गोडेलगुडा गांव फर्जी मुठभेड़ की सच्ची कहानी

लकड़ी बीनने गयी महिलाओं पर जानबूझ कर की गई थी गोली बारी , आसपास दूर तक नही थे कहीं भी नक्सली

तड़पती सुक्की को पहले वर्दी पहनाने की कोशिश की फिर जिंदा रहते ही पॉलीथिन में बांध लाद कर ले गए थे जवान

गोडेलगुडा से लौटकर पुष्पा रोकड़े

बस्तर । पोडियाम सुक्की अपने दो पड़ोसी महिलाओं के साथ रोज की तरह सुबह सुबह ही खाना बनाने के लिए लकड़ी लेने गयी थी । तीनो आपस में सुर मिलाकर धीरे धीरे ” रे रेला रेला रे ” के धुन में लोकगीत भी गन- गुना रहे थे कि अचानक बूटों की धमक सुनाई दी , इसके पहले कि वे सम्भलते और समझते अचानक तीस- चालीस जवान बिल्कुल उनके नजदीक आकर खड़े हो गए । उन्हें निशाना बनाकर जवानों ने बहुत पास से गोलियां चलानी शुरू कर दी । तीनो महिला चिल्लाती रह गयी कि उन्हें क्यों मार रहे हैं पर पोडियाम सुक्की , वह गिर कर तड़पने लगी थी । कलमों को भी जांघ में गोली लग चुकी थी , वह भी जांघ पकड़ कर बैठ गयी थी । जबकि अपने सिर के ऊपर बालों को छूती हुई निकली गोली ने सोमडी को सन्न कर दिया था ।

दो माह के
राकेश से गोलियों ने छिन लिया माँ

यह किसी कहानी का हिस्सा नही , बल्कि बस्तर में अक्सर घटने वाली घटनाओं की तरह पिछले फरवरी माह की 2 तारीख को घटी सच्ची घटना का अंश है । तब छत्तीसगढ़ में फर्जी मुठभेड़ रोकने का वादा करने वाली नई सरकार को शपथ लिए एक माह हो चुके थे । सुकमा जिले के दोरनापाल से 35 किमी दूर गोलीगुड़ा गांव की कलमों देवे और सुकड़ी हुंगी ने बताया कि वे गांव से जंगल की ओर दो सौ मीटर भी दूर नही थे । यह उनके रोज के दिनचर्या का हिस्सा था ।
सुबह 8 बजे ही वे बंदूकों के साथ धमक आये और हमारे बताने पर भी कि इसी गांव के हैं और लकड़ी लेने आये हैं , उन्होंने बिल्कुल पास से गोली चला दी । कलमों देवे का कहना है कि उसकी जांघ में गोली लगी और वह गिर गयी । बेहोंश होने से पहले उसने देखा कि सुखी तड़प रही है । फिर मेरी आँखें अस्पताल में खुली । सुकड़ी हुंगी का कहना है कि उसकी ऊंचाई कम होने की वजह से गोली सर से पार हो गयी पर वह तड़पती हुई सुक्की को देख सन्न थी । फिर उसने जोर जोर से चिल्लाना शुरू किया । कुछ ग्रामीण महिलाएं हिम्मत कर पास पहुंची तो देखा कि फोर्स के जवान तड़पती हुई सुक्की को अपने साथ लाये वर्दी पहनाने की कोशिश कर रहे हैं । तब इन्होंने चिल्ला चिल्ला कर विरोध करना शुरू किया तो उन्होंने वर्दी पहनाना छोड़ जीवित स्थिति में ही सुक्की को पॉलीथिन में लपेटने लगे । विरोध करने पर ग्रामीण महिलाओं को उन्होंने बन्दूक दिखाकर डराया । इस ग्राम के अनेक ग्रामीणों ने घटना के वक्त नक्सलियों की उपस्थिति को साफ इंकार करते हुए इस घटना को जान बूझकर फोर्स द्वारा अपना डर और दहशत बनाये रखने के लिए फर्जी मुठभेड़ बताया ।

सुक्की की सास ने बताया कि जैसे ही उसने गोली की आवाज सुनी वह दौड़ती हुई उस जगह पर जा पहुंची जहां जवान उसकी बहू को तड़पते हालत में पॉलिथीन में लपेट रहे थे । उसने कहा उसे छोड़ दो पर जवान उसे लपेट कर अपने साथ ले गये पूसवाड़ा कैंप जहां बच्चों के साथ मुझे काफी देर तक कैंप में ही रखा गया बच्चों को मैं किसी तरह गाड़ी में बिठाकर वापस गांव भेजी । तकरीबन रात के 10:00 बजे जवानो ने मेरी बहू के शव को मुझे सौंप दिया । यह मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक था क्योंकि उसका दूध मुंहा बच्चा राकेश मेरे गोद में था । सुक्की के चार बच्चे हैं जिसे अब मुझे पालना है यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है ।


देवा अब बच्चों को गोद में रखे कि मजदूरी को जाये ?

सुक्की के पति देवा पोड़ियम ने बताया कि वह उस दिन गांव में मौजूद नहीं था मिर्ची तोड़ने आंध्र गया हुआ था गांव में कोई काम ना होने की वजह से अपने घर और जीवन यापन के लिए मजदूरी के लिए वह मिर्ची तोड़ने आंध्र गया था उसी दौरान उसे गांव से किसी व्यक्ति ने फोन किया कि पुलिस ने उसकी पत्नी को गोली मार दी है तो वह देर शाम घर लौटा उसने बताया कि मेरे चार बच्चे हैं । एक लड़की व तीन लड़के जिसमें से राकेश अभी केवल दो महीना का ही है , जिसके लिए मुझे बहुत अफसोस है कि अब उसकी मां नहीं रही । मुझे काफी दिक्कत तो आ रही है इसे पालने में पर अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं इसे गोद में रखूं या इनके पालन-पोषण के लिए काम पर जाऊं ? मुझे दोरनापाल थाने से राकेश के लिए दूध मिलता है जिसे मैं दूध खत्म हो जाने पर लेने जाता हूं और लेकर उसे पिलाता हूं । बताया कि जो हो गया उस पर अब वह आगे कोई कार्यवाही नहीं करना चाहते पर उन्हें दुख है इस बात का कि हम गांव में बसे आदिवासियों के लिए इस तरह की घटनाएं आम बात हो चुकी है बाहर से आए पुलिस के जवान हमें जंगल में रहने के कारण नक्सली ही समझते हैं और हमारी बोली भाषा ना समझना भी इनके लिए एक चुनौती है और हमें इस तरह मौत के घाट उतार रहे हैं यह बड़े ही दुख की बात है ।

यह घटना जब हुई तो उस समय सुकमा के एसपी जीतेन्द्र शुक्ला थे , उनके निर्देश पर ही इस घटना को नक्सली मुठभेड़ करार दिया गया था । घटना में शामिल जवान पुसवाडा सीआरपीएफ कैम्प के थे । पर इस घटना को लेकर ग्रामीणों की शिकायत और तहकीकात के आधार पर नई सरकार के उद्योग मंत्री व स्थानीय विधायक कवासी लखमा ने स्वीकार किया कि पुलिस ने निर्दोषों पर गोली चलाई । तब मंत्री ने खुद ही प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर घटना को लेकर दुख प्रकट करते हुए 5 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की थी ।इस मुद्दे पर मंत्री कवासी लखमा ने बताया की प्रदेश शासन ने मृतिका सुक्की के लिए ५ लाख व घायल कालमो देवे के लिए १ लाख जारी कर दिए है , साथ ही सम्पूर्ण बस्तर की पुलिस को इस तरह की गलतियों से बचने का निर्देश दिया गया है |

स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार बस्तर के तत्कालीन कुख्यात आईजी कल्लूरी के समय से बस्तर के कई स्थानों में पदस्थ रहे उक्त पुलिस अधिकारी पर फर्जी मुठभेड़ , फर्जी आत्म समर्पण और फर्जी गिरफ्तारी के कई आरोप पहले से ही लगे हुए हैं । इस मुद्दे को लेकर मंत्री महोदय से भी उक्त अधिकारी के भिड़ने की खबर है । बाद में मुआवजे की घोषणा भी हुई और उक्त अधिकारी का स्थानांतरण भी , चार बच्चों की माँ की निर्मम हत्या करने वाले जवान आज भी फिर किसी और फर्जी मुठभेड़ के लिए खुले आम घूम रहे हैं ।

इस मामले को लेकर वर्तमान एसपी सुकमा डीएस मरावी ने बताया कि यह घटना जिस समय हुआ , उस समय मैं मौजूद नहीं था इसलिए इसके बारे में मैं कुछ कह नहीं सकता पर उन्होंने आगे इस तरह की घटना नहीं होने का बात भी कही ।


पुष्पा रोकड़े दक्षिण बस्तर बीजापुर की स्वतंत्र पत्रकार है , आदिवासियों के उत्पीड़न और फर्जी मुठभेड़ की कई रिपोर्ट इन्होंने देश के सामने लाया । पुष्पा को पीयूसीएल का 2016 का निर्भीक पत्रकारिता सम्मान मिला है ।

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