Digital India-विकास, पारदर्शिता-अच्छे दिन, क्या है ? सच – भाग 1 – सांसद आदर्श ग्राम योजना

रिपोर्ट – Truth and Dare TnD

चुनावी सरगर्मी में पाकिस्तान और कब्रिस्तान पर तो बात होती ही रहेगी…थोड़ा सरकार के कामकाज पर भी नज़र डाल ली जाए…अब डिजिटल मीडियम है, तो Digital India और उसके ज़रिए पारदर्शिता, वर्क स्पीड अप के दावे भी परख ही लें…तो मयंक श्रीवास्तव और अन्य जीवट ,खोजी साथियों द्वारा अतिशीघ्र लांच किए जा रहे विश्वसनीय पोर्टल Truth and Dare TnD की फेसबुक में जारी इस स्पेशल रिपोर्ट में बात सबसे शुरुआती योजनाओं में से एक सांसद आदर्श ग्राम योजना की, जिसे शायद बाकी सब के साथ, शुरु कर के प्रधानमंत्री भी भूल गए…आइए, आपको एक झलक दिखाते हैं, इस योजना की सरकारी वेबसाइट की..

लोकसभा चुनाव या मीडिया की भाषा में आम चुनाव…विपक्ष के आरोपों या सत्ता पक्ष-विपक्ष के घोषणापत्रों से ज़्यादा सत्तारूढ़ सरकार के कार्यकाल के आकलन का समय होता है। सत्ताधारी दल और उसके समर्थक ये मानें या न मानें लेकिन दरअसल सरकार के कामकाज का आकलन केवल भारत में ही नहीं, दुनिया भर में उसके ज़मीनी कामकाज और सत्ता में आने से पहले किए गए वादों के आधार पर ही होता है। ऐसे में चुनावी माहौल में लगातार राष्ट्रीय सुरक्षा या पाकिस्तान को चुनावी मुद्दा बना रही, एनडीए सरकार के प्रदर्शन को भी उनके 2014 और उसके बाद के वादों और दावों के आधार पर ही मापा जाना चाहिए।
इस लिए चुनावी रिपोर्टिंग में हमने तय किया कि हम सबसे पहले जांचेंगे वो वादे और मानक, जिनको महज हम नहीं, आप भी घर पर बैठ कर जांच सकते हैं। वो, जिसे प्रधानमंत्री ने कहा था Digital India और जिसके आधार पर भ्रष्टाचार खत्म कर देने, पारदर्शिता लाने और जनता को सरकार के ज़्यादा करीब लाने के दावे किए गए थे। लेकिन क्या ऐसा हुआ, ये जानने के लिए हमने तय किया कि सरकार के कामकाज, उसके प्रोजेक्ट्स, उसके वेलफेयर वर्क, उसकी पॉलिसी इम्प्लीमेंटेशन की खोज ख़बर लेंगे हम सरकारी वेबसाइटों के ज़रिए कि आखिर काम कितना हुआ और डिजिटल इंडिया की सेहत कैसी है। इस कड़ी में हमने सबसे पहले तय किया कि हम सरकार बनने के बाद सबसे पहले एलानात में से एक सांसद आदर्श ग्राम योजना का हाल लें, वो भी डिजिटल इंडिया के रास्ते से…
तो गांव में तो आम आदमी खुद जाकर देख नहीं सकता कि वाकई ज़मीन पर कितना काम हुआ है, लेकिन वोटर बिना उस जगह जाए, सरकारी दावों की असलियत को परख सके, ये ही तो डिजिटल इंडिया के ज़रिए पारदर्शिता का दावा था। हम ने ढूंढी सांसद आदर्श ग्राम योजना की वेबसाइट http://www.saanjhi.gov.in और करने लगे इसको स्क्रॉल और जो लिंक मिला, उसे क्लिक कर डाला…और जो हुआ, उससे कुछ बातें तय हो गई और जो तय हुआ, वो अच्छा नहीं है।

इस सरकारी वेबसाइट को खोलते ही, हमारे सामने इसका होमपेज आता है, जिसके हेडर पर एक स्लाइड शो चल रहा है, स्लाइड शो में संसद की तस्वीर के बाद, पम्पिंग सेट के साथ एक किसान की तस्वीर है, हालांकि इस स्लाइड शो में संभवतः पहले दिन से ये ही दो तस्वीरें हैं। वेबसाइट के आगे के ब्यौरे से पहले समझ लेते हैं कि सांसद आदर्श ग्राम योजना क्या है –

सांसद आदर्श ग्राम योजना

सत्ता में आने के बाद नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को इस योजना का एलान किया था। इसका विधिवत आरंभ 11 अक्टूबर, 2014 को जयप्रकाश नारायण की जयंती पर विज्ञान भवन में किया गया। इस योजना के अंतर्गत, हर सांसद को अपने संसदीय क्षेत्र में 3 गांव गोद लेने थे। मार्च, 2019 तक इन तीनों गांवों को आदर्श गांव में बदलना था, जिसके लिए कई वेलफेयर स्कीम्स चलाई जानी थी।

हुआ क्या?

मार्च, 2019 बीत चुका है और तकनीकी तौर पर प्रधानमंत्री को न केवल सभी सांसदों से इस योजना का हिसाब लेना चाहिए, बल्कि उसे देश के सामने भी रख देना चाहिए। लेकिन ऐसा कुछ भी फिलहाल नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में हैं, तमाम रैलियां कर चुके हैं लेकिन सांसद आदर्श ग्राम योजना का ज़िक्र भी नहीं करते हैं।

वेबसाइट – डिजिटल ड्रीम के बिखरे कांच

वेबसाइट के होमपेज पर एक फोटो गैलरी है, जिसपर कुछ तस्वीरें हैं और साथ में अंग्रेजी में एक संदेश है। लेफ्ट स्क्रॉल में सम्बंधित कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और सचिव के नाम लिखे हैं। और दूसरा मेन्यू बटन है, About Us जिस पर क्लिक करते ही किसी भी और वेबसाइट की तरह आप एक स्टैटिक टेक्स्ट पेज पर पहुंचते हैं और उस पर उसी पुरानी क्लीशे भाषा में योजना का एक परिचय लिखा है। ये भाषा न तो पूरी तरह सरकारी है, न ही किसी भी तरह इनोवेटिव या क्रिएटिव। वेबसाइट का लुक भी किसी 2002 की वेबसाइट जैसा ही है यानी कि जल्दबाज़ी में जारी कर के भुला दी गई वेबसाइट जैसा, कई राज्य सरकारें हैं, जिनके पास इससे कहीं बेहतर वेबसाइट्स हैं। हालांकि ये ख़ुद को पोर्टल ही कहती है, लेकिन इसको खंगालने के बाद हमारे पास इसे पोर्टल कहने का विकल्प नहीं था।

भाषा – वेबसाइट अंग्रेज़ी में है, हिंदी या किसी अन्य भाषा का विकल्प वेबसाइट पर तो नहीं दिखता है। अगर सरकार ये मानती है कि देश भर के ग्रामीण बल्कि शहरी भी अंग्रेज़ी पढ़ और समझ लेते हैं, तो फिर प्रधानमंत्री को अब अंग्रेज़ी में भी चुनावी भाषण देने चाहिए और हमारे पास देशद्रोही कहलाने से बचने का विकल्प यही है कि हम ये मान लें कि देश की ज़्यादातर जनता अंग्रेज़ी जानती-समझती है और आगे बढ़ें।

मेन्यू के बाकी बटन – प्रधानमंत्री बनाम कैबिनेट

इस वेबसाइट के मुख्य मेन्यू के बटन अगर रूपक (मेटाफर) मान लिए जाएं, तो शायद केंद्र सरकार की तरह ही बर्ताव करते हैं। पहले बटन यानी कि होमपेज पर शुरुआत से वही दो तस्वीरें और सम्बोधन है, अबाउट अस में योजना का परिचय और महानता। इन दो बटन्स को हम प्रधानमंत्री और उनके करीबी एक मंत्री का प्रतीक मान लें तो आगे बढ़ते ही बाकी बटन्स क्लिक करते हुए हमको बाकी मंत्रिमंडल मिल जाता है, जो मौन है और उसे बार-बार दबाने पर भी कुछ नहीं होता। जी हां, तीसरा बटन ‘Guidelines’ क्लिक करने पर कोई पेज नहीं खुलता, गूगल क्रोम में इसका कोड इंस्पेक्ट करने पर भी कोई पेज लिंक नहीं मिलता।

इसके बाद है सर्कुलर ‘Circular’ नाम का बटन और ये भी बंद गली की तरह है। ज़ाहिर है कि आजतक या तो इस योजना में कोई सर्कुलर जारी नहीं हुआ, या फिर वेबसाइट पर नहीं डाला गया। इसे पारदर्शिता के अभाव में गिना जाना चाहिए या फिर सरकारी लापरवाही में, इसके निर्णय के लिए कम से कम ये गाइडलाइन तो दे ही देनी थी कि इसमें से कम देशद्रोह क्या है।


अगला बटन है Message और खुशी की बात ये है कि ये खुलता है और एक पेज तक ले कर जाता है। अफसोस ये है कि इस पेज पर शुरुआत से आज तक एक भी मैसेज नहीं है। ये भी हो सकता है कि सब के सब ज़िम्मेदार लोग ग्राम विकास में इस कदर मसरूफ हों कि किसी के पास कोई मैसेज छोड़ने का वक्त ही न रहा हो। छठा और जनता के या मीडिया के लिहाज से सबसे अहम बटन है Report और ये भी डेड-एंड है। अगला बटन Media हमारे काम का था, लेकिन किसी काम का नहीं था। इसका अगला बटन है Downloads यानी कि यहां से आवश्यक सामग्री डिजिटल प्रारुप में डाउनलोड की जा सके, लेकिन ये रास्ता भी आपको कहीं लेकर नहीं जाता है। आपने जो इसके पहले अंतिम पेज खोला हो, वह अविचलित खड़ा रहता है।

पर अंत में कुछ काम करता है…

लेकिन इस मेन्यू में सबसे आखिरी बटन ठीक से काम करता दिखता है, ये आपको CSR यानी कि कारपोरेट सोशल रिस्पॉंसेबिलिटी के पेज पर ले जाता है। इस पेज पर आपके सामने आता है, एक डेटा रिट्रीवल फॉर्म, जिस पर हैं ड्रॉप डाउन मेन्यू में संसदीय क्षेत्रों के नाम, उनके प्रदेश, वहां किए गए काम के क्लासीफिकेशन और सर्च करने का ऑप्शन। हमने इससे कुछ खास संसदीय सीटों के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र ‘वाराणसी’ में सांसद आदर्श ग्राम योजना के तहत हुए काम के बारे में पता करने की कोशिश की, लेकिन एक बार भी वाराणसी में किसी तरह का CSR प्रोजेक्ट तक नहीं मिला….

ये स्टोरी क्य़ों?

ये स्टोरी करने के पीछे की वजह बताने की जगह हम इसका एक प्रचलित उपसंहार (Conclusion) लिख सकते थे। लेकिन दरअसल ये बताना इसलिए ज़रूरी है कि यूपीए या उसके पहले के दौर से इतर न केवल अब भूख, गरीबी, बेरोज़गारी वगैरह सारे मुद्दे हाशिए पर हैं और पाकिस्तान-कश्मीर वगैरह पर चुनाव लड़ा जा रहा है, बल्कि इस तरह की स्टोरी करने के बाद किसी भी पत्रकार को उसके काम और सच को सामने लाने पर बधाई की जगह देशद्रोही का तमगा चिपका दिया जाता है। हम तमगे की परवाह नहीं करते, पर दुर्भाग्य से आप अब करने लगे हैं, सो ये ज़रूरी है कि बताया जाए कि ये ख़बर या रिपोर्ट हम क्यों कर रहे हैं। इस रिपोर्ट की सीरीज का मकसद ये बताना है कि किसी भी तरह से सबकुछ डिजिटल कर देने के पीछे के तर्क या वादे के तौर पर पारदर्शिता, ईमानदारी और भ्रष्टाचार के अंत को सच मत मान लिया कीजिए, क्योेंकि दरअसल इसके लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म की नहीं, नीयत और इच्छाशक्ति की ज़रूरत होती है। सांसद आदर्श ग्राम योजना की वेबसाइट न केवल अग्रेज़ी में ही है बल्कि उस से अहम डेटा और आज की योजना की स्थिति गायब है। यानी कि डिजिटल किए जाने के बाद आपसे भले ही झूठ बोलना मुश्किल हो जाए लेकिन सच छुपाया जा सकता है। सवाल कीजिए, अपने आप से और सरकार से भी कि ये सरकारी लापरवाही है या फिर जानबूझ कर, आप तक सच न पहुंचने देने की केोशिश है।
इस वेबसाइट पर हम और बात भी करेंगे, आज अपने फेसबुक लाइव में बाकायदा डेमो के साथ….

TruthNDare

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