13 सदस्यीय विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के 4 सदस्यों के मौजूदगी में व्यापक खनन परियोजनाओं को दी स्वीकृति .

हिन्दुस्तान टाईम्स की खबर का हिन्दी अनुवाद

पर्यावरण मंत्रालय के 13-सदस्य एक्सपर्ट अ‍प्रेजल कमेटी (ईएसी) के 27 मई 2019 बैठक में केवल 4 सदस्यों उपस्थित थे। कमिटी पर खनन, वन विज्ञान और प्रदूषण जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ मौजूद रहते है . आमतौर पर 7 से 10 सदस्य खनन परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिए कमेटी में बैठते ही हैं .

सूत्रो के अनुसार, 27 मई को दिल्ली में कोयला खनन परियोजनाओं को मंज़ूरी देने वाली ईएसी के 45 वीं बैठक में समिति के 13 सदस्यों में से केवल 4 सदस्य उपस्थित थे। बैठक में चर्चा की गई परियोजनाओं में शामिल थे तेलंगाना के कोंडापुरम और सौनेर में कोयला खनन का विस्तार, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में एक खदान के लिए ‘टर्मस ऑफ रेफेरेंस’ और ओडिशा के सुंदरगढ़ में एक ओपनस्क्रीन खदान के लिए पर्यावरण मंजूरी दे दी गई .

7-सदस्य वन सलाहकार समिति, जो वन विविधता से संबंधित परियोजनाओं के लिए तकनीकी अनुमति देती है, उसके 22 मई के अंतिम बैठक में भी केवल 3 सदस्य उपस्थित थे, कोई स्वतंत्र विशेषज्ञ मौजूद नहीं थे.

समिति अध्यक्ष नवीन चंद्र ने कहा मुझे लगता है कि अन्य [ईएसी] सदस्य के प्रतिबद्धताओं के कारण बैठक में शामिल नहीं हो सके,” और. सदस्य सचिव एस के श्रीवास्तव ने कहा कि बैठक के लिए कोरम की आवश्यकता का उन्हें जाँच करना पडेगी.

नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के कानूनी शोधकर्ता कांची कोहली ने कहा कि ईएसी द्वारा मूल्यांकन पर्यावरण मंजूरी प्रक्रियाओं का एक अहम चरण होता है। “एक बहु-अनुशासनात्मक और अनुभव शील विशेषज्ञ समिति को सभी तथ्यों, प्रस्तुतियाँ और चिंताओं को ध्यान में रखते हुये तय करना होता है कि क्या परियोजना को मंजूरी दी जानी चाहिए या नहीं,”

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि जब ऐसा ही करना है तो पर्यावरण मंत्रालय को बंद कर देना चाहिए। 14 सदस्यों में 9 सदस्य मीटिंग में अनुपस्थित हैं और खनन परियोजनाओ को स्वीकृति प्रदान कर दी जा रही हैं। पर्यावरण खनन के विशेषज्ञ सदस्यों की अनुपस्थिति में सिर्फ अधिकारी मिलकर ही परियोजनाओं को स्वीकृति दे रहे हैं। इस ग्लोबल बार्मिंग के समय जहां पर्यावरण का एक गंभीर संकट हैं वहां केंद्र सरकार नागरिकों के साथ धोखा कर रही हैं.

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