एक पत्रकार मित्र को संजय पराते की खुली चिट्ठी

आदरणीय पत्रकार मित्र,
(पाठकों से नाम न पूछने की अनुमति के साथ)

विपक्ष का काम है सरकार की कारगुजारियों पर नजर रखना और उसकी करतूतों की निंदा करना। उसका काम है लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए होने वाले हर संघर्ष का समर्थन करना। वामपंथी ताकतें यह काम बखूबी कर रही है और पूरे हौसले के साथ कर रही है।

कांग्रेसी सरकार चला रहे हैं। दो दिनों के बाद वे कड़ी निंदा कर रहे हैं। वे पुलिस प्रशासन से कड़ी कार्यवाही की अपेक्षा कर रहे हैं। लेकिन कार्यवाही कर नहीं रहे हैं। जनता देख रही है कि कांग्रेस और उसकी सरकार केवल हमलावरों का बचाव कर रही है।

वाम पर भाजपा के साथ खड़े होने का बेहूदा आरोप लगाकर सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता मित्र! भाजपा की जुबान दो दिनों के बाद खुली है, तो खोई हुई जमीन को तलाशने की कोशिश में। यह मौका उसे कांग्रेस ने ही दिया है अपनी अकर्मण्यता से। हमलावरों को थाने से मुचलके पर छोड़ देना कोई कार्यवाही नहीं होती। आप बता सकते हैं कि किसी प्रभावशाली राजनैतिक नेता के साथ इसी तरह की घटना होती, तो क्या बस यही और इतनी ही कार्यवाही होती? क्या आम नागरिकों और दबंगों के लिए इस देश में अलग-अलग कानून चलना चाहिए? तत्काल अपने चहेतों हमलावर ठेकेदारों और भ्रष्ट अधिकारियों पर नजर आने वाली कार्यवाही सरकार करती, तो न इतनी कांग्रेस की भद्द पिटती, न भाजपा को कोई मौका मिलता।

कांकेर में पत्रकार धरने में बैठे है। भाजपा को मौका मिला उन्हें धरना स्थल पर जाकर समर्थन देने का, तो यह मौका कांग्रेस ने ही उसे दिया है। लेकिन सरकार में होते हुए भी कड़ी निंदा और सख्त कार्यवाही की गुहार करने वाली कांग्रेस पार्टी पत्रकारों के समर्थन में उनके पंडाल में क्यों नहीं पहुंची? पार्टी के रूप में न सही, व्यक्तिगत रूप से भी वहां पहुंचने के लिए किसी कांग्रेसी के पैरों में किसने बेड़ियां बांध कर रखी थी? शायद इसे ही कहते हैं, आत्मा का मरना और आंखों का पानी सूखना!!

अरे भाई, सत्ता में आप हैं। कार्यवाही भाजपा नहीं करेगी। राज्य का काम है नागरिकों के जान-माल की और उसके मौलिक अधिकारों की रक्षा करना। लेकिन जनता देख रही है मित्र कि पत्रकार धरने में बैठे हैं और पुलिस दफ्तर में हमलावरों की चाय-पानी के साथ आवभगत हो रही है। वायरल ऑडियो में हमलावर ठहाके लगाते हुए कह रहे हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। #राजेश_तिवारी भी उनके साथ है। मुख्यमंत्री और उनके सलाहकारों को कुछ शर्म आ रही है? आ रही होती, तो कुछ दिखने वाली, आम नागरिकों को आश्वस्त करने वाली कार्यवाही भी अभी तक जरूर दिख जाती। तो फिर प्रतिष्ठा किसकी गिर रही है — कमल शुक्ला के साथ खड़े माकपा की या हमलावरों का बचाव कर रहे मुख्यमंत्री की??

जो लोग सांप्रदायिकता से लड़ने की दुहाई देते हुए कांग्रेस की काली करतूतों की अनदेखी करने की अपेक्षा कर रहे हैं, असल में वे ही भाजपा को फिर से मजबूत करने का काम कर रहे हैं। सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के बिना नहीं जीती जा सकती। संघी गिरोह आज अपने हर रंग-रूप के साथ जनता के बीच के असंतोष को भुनाने की कोशिश कर रहा है। पत्रकारों और आम नागरिकों के अधिकारों के निर्मम दमन और मानवाधिकारों को अपने पैरों तले कुचलने के अभी-अभी के काले ताजे इतिहास के बाद भी बेशर्मी से पत्रकारों के धरने में भाजपा का जाना इसी का उपक्रम है। लेकिन भाजपा को यह हिम्मत कांग्रेस ही दे रही है, वाम नहीं। आपको तो इस बात के लिए हमारी सराहना करना चाहिए कि एक कमजोर राजनैतिक ताकत होने के बावजूद माकपा ने कमल शुक्ला के ऊपर कायराना हमले के खिलाफ, पत्रकार सुरक्षा कानून के पक्ष में और भ्रष्ट माफिया के साथ राजनैतिक गठजोड़ के खिलाफ आवाज उठाने में कोई देरी नहीं की। इसके बजाय आप कांग्रेसी गुंडों के पक्ष में माकपा और पीयूसीएल की लानत-मलानत पर तुले हैं, तो मैं आपकी इस महान समझ (!) के लिए आपको लानत ही भेज सकता हूं। पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने की ठोस मांग के साथ माकपा के पत्रकारों के आंदोलन का समर्थन करना और अपने काले इतिहास के साथ भाजपा और उसके सांसद का दिखावे के लिए पत्रकारों के धरने में जाना — इन दोनों में यदि वास्तव में आपको अंतर नहीं दिखता, तो आपकी मीडियागिरी को प्रणाम!

मित्र, माकपा और वाम की लाइन स्पष्ट है। भाजपा के साथ उसे खड़े दिखाने की जुर्रत न करें। सांप्रदायिकता के खिलाफ आपकी लड़ाई में ईमानदारी है, तो आम जनता को बताए कि कांग्रेस कैसे #रामवनपथगमन की संघी परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए भाजपा के साथ खड़ी है और भाजपा क्यों आदिवासियों को विस्थापित करने वाली #बोधघाटपरियोजना के लिए कांग्रेस के साथ खड़ी हैं? ये दोनों मुद्दे किसी #कमल_शुक्ला के मामले से बड़े हैं। यहां कांग्रेस-भाजपा दोनों के एकमेक होने से आपको चिंता नहीं होती? मैं जानता हूं, आप इन दोनों मुद्दों पर कांग्रेस के खिलाफ हैं। तब क्या सांप्रदायिकता के खिलाफ आपकी लड़ाई आपके तर्कों के अनुसार ही कमजोर नहीं हो जाती? दरअसल मित्र, जल-जंगल-जमीन-खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की लूट और कार्पोरेटों के मुनाफों को बनाने के लिए दोनों पार्टियां एक हैं और उसमें कोई वैचारिक बाधा नहीं आती। यहीं कारण है कि कल तक भगवा दुपट्टा लपेटने वाले ठेकेदार आज तिरंगा लपेटकर, चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ ताल ठोंकने वाले कथित रूप से तमाम निष्कासित नेता आज कांग्रेस नेताओं के गले का हार बने हुए हैं। ईमानदारी से बताईए, इस तस्वीर को देखकर आपके मन मे कोई ग्लानि नहीं होती? मुझे लगता है, और मैं चाहूंगा कि मेरी ये आशंका सही न हो, कॉर्पोरेट पूंजी के इस खेल में आप कांग्रेस का एक मोहरा बन रहे है। आज आप कमल के मामले में कांग्रेस का पक्ष-पोषण कर रहे हैं, सांप्रदायिकता का डर दिखाकर बाकी मामलों में कल करेंगे। पूरे साहस के साथ यह कहने की मैं हिमाकत कर रहा हूं। जिन बातों के लिए आप कांग्रेस के खिलाफ हैं, उन्हीं के लिए वामपंथ भी कांग्रेस के खिलाफ हों और जिन मुद्दों को आप दबाना चाहे, उस पर वामपंथ आपका साथ दें, ऐसी समझ किसी राजनैतिक रूप से जागरूक, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्षधर, स्वतंत्रचेता किसी पत्रकार की कैसे हो सकती है?

मित्र, बार-बार आप उत्तरप्रदेश को दिखा रहे है और बता रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में यदि पत्रकारीय स्वतंत्रता है, तो केवल कांग्रेस के कारण। लेकिन दो सालों में पत्रकारों पर जो हमले हुए हैं, उनके आंकड़ें देखिए और पिछले 15 सालों के भाजपा राज के औसत आंकड़ों से तुलना कीजिये। कहीं कोई अंतर दिखता है? पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए क्या वास्तव में कांग्रेस ईमानदार दिखती है? भाजपा राज के जाने के बाद हम सब लोगों ने राज्य में जिस तानाशाही राज से मुक्ति और आज़ादी का अहसास किया था, क्या वैसा ही अहसास आज भी जिंदा है? मेरे भाई, लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए सतत संघर्ष करना पड़ता है और यह संघर्ष रोज के जीवन में आने वाले मुद्दों पर लड़ना पड़ता है। संविधान, लोकतंत्र और कानून के शासन को बचाने की लड़ाई, फासीवादी ताकतों के खिलाफ संघर्ष का अभिन्न हिस्सा है और आज की राजनीति का केंद्रीय बिंदु। ये लड़ाई सभी अपनी-अपनी जगह लड़ रहे हैं। उत्तरप्रदेश में सभी पत्रकार मैदान छोड़कर भाग नहीं गए हैं और न ही सब गोदी मीडिया को समर्पित होकर योगी के गोद मे बैठ गए हैं। आप उत्तरप्रदेश में काम करने में अक्षमता और छत्तीसगढ़ में काम करने में सहजता महसूस करते हैं, तो यह आपका अनुभव है और आपका अनुभव सार्वभौमिक अनुभव नहीं बन सकता। छत्तीसगढ़ को क्या उत्तरप्रदेश बनने तक इंतजार किया जाए और लोकतंत्र और कानून के शासन की रक्षा के संघर्ष को स्थगित कर दिया जाए, जब तक कि आपको यह महसूस न हो कि छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है?

मित्र, इसीलिए मैं कह रहा हूं कि सांप्रदायिकता के साथ सतत और ईमानदारी के साथ लड़ने वाली ताकतों को कलंकित करने का काम मत कीजिये। इससे आपकी ही प्रतिष्ठा गिरेगी। संघर्षशील ताकतों की नजर में संदेहास्पद आप ही बनेंगे। कमल शुक्ला सही है और मैं कांग्रेस के साथ हूं, और जो कमल शुक्ला और पत्रकारों की सही लड़ाई के साथ हैं, वे भाजपा से मिले हुए हैं — ऐसी बातें आपको ही मुबारक हो और आम जनता इन तर्कों के पीछे छुपी हकीकत को भी पहचान रही है।

फिर से कह रहा हूं। कांग्रेस को अपना पक्ष रखने का काम कांग्रेस और उनके प्रवक्ताओं, सलाहकारों के माध्यम से ही करने दीजिए। एक पत्रकार के रूप में भाजपा के फिर से लौटने का डर दिखाकर कांग्रेस का पक्ष-पोषण करने का काम आप मत कीजिये। भाजपा का फिर से लौटना या न लौटना – केवल आपके और हमारे बस की बात नहीं है। यह इस प्रदेश की जनता तय करेगी अपने अनुभवों से। उनके अनुभव बनेंगे कांग्रेस के कर्मों और कुकर्मों से, और हम जैसे तुच्छ लोगों द्वारा जनता की वैकल्पिक राजनैतिक चेतना के निर्माण के संगठित प्रयासों से।

यह वही कांग्रेस है, जिसने इमरजेंसी लगाकर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का दमन किया था। इस कांग्रेस के भ्रष्टाचारियों और कॉरपोरेटों के साथ नाभि-नाल संबंध जगजाहिर है। इसलिए मित्र, इस मामले में कांग्रेस के साथ नहीं, पत्रकारों और नागरिकों के साथ खड़े होइए। इस मामले ने फिर दिखा दिया है कि भाजपा राज के जाने के बावजूद पत्रकार सुरक्षा कानून की कितनी जरूरत इस प्रदेश को है। अपने चुनावी वादे से फिरती कांग्रेस को इसके लिए मजबूर कीजिये, ताकि आम जनता की, जन मुद्दों पर आवाज़ और मजबूती से, निर्भीकतापूर्वक पत्रकार साथी उठा सके। छत्तीसगढ़ को उत्तरप्रदेश बनने से रोकने की किसी भी प्रक्रिया में पत्रकार साथियों को और ज्यादा एकजुट होने की जरूरत है और इस काम में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका होने पर मैं आपकी सराहना करूंगा। वैसे मेरी सराहना के मोहताज आप नहीं है, यह मैं जानता हूं।

लोगों की लोकतांत्रिक चेतना मजबूत होगी, जन आंदोलन तेज होंगे, तो वह अपनी सही राजनैतिक चेतना के साथ #कई_भाजपाओं से निपट लेगी और सत्ताधारी भाजपा को भी उसकी औकात दिखा देगी। आम जनता और उसके अधिकार सुरक्षित है, तो देश है और प्रदेश सुरक्षित है। हम लोग इसी प्रक्रिया को मजबूत करने में लगे हैं और इसीलिए कमल शुक्ल के मामले में उनके पक्ष में खड़े होने में हमें कोई हिचक नहीं है। अब यह आपका निजी मामला और स्वतंत्र विवेक है कि आप किसका पक्ष-पोषण करते हैं।

इस चिट्ठी को आप कमेंट में दिए गए इस लिंक से जोड़कर पढियेगा, जो पहले ही आप तक पहुंच चुका है।
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=3266404623428973&id=100001784030842

थोड़ा लिखा है भाई, बहुत-बहुत समझना मित्र!! वामपंथ को गरियाकर मुझे भी सार्वजनिक रूप से कुछ कहने का मौका देने के लिए आपको साभार धन्यवाद!!

आपका मित्र,
Sanjay

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