अब पुलिस अधिकारी तय करेंगे कौन पत्रकार है या नही रायपुर प्रेस क्लब ने शुरू की नई परम्परा , पत्रकारों में आक्रोश

रायपुर । अब रायपुर प्रेस क्लब अकेले तय नही करेगी कि उसके सदस्य पत्रकार या सदस्य हैं कि नही , बल्कि पुलिस महानिरीक्षक रायपुर तय करेंगे । ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रेस क्लब को अपने पदाधिकारियों पर ही भरोसा नही रहा और आईडी कार्ड मे दस्तख्त के लिए किसी पुलिस अधिकारी का सहारा लेना पड़ा है । रायपुर सहित प्रदेश भर के पत्रकारों में इस नीति को लेकर गुस्सा है ।

दरअसल रायपुर प्रेस क्लब ने अपने सदस्यों के लिए इस साल एक ऐसा प्रेस कार्ड जारी किया है जिसमें पुलिस महानिरीक्षक के हस्ताक्षर हैं , यह न केवल अद्भुत है बल्कि अवैधनिक और प्रेस क्लब की गरिमा गिराने वाला भी है । रायपुर प्रेस क्लब के ही कुछ सदस्य इस मामले को लेकर कोर्ट जाने की तैयारी में हैं । इस संबंध में एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया है कि एक पुलिस अधिकारी किसी प्राइवेट संस्था या संगठन द्वारा जारी परिचय पत्र में दस्तखत नही कर सकता , यदि ऐसा हुआ है तो यह उनके द्वारा किया गया गैर कानूनी कृत्य है ।

ज्ञात हो कि रायपुर प्रेस क्लब ने नया प्रयोग करते हुए प्रेस क्लब के सदस्यों के लिए आईडी कार्ड जारी किया है । इस कार्ड में रायपुर के पुलिस महानिरीक्षक का हस्ताक्षर है । पूरे देश मे इस तरह के अद्भुत प्रयोग से उन पत्रकारों में आक्रोश है जो किसी संघ या क्लब के सदस्य रहते हुए ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं ।

दक्षिण बस्तर पत्रकार संघ के अध्यक्ष बप्पी राय ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि रायपुर प्रेस क्लब छत्तीसगढ़ के पत्रकारों के लिए एक शक्ति स्तंभ जैसा है । हमे यह अहसास होता था कि रायपुर प्रेस क्लब एक ऐसा स्वत्रन्त्र और शक्तिशाली संगठन है जो अपने पत्रकारों की हित और अस्मिता के लिए मुख्यमंत्री से भी बेखौफ लड़ जाता हैं और उन्हें झुकने पे मजबूर कर देती है । किन्तु प्रेस क्लब के इस निर्णय का, कि अब उनके कार्ड में रायपुर रेंज के IGP के भी हस्ताक्षर होंगे उन्हें एक कमजोर संगठन का रूप प्रदान करेगा । बप्पी राय ने कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के परिचय पत्र में एक प्रशासनिक अधिकारी का प्रमाणपत्र हास्यास्पद है । अगर उन्हें हस्ताक्षर करवाना आवश्यक लगता भी हैं तो जनसंपर्क संचनालय के सचिव के से करवा लेते ।

बस्तर में पत्रकारिता कर रहे युवा पत्रकार तामेश्वर सिन्हा देश की प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल द वायर , जन चौक , गांव कनेक्शन , संघर्ष संवाद , भूमकाल समाचार में छपते हैं । उनका कहना है कि यह एक गलत परम्परा की शुरुवात है । अगर पत्रकारिता का प्रमाण किसी पुलिस अधिकारी द्वारा जारी हो तो बस्तर और अन्य आदिवासी इलाकों के पत्रकारों के लिए तो पत्रकारिता करना ही मुश्किल हो जाएगा । यहां तो पहले ही सरकार पुलिस के माध्यम से जनता के साथ खड़े पत्रकारों को कार्पोरेट दबाव में जेल में ठूस रही है ।

रायपुर से साप्ताहिक हाईवे क्राईम टाईम्स के संपादक दिनेश सोनी कहते हैं कि रायपुर प्रेस क्लब के नियमो के तहत ही उनके आधे से ज्यादा पत्रकार सदस्य ही नही हो सकते , कई तो पत्रकार हैं भी नही । उन्होंने बताया कि दस साल से ज्यादा समय से नियमित साप्ताहिक अखबार के सम्पादक होने के बाद भी आज तक उन्हें सदस्य नही बनाया गया । दिनेश का आरोप है कि अपने ही नियम कायदों के हिसाब से स्वयं प्रेस क्लब अध्यक्ष भी मेम्बर नही हो सकते ।

प्रेस क्लब के सचिव प्रफुल्ल ठाकुर ने बताया कि यह पहली बार नही हुआ है , पहले भी सदस्यों को कार्ड जारी हुए हैं , पुलिस महानिरीक्षक के हस्ताक्षर की वजह बस यही है कि देर रात पत्रकारों को काम करने की वजह से पुलिस पूंछ ताछ से बचाया जा सके । जबकि प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष अनिल पुसदकर ने बताया कि उनके कार्यकाल में केवल अध्यक्ष की दस्तखत से ही सदस्यों के लिए कार्ड जारी हुए थे । अब पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर की जरूरत क्यों पड़ी उसे तो नए पदाधिकारी ही बता सकते हैं ।

रायपुर के प्रसिध्द आरटीआई एक्टिविस्ट व समाजसेवी कुणाल शुक्ला प्रेस क्लब के इस निर्णय से चकित हैं । वे पूछ रहे हैं कि रायपुर के पत्रकार पुलिस के गुलाम कब से और कैसे हो हो गए ? जो उन्हें अपने पत्रकार होने के सबूत के लिए पुलिस अधिकारी के प्रमाण की जरूरत पड़ रही है । उन्होंने इसे गलत परम्परा की शुरुवात बताते हुए बताया कि इसके आगे बढ़ने पर उन गांव और कस्बों में ईमानदार पत्रकारों के लिए काम करना ही मुश्किल हो जाएगा , जहां पत्रकार संघो और क्लबों में दलाल , ठेकेदार और सप्लायर लोगों का कब्जा है ।

रायपुर के एक दैनिक के सम्पादक और वरिष्ठ पत्रकार ने इसे बहुत ही खतरनाक बताते हुए कहा कि दुख है कि यह राजधानी से शुरू हुई । उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इसे आगे चलकर सरकार अपना सकती है जो स्वतंत्र और ईमानदारी की पत्रकारिता के लिए खतरा बन सकता है । हालांकि उन्होंने इस कदम को पत्रकारों को पुलिसिया कार्यवाही , वाहन चालान से बचाने की कोशिश भी बताया ।

छत्तीसगढ़ श्रमजीवी पत्रकार कल्याण संघ के अध्यक्ष बीड़ी निजामी ने भी इस परंपरा को गलत बताते हुए कहा कि अगर इस कदम से पत्रकारों का भला करने की मानसिकता है तो इसे राज्य स्तर पर लागू करना चाहिए ।

छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ के अध्यक्ष राज गोस्वामी ने बताया कि पत्रकार की पहचान पत्रकारिता से होती है किसी आईडी कार्ड से नही और पत्रकार को आईडी भी मीडिया संस्थान से दिया जाता है । उन्होंने रायपुर प्रेस क्लब के निर्णय को बिल्कुल गलत बताते हुए बताया कि यह विरोध करने लायक है कि पत्रकारों की आईडी कोई पुलिस अधिकारी तय करे । उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि प्रेस क्लब अध्यक्ष को अपनी क्षमता पर भरोसा क्यों नही हुआ ?

अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नीतिन सिन्हा का कहना है कि देश या प्रदेश में पत्रकारिता का दायरा अगर प्रेस क्लब और पुलिस तय करेंगे तो आंचलिक एवं जनपक्षीय पत्रकारिता की पहचान खत्म हो जाएगी।। आप कल्पना कर सकते है,कि तब स्थिति कितनी भयावह होगी जब पत्रकारिता के नाम पर पुलिस डीएसआर या पीआरओ की बनाई खबरें ही लिखी या छापी जाएंगी। अगर रायपुर प्रेस क्लब ने ऐसा पक्षपात पूर्ण निर्णय लिया है कि प्रेस क्लब के सदस्य ही प्रमाणित पत्रकार माने जाएंगे तो उनकी संख्या महज 2 सौ के आसपास है।जबकि रायपुर में 6 सौ से अधिक पत्रकार पूरी सक्रियता और जिम्मेदारी से लगातार पत्रकारिता कर रहे हैं।

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