसगढ़ बास्केट वेब साइट में समस्त विचारों को साझा करते हुए सात हजार से ज्यादा पोस्ट का संपादन कार्य गिरते स्वास्थ्य के बाद भी करते रहे।

9 अगस्त 1952 को जन्मे ये जुझारू मानवाधिकार कार्यकर्ता देश और छत्तीसगढ़ में राज्य हिंसा के खिलाफ मुखर आवाज बनकर हाशिए के लोगों के लिए खड़े रहे। उनकी इच्छा थी कि उनके अंतिम संस्कार के बाद उनके शरीर के सभी अंगों को विज्ञान के अनुसंधान के लिए मेडिकल कॉलेज को दान दे दिया जाए। उनके कार्यकाल में मुझ सहित कई पत्रकारों को निर्भीक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया गया। बस्तर में बढ़ती हिंसा को लेकर उनकी चिंता सुधा भारद्वाज की रिहाई के लिए भी थी। वे जीवन और मानवाधिकार के लिए अंतिम सांस तक लड़ते रहे। कहा जाता है शंकर गुहा नियोगी की हत्या के बाद लाखन जी का नहीं रहना एक बड़ी सामाजिक क्षति है। जब देश में मजदूर, किसान दलित तथा आदिवासियों के आंदोलनों को कुचला जा रहा हो तब लाखन सिंह समाज के आधार स्तंभ की तरह मजबूती के साथ खड़े रहे। घर और समाज के बीच विपरीत परिस्थितियों में उनका लड़ना हमारे संविधानिक और मानवाधिकार की लड़ाई में मील का पत्थर था।

पिछले लंबे समय से दमा और शारीरिक बीमारियों से जूझते हुए उन्होंने आज अंतिम सांस ली। छत्तीसगढ़ सहित भारत का पीड़ित वर्ग अपने आंदोलन उनकी मृत्यु पर स्तब्ध है। हमने शोषक वर्ग के खिलाफ एक बहादुर योद्धा को खो दिया है।…

उत्तम कुमार

साभार : सीजीबास्केट

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!