मिट्टी के घर

शताली शेडमाके

गांव में आजकल मिट्टी के घरों की जगह ईट-सिमेंट से बने पक्के घर ले रहे हैं. आधुनिकीकरण के साथ यह जरुरी भी हैं. पक्का घर एक बार में बन जाता हैं मिट्टी के घरों को बनाने के बाद भी उसकी देखरेख करनी पडती हैं. हफ्ते में २-३ बार लिपना पडता हैं, घर की छत पर लगे खपरैल एक समय के बाद जमाने पडते हैं… मयान, बीम की लकडीयों पर दीमक तो नहीं चढ गई इसका ध्यान रखना पडता हैं… इतनी जद्दोजहद के बाद खडा यह घर किसी अजूबे से कम नहीं. हर घर की अपनी एक अलग खुबसुरती होती हैं… कई घर काली, पिली, सफेद मिट्टी से लिपे जाते हैं जो इनकी खुबसुरती में चार चांद लगाते हैं… हर घर का दरवाजा और उसकी कुंडी से लेकर चौखट तक सबकुछ बेहद सुंदर होता है.

बरसात का मौसम शुरु होने से पहले गांव मे मिट्टी के घरों की छत पर लगे खपरेल जमाने का काम किया जाता है। कुछ घरों की छत घास की बनी होती है, तो कुछ घरों पर पैरा बिछा दिया जाता हैं। कुछ घरों की छत बनाते वक्त पहले बांस की कमचीयों को बिछाकर उसके उपर घास की परत डाली जाती है। उस परत पर पन्नी डालते है जो मार्केट मे घर पर बिछाने के लिए मिल जाती हैं। उस पन्नी के उपर फिर पैरा बिछाते है और उसके उपर कुछ लकडीयां डाली जाती है। अगले साल पैरा की परत पर फिरसे घास और पैरा डाला जाएगा यह प्रक्रिया 2-3 साल करने के बाद छत मजबूत हो जाती है। पानी टपकना तो बंद हो ही जाता है साथ ही छत पर कुछ घास उग जाने के कारण 5-6 साल फुरसत हो जाती है।

इन घरों में आजकल इस्तमाल होनेवाली पन्नी को छोडकर दुसरी और कोई ऐसी वस्तू इस्तमाल नहीं की जाती जिससे पर्यावरण को हानी पहुंचे। यह घर मजबूत है। गर्मीयों में शितलता देते है तो थंड में कंपकंपाती सर्दी से बचाते हैं। इन घरों की तुलना ईंट सिमेंट वाले घरों से हो ही नहीं सकती। जो बात इन घरों में है वो पक्के घरों में कहा…

आजकल मैं जहा भी जाती हूं मिट्टी का घर देखते ही तस्वीर ले लेती हूं क्या पता कुछ दिन बाद इन पुराने मिट्टी के घरों की जगह कांक्रीटवाले घर ले ले… इन घरों को भविष्य में गांव में देख पाना संभव होगा कि नहीं पता नहीं पर घर बनाने की पुरखों की तकनिक को जरुर संजोना चाहिए… अन्यथा यह भी कुछ सालों बाद सिर्फ म्युझियम में ही दिखाई देंगे….

शताली शेडमाके

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