मुसलमान कंधों पर हिंदू जनाजा

कश्मीर घाटी में पुलवामा का त्रिचल गांव. समय 1990 का दशक. कुछ सिरफिरों को मजहबी सनक सवार हुई. ऐसे सिरफिरों को सभ्य समाज आतंकवादी कहता है. इन आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडितों को घाटी से भगाना शुरू कर दिया. मजहब का झंडा उठाकर हिंसा, कत्लेआम, लूट और बर्बरता का नंगा नाच हुआ. घाटी से तमाम पंडितों ने वहां से भागकर हिंदुस्तान के दूसरे हिस्सों में शरण ली.

त्रिचल गांव के भी कई पंडित परिवार अपना घरबार छोड़ कर वहां से चले गए. कुछ एक परिवार वहां रुक गए.

इन परिवारों को यहां के लोगों ने जो बन सका, मदद की. उन्हें यहां रहते हुए करीब 28 साल गुजर गए. यहां रह गए लोगों में से एक कश्मीरी पंडित तेज किशन अब बुजुर्ग हो चले थे. वे बीमार रहने लगे. लंबे समय तक बीमार रहने के बाद एक दिन किशन की मौत हो गई.

उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने मस्जिद से ऐलान करके पूरे गांव को किशन के इंतकाल की सूचना दी. गांव इकट्ठा हुआ. चूंकि गांव में 99 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, इसलिए जाहिर है कि जनाजे में भी वहीं होंगे.

गांव भर के करीब 3000 मुसलमानों ने मिलकर लकड़ी, चिता और जरूरी सामान का इंतजाम किया. सबने मिलकर तेज किशन का हिंदू रीति से अंतिम संस्कार करवाया. किशन को चिता पर रखने, मुखाग्नि देने तक का काम मुसलमानों ने किया. ज्यादातर ने अंतिम श्रद्धांजलि के रूप में चिता के फेरे लगाए और उन्हें आखिरी सलाम किया. यह घटना जुलाई, 2017 की है.

किशन के भाई पंडित जानकीनाथ से पूछा गया कि कश्मीर घाटी में ऐसा कैसे हुआ कि मुसलमानों ने हिंदू को कंधा दिया? उन्होंने कहा, ‘इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है. जिस कश्मीर में हम पैदा हुए थे, वह असली कश्मीर ऐसा ही था. यही हमारी संस्कृति थी. हम बांटने वाली राजनीति में कभी भरोसा नहीं करते थे, न आज करते हैं.’

कश्मीर से विस्थापित लेखक और पत्रकार राहुल पंडिता कल बता रहे थे कि जब पंडितों को वहां से भगाया जाने लगा तो अगल-बगल के आम मुस्लिमों ने हिंदुओं को भरोसा दिया था कि उन्हें कहीं नहीं जाने देंगे, उनकी सुरक्षा करेंगे, लेकिन वे भी आम जनता थे. आतंकियों के आगे वे भी वैसे ही मजबूर थे, जैसे कश्मीरी पंडित.

त्रिचल गांव में किशन के साथ जो खुशफहम सुलूक हुआ, वह नफरत के दौर की अनोखी घटना लगती है. लेकिन जो कश्मीर को जानते हैं, उनका कहना है कि ‘कश्मीरियत’ तो यही है, जहां हिंदू मुस्लिम मिलजुल कर रहते थे. मजहब के नाम फैलाई गई नफरत उस कश्मीरियत को खा गई.

जिस कश्मीर की झीलों को पंडितों के खून से लाल कर दिया गया, जिस कश्मीर को गुमनाम कब्रों वाला कब्रिस्तान बना दिया गया, उसी कश्मीर में इंसानियत की तमाम कहानियां अब भी सांस ले रही हैं. धर्म के घृणास्पद चेहरे ने उस इंसानियत को बदसूरत ही किया.

वह चाहे हिंदूवाद हो या इस्लामवाद, धर्म के नाम पर की जाने वाली सियासत इंसानियत की दुश्मन है. अगर आप इस दुनिया को खूबसूरत देखना चाहते हैं तो धर्म की सियासत से दूर रहें और अपने धर्म के कठमुल्लों को दूर से प्रणाम कर लें. ऐसा करके आप दुनिया में बहुत बड़ा योगदान देंगे.

हिंदुस्तानकीकहानी

कृष्ण कांत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!