आदिवासी सरपंच को सरकार ने क्यों थमाया एके 47 ?

सलवा जुडूम आन्दोलन को छत्तीसगढ़ में नेताओं ने अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति और राजनीतिक लाभ के लिए वीभत्स बना दिया| हजारों आदिवासी इस खुनी आन्दोलन की भेंट चढ़ गए | सरकारी मशीनरी ने आदिवासियों के खिलाफ आदिवासियों का प्रयोग कर युद्ध का शक्ल दे दिया | जिसके कारण आदिवासी अपने ही रिश्तेदारों के खून के प्यासे हो गए | आदिवासियों के पास युद्ध में शामिल होने के अलावा दूसरा विकल्प यह था कि उसे बस्तर छोड़कर अन्यत्र जाना पड़े | सलवाजुडूम के प्रारंभिक काल में हजारों आदिवासी अविभाजित आँध्रप्रदेश में पलायन कर गए |

जो आदिवासी नक्सलियों की कथित जनताना सरकार की तरफ से लड़े, उन्हें युद्ध के लिए तमाम चीजें खुद को जुटाने थे | दूसरी तरफ जो लोकतांत्रिक सरकार की तरफ से युद्ध में शामिल हुए उन्हें सरकार ने एसपीओ नाम देकर उनके रुतबे के हिसाब से हथियार थमाये | आदिवासियों के इस संघर्ष का परिणाम इतना भयावह हैं जिसे कोई भी लेखक या पत्रकार अपने कलम से कभी भी सम्पूर्ण वर्णन नहीं सकता | बस्तर के अन्दुरुनी इलाकों में जाने पर आज भी लोग गुम हुए अपनों की कहानी सुनाते हैं | कई कहानियों के राज उस परिवार के समूल नष्ट हो जाने के साथ ही दफ़न हो गए |
सलवा जुडूम को दुबारा प्रारंभ करने की पहली कोशिश फरसपाल में “विकास संघर्ष समिति” के नाम से शुरू हुई | उसके बाद से विभिन्न नामों से कई स्वरुप सामने आये | छत्तीसगढ़ सरकार जिसका प्रयोग फिलहाल पुलिस के प्रचार में इस्तेमाल कर रही है | इन सबके बाद भी सलवा जुडूम का वह रूप सरकार नहीं ला सकती है क्योंकि उन्हें चिन्ना गोटा जैसे आदिवासी नेता दुबारा नहीं मिलेंगे | जिनके बल पर किसी भी आन्दोलन को कोई भी दिशा दी जा सकती हो |

बीजापुर जिले के फरसेगढ़ में अधूरा चिन्ना गोटा का मकान
बीजापुर जिले के फरसेगढ़ में अधूरा चिन्ना गोटा का मकान

अधिकाँश लोग आज भी चिन्ना गोटा जैसी शख्सियत के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं | सलवा-जुडूम आन्दोलन को मूर्त रूप देने में दो नाम सबसे अग्रणी हैं | जिसमें मधुकर राव और चिन्ना गोटा का नाम सबसे पहले आता है | चिन्ना गोटा की शख्सियत ऐसी थी कि कोई भी उसे पहली नजर में फौजी मान लें | छत्तीसगढ़ सरकार ने सरपंच चिन्ना गोटा को उनकी शख्सियत के मुताबिक एके 47 हथियार सौंप दिए थे | सरकार से मिले एके 47 की बदौलत चिन्ना नक्सलियों का काल बन गए थे | फरसेगढ़ के ग्रामीण बताते हैं “चिन्ना गोटा रोज नक्सलियों को मारकर कंधे पर टांगकर लेकर आते थे |”

बात 2005 की है जब करकेली से यह आंदोलन शुरू हुआ तब किसे पता था यह आदिवासियों के रक्तपात के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रायोजित कर इसे राजनीतिक दिशा दे दिया जायेगा | बताया जाता है कि सबसे पहले बीजापुर के करकेली व अंबेली गांव से सलवा-जुडूम की शुरूआत हुई। माओवादियों का विरोध करने वाले 05 लोगों की हत्या के बाद एकाएक जनाक्रोश बढ़ा | चिन्ना गोटा उस समय फरसेगढ़ के सरपंच हुआ करते थे। करकेली में चिन्ना गोटा और मधुकर राव के नेतृत्व में बैठक हुई | इसके बाद से माओवादियों के खिलाफ दक्षिण बस्तर में बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ| सलवाजुडूम आन्दोलन आगे चलकर छत्तीसगढ़ सरकार के संरक्षण में चला गया | जिसे बाद में महेंद्र कर्मा के नेतृत्व में चलाया गया | इस दौरान जुडूम नेता चिन्ना गोटा का माओवादियों ने दो बार घर फूँक दिया |

सलवा जुडूम की दिशा आदिवासियों के घर जलाने और एक दुसरे से दुश्मनी भुनाने की तरफ बढ़ी | जिसे छत्तीसगढ़ सरकार ने हथियार दिए उसने अपने गाँव में दुश्मनी भुनाई | वहीँ जिसे नक्सलियों ने हथियार दिए उसने चुन चुनकर एसपीओ की हत्याएँ करनी शुरू कर दी | एक आदिवासी दुसरे आदिवासी का खून का प्यासा हो गया | हजारों आदिवासी पलायन कर गए कईयों को जिन्दा जमीन में गाड़ दिया गया | जुडूम आन्दोलन के कई राज आदिवासियों के हत्याओं के बाद दफन हो गए |
आदिवासी महासभा ने सलवा जुडूम के प्रतिबन्ध को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला पहुँचाया। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में सलवाजुडूम को बंद कर एसपीओ से हथियार वापस लेने का आदेश दिया | सुप्रीमकोर्ट के आदेश से सलवा-जुडूम के बंद होने के बाद जुडूम नेता बिना सुरक्षा के कहीं नहीं निकलते थे किन्तु माओवादियों के निशाने पर सबसे ज्यादा यही रहते थे | सरकार के द्वारा समुचित सुरक्षा नहीं दिए जाने के कारण अब तक अधिकाँश जुडूम नेताओं की माओवादियों ने हत्या कर दी है | चिन्ना गोटा की भी 12 सितंबर 2012 को माओवादियों ने हत्या कर दी। इसके बाद सरकार ने मुआवजा देकर खानापूर्ति की और वक्त के साथ चिन्ना गोटा को भुला दिया गया। जबकि मधुकर राव कुटरू में संगीन के साए में रहते हैं |

चिन्ना गोटा की पत्नी कमला अपने पति की मौत के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को दोषी ठहराती हैं | उसके मुताबिक़ सरकार ने उचित सुरक्षा नहीं दी जिसके कारण उन्हें माओवादीयों ने मार डाला | चिन्ना गोटा का परिवार फरसेगढ़ में ही रहता है। चिन्ना गोटा की पत्नी को चार साल बाद भी विधवा पेंशन और इंदिरा आवास जैसी योजनाओं का लाभ नहीं मिला है |

2 thoughts on “आदिवासी सरपंच को सरकार ने क्यों थमाया एके 47 ?

  • October 14, 2016 at 3:00 am
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    शानदार तथ्य परख लेख बेहतरीन रिपोर्टिंग

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  • October 14, 2016 at 1:18 pm
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    बहुत अच्छी पहल है आप कार्य सराहनीय है , आप के उत्साह ऐसे ही रहे , आप अपना कलम चलाते रहिये हम आप के साथ है

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