पुलिस ने दी हत्या के आरोपी को छूट तो माओवादियों ने दे दी मौत की सजा

ग्रामीणों ने की थी नामजद शिकायत , पर पुलिस ने 21 दिन बाद भी नही की थी कार्यवाई

कमल शुक्ला

कांकेर । पुलिस द्वारा जानबूझकर बरती गई लापरवाही की वजह से एक युवक की जान चली गई, वास्तव में इस युवक को 25 दिन पहले ही पुलिस को एक हत्या के आरोप में संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर लिया जाना था । गांव वालों की गुहार के बावजूद पुलिस ने आरोपी को मौका दिया और जिस व्यक्ति को भारतीय न्याय व्यवस्था के तहत सजा मिलना चाहिए था, वह तो नहीं मिला हां जन अदालत लगाकर जनताना सरकार ने सजा देकर फिर से सरकार के प्रति लोगों के अंदर एक अविश्वास और जंगल की सरकार के प्रति विश्वास पैदा कर लिया ।

5 अगस्त को मारे गए शिक्षक धन सिंह की लाश

मामला कांकेर जिला के कोयलीबेड़ा थाने के ग्राम जुगड़ा का है । ज्ञात हो कि कोयलीबेड़ा से 15 किलोमीटर दूर ग्राम जुगड़ा निवासी शिक्षक धन सिंह उसेंडी की पिछले माह की 5 अगस्त को गांव वापसी के दौरान गांव से 2 किलोमीटर दूर डंडे से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी । इस मामले की शिकायत ग्रामीणों ने थाने में घटने के दिन ही जा कर दी ।

गांव के ही एक युवक ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया कि शिक्षक धनसिंग उसेंडी ने कोयलीबेड़ा थाने में कई बार शिकायत किया था कि उक्त युवक श्यामनाथ उसकी नाबालिक लड़की को कई बार जबरदस्ती उठाकर अपने घर ले जाता था , जिसे गांव वालों की मदद से उक्त युवक के घर से कई बार उसने वापस लाया था । घटना के दिन भी वह कोयलीबेड़ा थाने से शिकायत करके लौट रहा था कि गांव से 2 किलोमीटर पहले ही उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी । ज्ञात हो तब इस मामले को लेकर स्थानीय पत्रकारों ने संभवत पुलिस के ही कहने पर माओवादी द्वारा किया गया हत्या प्रचारित किया था ।

जबकि गांव वालों ने हत्या के संदेही श्यामनाथ आचला का स्पष्ट नाम भी थाने में बताया था। गांव के कई ग्रामीणों ने दावा किया कि पुलिस ने उनका बयान भी दर्ज किया था, और आरोपी के पिता को थाने में भी बुलाया गया था मगर घटना के 21 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस ने संदेही श्यामनाथ को थाना नहीं बुलाया । ग्रामीणों के अनुसार आरोपी युवक का पिता गांव का सबसे संपन्न व्यक्ति है ।

*बस्तर के तमाम नक्सल पीड़ित गांव में किसी की हत्या या अप्राकृतिक मौत हो जाती है, तो पुलिस लाश लेने गांव तक नहीं पहुंचती । गांव वालों पर ही दबाव डालकर लाश थाने मंगाई जाती है । सारे साक्ष्य के लिए पुलिस गांव वालों पर ही निर्भर रहती है । ज्यादातर मामलों में हत्या का आरोप नक्सलियों पर मढ़कर पुलिस अपनी जिम्मेदारी से बच जाती है । ना कोई फॉरेंसिक जांच ना कोई साक्ष्य इकट्ठा करने की जिम्मेदारी । यही कारण है कि बाढ़, बिजली या बीमारी की वजह से होने वाली मौतों का बस्तर के ग्रामीणों को मुआवजा भी नहीं मिलता ।*

शिक्षक की लाश को लेने तो पुलिस की टीम पहुंची पर युवक की लाश को ग्रामीणों को ही लाना पड़ा और डेढ़ दिनों तक थाने में ही रहने की नौबत ग्रामीणों को आयी । महिला कॉन्स्टेबल नही रहने के बावजूद महिलाओं को थाने में रुकने मजबूर किया गया ।

क्या सही में श्याम नाथ मुखबिर था ? इसीलिए मिली हत्या के सन्देह से उसे छूट ??

इधर 27 अगस्त स्थानीय अखबारों ने प्रकाशित किया कि शिक्षक की हत्या के संदेही युवक श्यामनाथ आचला की नक्सलियों ने हत्या कर दी है । सोशल मीडिया में प्रसारित खबरों के अनुसार उक्त युवक की हत्या के पहले माओवादी गांव पहुंचे और उन्होंने कथित रूप से जन अदालत लगाकर उक्त युवक पर मुखबिरी और जनविरोधी कार्य करने का आरोप लगाया फिर टंगिया से हत्या कर दी । घटनास्थल पर माओवादियों ने युवक की लाश के ठीक ऊपर पर्चे छोड़े, मुखबिर होने का आरोप भी लगाया और हत्या की जवाबदारी भी ली । पत्रकार घटनास्थल पहुंचे,फोटो भी खींचे, मगर इस बार भी पुलिस घटनास्थल नहीं पहुंची और ग्रामीणों को ही लाश लेकर थाने आने के लिए मजबूर किया । कई महिलाओं सहित दर्जनों ग्रामीण कोयलीबेड़ा थाने पहुंचे । ग्रामीणों को जबरदस्ती थाने में रात भर रोका गया उन्हें खाना और पानी तक नहीं दिया गया ।

*अगर ग्राम वासियों का आरोप सही है तो यह तय है कि पुलिस ने शिक्षक धनसिंग उसेंडी की शिकायत पर पहले ही कार्यवाही कर ली होती तो ना धन सिंह की हत्या होती और ना ही हत्या के संदेही युवक श्यामनाथ की हत्या हुई रहती । ऐसे ही पुलिसिया करतूतों की वजह से माओवादियों को आदिवासी ग्रामीणों का मसीहा बनने का मौका मिलता है अब देखना यह है कि सरकार इस पूरे मामले को अहम का मुद्दा बनाकर ढकने की कोशिश करती है या सही में माओवादियों के प्रति जनता के मन में बन रहे विश्वास को फिर से एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति विश्वास में बदलने की कोशिश करती है ।*

इस मामले को लेकर कोयलीबेड़ा टीआई उमेश पाटिल भूमकाल समाचार से बात करते हुए बताया कि शिक्षक धनसिंह उसेंडी का हत्यारा अभी तक पकड़ा नही गया है । उन्होंने स्वीकार किया कि जुगड़ा ग्राम के ग्रामीणों ने शिक्षक की हत्या को लेकर श्याम नाथ आचला नाम के युवक पर सन्देह जताया था , इस सन्देह के पीछे ग्राम वासियों ने वजह बताया था कि युवक और शिक्षक के बीच विवाद था । शिक्षक की बेटी को लेकर हुए विवाद पर ग्राम में तीन बार बैठक होने की बात भी ग्रामीणों ने उन्हें बताई थी । पर उमेश पाटिल के अनुसार उन्होंने संदेही श्याम नाथ आचला को थाने बुलाकर पूछताछ की और उसके बताएं पतो पर जांच की तो पाया कि घटना के समय वह उस दिन उस गांव में ही नहीं था ।

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