अजय मंडावी की कला से पूरे प्रदेश को मिली नई पहचान

काष्ठ शिल्प के सिद्धहस्त कलाकार, पर्यावरणविद और समाज सुधारक अजय मंडावी कांकेर जिले का गौरव हैं। आदिवासी समुदाय के इस कलाकार की अद्भुत कला और शिल्प से पूरे प्रदेश को नई पहचान मिली है ।

एक साधारण आदिवासी गोंड़ परिवार में जन्में मंडावी का रूझान बचपन से ही कला की ओर रहा । गांव में नदी किनारे छोटे छोटे नाव बनाने, गणपति की मूर्ति बनाने से उनकी कला यात्रा की शुरूआत हुई। आने वाले वाले वर्षो में अपने जुनून और प्रतिभा के बल पर उन्होने असंभव दिखने वाले कई कार्यो को मूर्त-रूप दिया।

किसी भी प्रकार के विधिवत प्रशिक्षण और किसी तरह की आर्थिक सहायता के बिना, अपने ही सीमित संसाधनों से उन्होंने कला के क्षेत्र में जिन उंचाईयों को उन्होंने छुआ है, वह आने वाली पीढी के लिये निश्चित ही प्रेरणास्पद है।

अजय मंडावी के विरले व्यक्तित्व और अनूठी कला की प्रेरणा, कांकेर के स्थानीय विद्यार्थियों के साथ-साथ जेल में कैद, बंदियों के जीवन की दिशा को सृजनात्मक तरीके से बदलने में भी कारगर सिद्ध हुई। इसी प्रेरणा के सहारे अजय मंडावी ने सीमित संसाधनों के साथ अपने असीमित स्वप्नों को साकार करने की उड़ान भरी। उनकी प्रेरणा से आज लगभग 400 युवाओं ने अपराध और हिंसा का रास्ता छोड़कर शिल्पकला को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया है। इस लिहाज से यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि अजय मंडावी, व्यक्तिगत रूप से सैकड़ों कैदियों का पुर्नवास करने वाले देश की इकलौती शख्सियत हैं। इनमें बहुत से माओवादी विचारों से प्रभावित कैदी भी शामल है।

अजय मंडावी जैसे सिद्धहस्त गुरु के सान्निध्य में छैनी-हथौड़ी से एक लकड़ी के टुकड़े पर अक्षर उकेरते हुए बंदियों को प्रत्यक्ष देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो ये बंदी अपने भीतर की हिंसात्मक मनोवृतियों को भी काट-छांट कर अपने जीवन को सृजनात्मक स्वरूप प्रदान कर रहे है। जब कोई भी कला या शिल्प, एक हिंसक अपराधी के मन-मस्तिष्क को कायांतरित करके संवेदनशील मनुष्य और फिर उससे भी आगे एक बेहतरीन कलाकार बना दे, तो यहीं पर आकर कला अपने उच्चतम शिखर को प्राप्त कर लेती है, जिसे अजय मंडावी ने अकेले ही संभव कर दिखाया है।

अपनी कला की यात्रा में अजय मंडावी ने अनेक सुंदर प्रतिमानों को गढ़ा, और बहुत सी वर्जनाओं को तोड़ा भी । उनकी कला यात्रा में गोल्डन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड, लिम्का बुक आफ रिकार्ड सहित कामयाबी और शोहरत के बहुत से चमकीले और यादगार मुकाम आते रहे हैं।

लेकिन वे खुद अपना योगदान उसी प्रयास को मानते है, जिसमें कला के माध्यम से कोई भटका हुआ आदिवासी युवा अपराध और हिंसा का रास्ता छोड़कर समाज की मुख्यधारा मे शामिल हो जाता है । उनकी आत्मा की यही सुवास, मद्धिम मुस्कान के साथ उनके चेहरे और जीवन में सहज रूप से परिलक्षित होती है ।

शानदार व्यक्तित्व के धनी और काष्ठशिल्पकार अजय मंडावी कई सौ युवाओं के लिए मार्गदर्शक के रूप में “गुरूजी” के नाम से जाने जाते है । बकौल अजय मंडावी कोई भी कला, अपने सामाजिक सरोकरों से न्याय करते हुए जब व्यापक स्वीकार्यता के उजले धरातल पर गहरी जड़ें जमा लेती है, तभी वह अपने सर्वश्रेष्ठ रूप-सौदर्य के साथ उच्चतम स्तर पर प्रकट हो पाती है।

अजय मंडावी जैसे कलाकार पहली नजर में बेशक एक आम मनुष्य की तरह ही दिखाई देते हैं, लेकिन अपने जुनून, निष्ठा, मेहनत, प्रतिभा और गहरी अंतर्दृष्टि के साथ कला के माध्यम से उन्होंने सामाजिक विकास में जो योगदान दिया है, वह निश्चित ही उन्हें असाधारण बना देता है। उनकी कला यात्रा के प्रारंभिक साक्षी उनका परिवार, आदिवासी समाज, बंदियो का समूह, पुलिस प्रशासन सहित स्थानीय प्रशासन रहे हैं, किन्तु समय के साथ उनकी कला को देश के कोने-कोने और दुनिया के अनेक देशों में भी प्रतिष्ठा मिल चुकी है ।

उनकी कला शिल्प का मुख्य उददेश्य समाज के भटके हुए (विशेष रूप से बस्तर क्षेत्र के) लोगो का शिल्पकला के माध्यम से सर्वांगीण विकास करना ही रहा है । साथ ही इन स्थानीय लोगों के सामाजिक, मानसिक, बौद्धिक तथा शैक्षणिक स्तर में बढ़ोत्तरी करते हुए इन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में भी वे सफल रहे हैं।

अजय मंडावी के प्रमुख योगदान को हम इन सोपानों में देख सकते है:-

1 वंदे मातरम

18 जनवरी 2018 का दिन कांकेर जेल के लिए एक ऐतिहासिक दिन के रूप में दर्ज हुआ। यह अवसर जेल में कैद बिंदियों का हिंसा और आपराधिक माहौल से इतर सांस्कृतिक पक्ष का एक सशक्त हस्ताक्षर करने का था। कांकेर का जिला जेल, पूरे विश्व में अपनी तरह का पहला जेल है जिसके नाम से गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड है।

“अबकी बार लौटा तो मनुष्यतर लौटूंगा “- कुंवर नारायण

बिल्कुल इसी तर्ज पर अजय मंडावी के मार्गदर्शन में कुल नौ बंदियों ने दिन-रात मेहनत करते हुए 20 फीट चौड़ा, 40 फीट लंबी लकड़ी की तख्ती पर वन्दे मातरम राष्ट्रीय गीत को काष्ठशिल्प के रूप में उकेर दिया ।

18 तारीख की सुबह अपनी नई किरण, नये उजास लेकर आया,जब कंकर जेल के ही 40 कंबलों के उपर अजय मंडावी की टीम ने अपनी कला का प्रदर्शन किया । इस शिल्प को ऐतिहासिक अनुकृति (कल्ट) का दर्जा देते हुए गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड से नवाजा गया।

2- शांता आर्टस स्वयं सहायता समूह

मुख्यतः शांता आर्टस कला समूह, ऐसे बंदी समूह का प्रतिष्ठित नाम है, जिसके अधिकांश सदस्य, अलग अलग समय में नक्सली वारदात से छूटकर कला के माध्यम से समाज की मुख्य धारा में जुड़ गये थे। यह एक ऐसा सेतु है, जो कैदियों के पुर्नवास के लिए, नैतिक विधि से आर्थिक उपार्जन करने के लिए बनाया गया है। इसके प्रशिक्षक और मार्गदर्शक अजय मंडावी रहे, जो कैदियों को कला की शिक्षा देने के साथ ही, उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से भी समाज में एक बेहतर मनुष्य के रूप में गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए तैयार करते हैं ।इतना ही नहीं, वे इन कैदियों को बेहतर सामाजिक वातावरण भी रचते है।


Smi Ta

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