बस्तर के निडर पत्रकार संतोष यादव जल्द होंगे जेल से रिहा

उत्तम कुमार @ भूमकाल समाचार/ किसी ने ठीक ही कहा है सच परेशान हो सकता है लेकिन उसे खत्म नहीं किया जा सकता। भारत की सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट से जमानत के बाद आदिवासी अंचल के जाने माने पत्रकार संतोष यादव जेल से शीघ्र रिहा होंगे। हाईप्रोफाइल बन चुके नक्सल आरोप में पिछले डेढ़ साल से जेल में बंद बस्तर के जाने माने पत्रकार संतोष यादव को सुप्रीम कोर्ट से अंतत: जमानत मिल गई है। जस्टिस सिकरी और अशोक भूषण की बेंच ने सोमवार को संतोष को 20 हजार के मुचलके ओर रोज थाने में उपस्थिति दर्ज कराने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया। संतोष का मामला पिछले दिनों लगातार सुर्खियों में रहा। एमनेस्टी इंटरनेशनल और कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपजे) ने उसकी गिरफ्तारी पर सवाल उठाए थे।

छत्तीसगढ़ पत्रकार सुरक्षा कानून समिति के जुझारू पत्रकारों ने संतोष की रिहाई की मांग को लेकर लगातार आंदोलन भी किया था। विधानसभा में भी संतोष का मामला उठ चुका है। बस्तर जिले के दरभा के स्वतंत्र पत्रकार संतोष यादव पर अगस्त 2015 में एक नक्सली घटना में शामिल होने का आरोप लगाया गया था उन पर आरोप यह भी था कि एक आतंकवादी संगठन के साथ जुडक़र और उनका समर्थन करने और आतंकवादी समूहों को सहायता के जुर्म पर उन पर टाडा-पोटा से भी खतरनाक छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम के तहत राज्य पुलिस द्वारा सितंबर 2015 में गिरफ्तार किया गया था। इतना ही नहीं उसे नक्सल कमांडर शंकर का सहयोगी बताया गया था।

संतोष पर उनके खिलाफ चार्जशीट फरवरी 17, 2016 को छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा दायर किया गया था जिसमें यादव शस्त्र अधिनियम 1959 की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाया गया था और विस्फोटक पदार्थ 1908 उन्होंने यह भी गैरकानूनी गतिविधि के वर्गों (निवारण) अधिनियम 1967 के तहत आरोप उन पर लगाया गया था (यूएपीए) अधिनियम और छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा अधिनियम 2005 दोनों ही आतंकवाद विरोधी कानून हैं।

पत्रकार के रूप में उनका उल्लेख एक निडर पत्र लेखक के रूप में वर्णित है, यादव ने दैनिक नवभारत, पत्रिका और दैनिक छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों के लिए बस्तर से जुड़े सत्य को उजागर करने में योगदान दिया है, बस्तर में वास्तव में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर रिपोर्टिंग। यादव ने जगदलपुर कानूनी सहायता समूह, जो वकीलों का एक सामूहिक पर पुलिस ज्यादतियों के शिकार लोगों को मुफ्त कानूनी सेवाओं की पेशकश करने के लिए राज्य पुलिस बलों द्वारा गिरफ्तार किए गए लोगों के परिवार के सदस्यों के हालातों पर सत्य को लिखकर चर्चा में आए थे। पत्रकारों और देश भर के कार्यकर्ताओं ने यादव की गिरफ्तारी का विरोध किया।

सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण की पैरवी कॉलिन गोंजाल्विस और बिलासपुर के एडवोकेट किशोर नारायण ने की। संतोष के वकील किशोर नारायण ने बताया कि घटना के 40 दिनों के बाद थाने से महज 150 किमी की दूरी पर निवास करने और स्थानीय पुलिस को जानकारी के बाद जबरन संतोष को इस मामले में फंसाया गया। संतोष के मामले में धारा 124 (ए), आर्म्स एक्ट सहित सारे मामले में उन्हें जबरन फंसाया गया जिसका इस मामले से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं था। एफआइआर के शर्त के अनुसार कोई भी इंफॉरमेशन जब पुलिस थानेे को प्राप्त होती है उसे सम्पर्क थाने में रोजनामचा में इंटरी करना पड़ता है। लेकिन यह पहला इंफारमेंशन है जिसे रोजनामचे में इंटरी तक नहीं कर केस डायरी बना दिया गया। इस इंटरी के आधार पर डायरी मजिस्ट्रेट के पास पहुंचती है और मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 157 के तहत थाना को सर्टिफिकेट देती है।

सवाल ही नहीं उठता जब सर्टीफिकेट ही नहीं है तो वह चार्जसीट में कहां होगा? वोरल इंफारमेशन से सर्टीफिकेट नहीं बनते हैं। रिटर्न इंफॉरमेशन पुलिस के पास नहीं। इस तरह हमारे इंफॉरमेशन को सुप्रीम कोर्ट ने सही पाया कि संतोष को इस मामले में फंसाया गया है। हमने बिलासपुर हाईकोर्ट में जमानत न मिलने पर इस मामले को पत्रकारिता से जुड़े गंभीर मामला मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में चार्जसीट दायर की जहां संतोष की जमानत मंजूर कर ली गई है। उसके पास कोई आर्म्स नहीं था। उससे हरा और लाल कलर का कपड़ा जब्त किया गया था। पुलिस का कहना है कि हरे कपड़े से नक्सलियों की वर्दी और लाल कपड़े से उनका झंडा बनाया जाता है। क्या इस आधार पर किसी को नक्सली करार दिया जा सकता है?

पीयूसीएल के महासचिव सुधा भारद्याज ने बताया कि यूएपीए जैसे कानून के अधिनियमों का धड़ल्ले से दुरूपयोग हो रहा है। लिहाजा यादव के मामले में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की वृद्धि मामले में व्यापक मुद्दों के साथ खबर प्रकाशित हुआ है। आरएसएफ द्वारा जारी 2016 विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक के अनुसार, भारत 180 देशों में पत्रकारों के साथ दुव्र्यवहार के मामले में 133वें पायदान पर आता है। वकील किशोर ने यह भी बताया कि संतोष यादव वर्तमान में कांकेर जिला जेल में बंद है। उनकी रिहाई में अभी तीन-चार दिन और लग सकते हैं।

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