सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों को एक भारतीय का खुला पत्र.

[ लंदन में रहने वाले पत्रकार आशीष रे ने प्रशांत भूषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजों को एक खुला पत्र लिखा है। पूरे पत्र का हिन्दी अनुवाद पेश है। अनुवाद और पोस्ट संजय कुमार सिंह जी द्वारा किया गया है। ]

माननीय न्यायमूर्तिगण,

मैं नहीं जानता कि भारत के 135 करोड़ से ज्यादा लोगों में कितने मेरे जैसे हैं क्योंकि मेरा जन्म विएना में हुआ था, मैंने अपना दो तिहाई जीवन लंदन में गुजारा है पर हमेशा ही भारत को अपना देश माना है।

संभवतः इससे भारत के प्रति मेरी निष्ठा और विनम्र प्रतिबद्धता का पता चलता है। इस बात का मतलब नहीं है कि भारत ने इसे नहीं माना है क्योंकि मेरे देश के प्रति मेरा सम्मान किसी तारीफ के लिए नहीं है।

हालांकि, भारत अपने तय या निर्धारित मार्ग से भटकता है तो मुझे चिन्ता होती है। जब चरण सिंह प्रधानमंत्री बने और संसद में अपना बहुमत साबित नहीं किया तो मैं परेशान हुआ था। और जब नरेन्द्र मोदी निर्वाचित हुए तब भी मैं बहुत परेशान था। दरअसल इस मामले में मुझे जिस बात का डर था वह सच हो ही गया है।

कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामले भारत में रोज दर्ज किए जा रहे हैं। भगवान जाने मौत के आंकड़े कहां पहुंचेंगे। इसके लिए अवैज्ञानिक प्रतिक्रिया जिम्मेदर है।

औपचारिक क्षेत्र में कम से कम 12 करोड़ और संगठित क्षेत्र में दो करोड़ लोग बेरोजगार हैं। अगर इन लोगों की कमाई से परिवार का खर्च चलता है तो इसका मतलब हुआ 70 करोड़ भारतीय गंभीर मुश्किल में हैं। इस संकट का कारण यह है कि गुजरे छह साल के ज्यादातर हिस्सों में भारतीय अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे खराब होती गई है। संकेतों के बावजूद कोई भी प्रोत्साहन जिसे प्रोत्साहन कहा जा सके, नहीं पेश किया जा रहा है। भारत दिवालिया हो चुका है। इसकी संप्रभु रेटिंग शून्य या बेकार से ठीक ऊपर है।

तमाम विश्वसनीय रपटों से पता चलता है कि चीनी सैनिक अभी भी लद्दाख में हमारे सीमा क्षेत्र में हैं। इससे गुजरे छह वर्षों में हमारी विदेश नीति की संपूर्ण नाकामी का पता चलता है जिससे नेपाल के साथ भारत के खास, ऐतिहासिक और विशेष संबंध भी चौपट हो चुके हैं। दूसरे देशों के संबंधों की क्या बात करूं। भारत की स्थिति लगभग ऐसी है कि यह पड़ोसियों में किसी भरोसेमंद विदेशी सहयोगी के बिना है। इसका सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्ता और जरूरत पड़ने पर परंपरागत मित्र की तरह व्यवहार करने वाला रूस तटस्थ है।

कश्मीर में कश्मीरी भारतीय नागरिक हैं पर भारत सरकार ने उनके मानवाधिकारों का सबसे बड़ा और खुला उल्लंघन कर रखा है। अर्थव्यवस्था की जो बर्बादी हुई है उसकी तो गणना भी नहीं की जा सकती है। घाटी में जिस तरह लोगों को अलग-थलग कर दिया गया है वैसा पहले कभी नहीं हुआ।

उपरोक्त सभी मामलों में भारत की सर्वोच्च अदालत या तो आश्चर्जनक रूप से शांत रही है या फिर इस लायक नहीं माना है कि इस पर सुनवाई कर शीघ्रता से फैसला दिया जाए।

पहली नजर में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 का उल्लंघन लगने वाले मामले में फ्रांस से राफेल विमान की खरीद के पिछले सौदे को रद्द कर नया सौदा करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन चीट दे दी।

ऐसे समय में आप अधिवक्ता प्रशांत भूषण के ट्वीट से ऐसे नाराज हो गए हैं जैसे आपने कार्रवाई नहीं की होती तो आसमान गिर जाता। जो स्थिति है उसमें उनकी नाराजगी क्या जायज नहीं है?

ब्रिटेन में कभी-कभी सुप्रीम कोर्ट के आचरण पर सबसे दोषपूर्ण और घटिया प्रतिक्रिया सामने आती है और टैबलॉयड प्रेस में इसका आक्रामक शीर्षक भी शामिल होता है। जजों को भी ब्रिटिश विरोधी कहा गया है। हालांकि, एक बार भी अदलत ने ऐसी बकवास को महत्व देने की परवाह नहीं की है।

सही सोच वाले अच्छे काम से मतलब रखने वाले भारतीय सुप्रीम कोर्ट से भलाई करने वाले मध्यस्थ की अपेक्षा करते हैं। लोग यही समझते हैं कि जब बाकी सब नाकाम हो जाएंगे तो सुप्रीम कोर्ट हमें बचा लेगी।

ऐसे लोग आज क्या सोच रहे हैं। अगर भारत के लोगों का सुप्रीम कोर्ट पर से विश्वास उठ गया तो भारत में कुछ और बुरी बातें हो सकती हैं।

इसलिए मैं आप सबसे अपील करता हूं। मेरी उम्र आप सब से ज्यादा है।कृपया मेरी बात पर ध्यान दीजिए। मैं इतना सौभाग्यशाली हूं कि मेरे जीवन में अच्छे और उपकार करने वाले कई अनुभव हुए हैं।

भारत सर्वोपरि है। मैं आप सबसे अपील करता हूं कि भारत को निराश न करें।
उम्मीद करता हूं कि आप इस हस्तक्षेप के लिए माफ करेंगे।

आशीष रे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!