पहले मैं भी प्रायोजित “ट्रोल” का हिस्सा था , अब मैं वैज्ञानिक सच व असहमति के अधिकार के साथ – बाबू

कमल शुक्ला
जगदलपुर । अपनी गलतियों को स्वीकार करना किसी कमजोर आदमी का काम नही होता , बहादुर ही यह कर सकता है । बस्तर में आदिवासियों पर जुल्म ढाए जाने के सबसे ज्यादा बदनाम समय भाजपा कार्यकाल में सत्ता और पुलिस द्वारा अपनी गलतियां छुपाने और इन्हें उजागर करने वाले पत्रकारों, बुद्धिजीवियों,समाजसेवियों, नेताओं पर दबाव बनाने उन्हें डराने के लिए बनाए गए अनेक संगठनों में प्रमुख भूमिका में रहे बाबू बोरई अब खुलकर गलती स्वीकार करते हैं । वे मानते हैं कि समाज और राजनीति के वैज्ञानिक समझ के अभाव वाले युवा ही केवल ट्रोलर बन कर रह गए हैं ।


बाबु बोरई


बस्तर के आसन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी पर ” मुन्नाभाई ” होने का मुद्दा अब चुनावी मुद्दा बन गया है । ज्ञात हो कि सबसे पहले बाबू बोरई ने ही यह मुद्दा ढूंढ निकाला था कि भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी बैदूराम कश्यप की जगह एक अन्य व्यक्ति को दसवीं की परीक्षा देते रंगे हाथों पकड़ा गया था । अब बाबू बोरई सोशल मीडिया में आईटी सेल और भाजपा कार्यकर्ताओं के निशाने पर हैं । उन्हें नक्सली , बिकाऊ और देशद्रोही तक बताया जा रहा है ।

“चौकीदार के पालतू चमचे मुझे ट्रोल करके डराना चाहते हैं, शायद उन्हें मालूम नहीं मैं भी कभी उसी ट्रोल का हिस्सा हुआ करता था, मुझे अच्छी तरह मालूम है, क्योंकि मैं भी कभी ऐसा ही करता था “

यह कहना है जगदलपुर के पत्रकार बाबू बोरई का अपने फेसबुक पेज में । आप बाबू बोरई को अगर नही जानते तो फिर उनके इस कथन के दर्द और डर को भी नही जान सकते । आईये आपको बाबू बोरई का परिचय कराते हैं । 2014 के बाद योजनाबद्ध ढंग से सोशल मीडिया में बनाये गए आईटी सेल द्वारा झूठे प्रचार के द्वारा जिन हजारों युवाओं को उनके जीवन के वास्तविक उद्देश्यों से भटकाकर सत्तापक्ष और एक विशेष विचारधारा के खिलाफ हथियार की तरह इश्तेमाल किया गया ।

२ वर्ष पहले बाबु बोरई द्वारा जारी किया गया पोस्टर

बस्तर में सलवाजुड़ुम के असफल होने के बाद आदिवासियों की जमीन और जंगल छिनने के अभियान के तहत नक्सल विरोधी अभियान के नामपर पुलिस और सरकार प्रायोजित सामाजिक एकता मंच और “अग्नि ” जैसी संस्था का गठन हुआ तो बाबू बोरई इनका एक बड़ा आधार स्तम्भ था । बाबू मानते हैं कि वे बिल्कुल बेरोजगार थे , और उन्हें सच से दूर रख भड़काया गया था कि केवल सरकार और पुलिस का पक्ष ही सही है । तब उन्हें आदिवासी प्रताड़ना के खिलाफ और आदिवासियों के हक की बात करने वालों को न केवल ट्रोल करने , उन्हें नक्सली बताकर बदनाम करने बल्कि उन्हें परेशान करने के अनेक अवैधनिक तरीकों को देशहित में बताया जाता था ।
बाबू ने एक बार मेरे और समाजसेवी हिमांशुकुमार के खिलाफ भी एक पर्चा जारी किया था । जिसमें उसने आह्वान किया था कि कमल शुक्ला और हिमांशुकुमार को जूता मारने और कालिख पोतने पर दो लाख का ईनाम दिया जाएगा । बाबू पर सीपीआई नेता मनीष कुंजाम पर हमला का भी आरोप लगा , समाजसेवी बेला भटिया ने भी इन पर मोबाईल छिनने का आरोप लगाया । इन सबके अलावा भी बाबू पर तब कई प्रकार के आरोप लगे थे । बाबू ने मुझसे बात चीत में खुद यह स्वीकार किया कि पुलिस के बड़े अधिकारियों और राजनीति के दमदार लोगों का सर पर हाथ ही नही बल्कि ऐसा करने के लिए दबाव भी रहता था ।

बाबु बोरई में परिवर्तन ऐसा नहीं कि सत्ता परिवर्तन के बाद आया हो |प्रदेश में सरकार बदलने से एक साल से पहले ही बाबु धर्म और जाति के नाम से बाँटने , मोब ल्य्न्चिंग व आदिवासी उत्पीडन के खिलाफ सोशल मीडिया में बात रखते रहे है , जबकि पहले खुद इस तरह लिखने वालो को राष्ट्र द्रोही व नक्सली ठहराता था | अचानक आये इस वैचारिक बदलाव के बारे में पूछने पर बाबू खुलकर बोलते हैं कि अब महसूस होता है कि पहले तो विचार ही नही था , मैं अपने जैसे सैकड़ों साथियों की तरह भेड़-सा हाँका जा रहा था । बाबू ने बताया कि बस्तर में दो विचार धाराओं के बीच चल रहे युद्ध को लेकर उनकी समझ यहीं के कुछ निरपेक्ष पत्रकार साथियों की सोहबत ने बनाया । फिर उसने भी कुछ जानने की कोशिश की तो पता चला कि सच मे एक अघोषित युद्ध चल रहा है जिसमे बस्तर के निर्दोष आदिवासियों को दोनो ही पक्ष मोहरा बना रहे हैं ।
आज बाबू को पता है कि उसने क्या गलतियां कि , उसने बेला भाटिया के बारे में भी काफी कुछ जाना और बस्तर की बेहतरी और शांति की स्थापना के लिए काम करने वालों और बड़े सेठों के लिए जल जंगल जमीन हड़पने वाली सरकारी नीति के बीच के अंतर और संघर्ष को महसूस किया । पूरे देश मे धर्म , जाति , वर्ग, भाषा , स्त्री-पुरुष आदि के नामपर बांटने की राजनीति को भी बाबू अब समझने लगा है । साथ ही बाबू पिछले दो साल से जब इन सच्चाइयों को देखकर सोशल मीडिया में और अपनी पत्रकारिता के तहत बात रख रहा है तो अब ट्रोल का मतलब और दर्द भी बखूबी समझ रहा है ।

बाबू को अब उनके ही पुराने साथी और वे तमाम लोग जो उनके विचारों से सहमत नही है अब देशद्रोही कह रहे हैं , भटके हुए बता रहे हैं । बाबू कहते हैं कि यही पहले वे भी करते थे जब वे विचार और विचारभेद की स्वतंत्रता को नही समझते थे । वे अब मानते हैं कि ऐसा तभी तक आप कर सकते हैं जब तक आपको सोचने समझने न दिया जाय , आप अज्ञानी बने रहें ।
बाबू अब निरपेक्ष रूप से पत्रकारिता करते हुए बस्तर के सच को सामने लाने की बात करते हैं । उन्हें इन दिनों खूब ट्रोल किया जा रहा है । वे कहते हैं कि मैंने भी ऐसी बातों को मैं दिल से नहीं लगाता हूं. “आज जो भाई लोग मुझे ट्रोल करते हुए गाली दे रहे हैं, मुझे पता है अगर उन नेताओं का कार्य पूरा हो जाएगा तो इन ट्रोलरों को दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देंगे”

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