सुधा भारद्वाज की रिहाई के लिए छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में प्रदर्शन

रायपुर. देश की वरिष्ठ अधिवक्ता सुधा भारद्वाज की रिहाई के लिए सोमवार को छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की अगुवाई में विभिन्न जनसंगठनों ने राजधानी रायपुर में एक दिवसीय धरना दिया. धरने में शामिल बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उनकी निःशर्त रिहाई की मांग करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नाम एक ज्ञापन सौंपा और हस्तक्षेप करने की मांग की.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि अधिवक्ता सुधा भारद्वाज गत चार दशकों से छत्तीसगढ़ के आदिवासी, मजदूर, किसान,  दलित, अल्पसंख्यक एवं महिलाओं  के पक्ष में उनके संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्षरत रही हैं. दिल्ली के जवाहर लाल नेहरु विश्वविधालय की प्रोफ़ेसर कृष्णा भारद्वाज की पुत्री सुधा भारद्वाज अपनी आईआईटी की पढ़ाई के बाद उच्च संस्थानों में कार्य कर सकती थीं, लेकिन उन्होंने दल्लीराजहरा में मजदूरों के अधिकारों के लिए काम करने का निर्णय लिया और शंकर गुहा नियोगी के आदर्शों से प्रेरणा से लेकर मजदूर बस्ती में जीवन यापन करती रही.

छत्तीसगढ़ में  पिछले 15 सालों में जब अंधा-धुंध खनन व औद्योगिकरण के नाम पर किसानों से उनकी जमीनों को छीना गया. कार्पोरेट लूट को सरल बनाने  तमाम संवैधानिक अधिकारों, कानूनों और नियमों को दरकिनार किया गया तब एक सुधा भारद्वाज ही थी जिन्होंने कार्पोरेट लूट के खिलाफ आदिवासियों और किसानों के हित में उच्च न्यायालय में सैकड़ों मामलों में पैरवी की. बस्तर में माओवादी हिंसा के नाम पर राज्य प्रायोजित मुठभेड़ एवं महिलाओं पर लैंगिक हिंसा के मामलों को भी उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और न्यायलय के समक्ष पूरी शिद्दत के साथ उठाया. कई मामलों में वे स्वयं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की ओर से गठित जांच टीम का हिस्सा भी रही. प्रदेश में अल्पसंख्यकों और दलितों पर हुए हमलो के मामलो को भी उन्होंने प्रमुखता से उठाया और उन्हें न्यायालय तक ले गई. 

निश्चित तौर पर सुधा भारद्वाज जिस तरह से वंचित वर्ग की आवाज रही और विशेष रूप से कार्पोरेट लूट, दमन और सांप्रदायिक हमलों के खिलाफ संवैधानिक दायरों में रहकर लोकतांत्रिक तरीकों से न्याय व्यवस्था के माध्यम से लड़ रही थी वह भाजपा की केंद्र और राज्य सरकार के लिए चुनौती बन गईं थी. मोदी सरकार अपने खिलाफ उठने वाली प्रत्येक लोकतांत्रिक  आवाजों को कुचल देना चाहती हैं. वह हर उस आवाज को देशद्रोही करार देना चाहती हैं जो न्याय, अधिकार और शांति के पक्ष में खड़ी हैं. सरकार की यह मंशा साफ तौर पर भीमा कोरेगांव के केस में नज़र आती हैं और इसी कारण फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सुधा भारद्वाज को आरोपी बनाकर जेल भेज दिया गया.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि सुधा भारद्वाज ने छत्तीसगढ़ में जन अधिकारों के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया था. उनकी रिहाई के लिए भूपेश सरकार को सभी जरूरी हस्तक्षेप करते हुए न्यायोचित कदम उठाना चाहिए. यह रिहाई सिर्फ एक इंसान की रिहाई की मांग नहीं, बल्कि हम सब के मूल लोकतांत्रिक अधिकारों की रिहाई की मांग भी है.

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