तेलंगाना में फंसे 1300 मजदूरों की सुरक्षित वापसी का प्रबंध करने की मांग, अधिकांश बस्तर के आदिवासी, झेल रहे नागरिकहीनता की स्थिति – माकपा

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने तेलंगाना राज्य के 15 जिलों में फंसे छत्तीसगढ़ के 489 परिवारों के 1300 मजदूरों की सुरक्षित वापसी का प्रबंध करने की मांग आज सरकार से की है. माकपा ने इन प्रवासी मजदूरों के नाम, लोकेशन और मोबाइल नंबर सहित पूरी सूची नोडल अधिकारी अन्बलगन पी को व्हाट्सएप तथा मुख्यमंत्री को मेल के जरिये भेजी है. इनमें अधिकांश बस्तर के आदिवासी हैं.

आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने आरोप लगाया है कि प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित वापसी के लिए जिम्मेदार बनाए गए सभी नोडल अधिकारियों ने अपने फोन बंद करके रखे हैं या उठा नहीं रहे हैं. पिछले दो दिनों से लगातार प्रयास के बाद भी संपर्क न होने पर उन्होंने तेलंगाना में फंसे सभी मजदूरों की सूची व्हाट्सएप के जरिये नोडल अधिकारी अन्बलगन पी को भिजवा दी है. इन फंसे मजदूरों में 89 बच्चे औए 128 महिलाएं भी शामिल हैं और अधिकांश बस्तर के आदिवासी हैं. लेकिन इसका भी कोई प्रत्युत्तर नहीं मिलने के बाद इस सूची को संलग्न करके उन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर पूछा है कि ऐसे अधिकारियों को जिम्मेदार बनाने और उनके नंबरों को सार्वजनिक करने का क्या तुक है, जो जनता के साथ संबंध ही नहीं रखना चाहते. जनता के दुःख-दर्दों के प्रति संवेदनशील अधिकारियों को जिम्मेदार बनाए जाने की मांग के साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री से इन मजदूरों की वापसी के लिए व्यक्तिगत स्तर पर पहलकदमी करने का अनुरोध किया है. प्रेस को जारी बयान में उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र भी संलग्न किया है.

माकपा नेता ने कहा कि केंद्र और राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों के साथ फुटबॉल की तरह खेल रही हैं और ऐसा लगता है कि वे न तो इस देश के नागरिक हैं और न किसी राज्य के निवासी. इस वैश्विक महामारी में उनकी दयनीय स्थिति को एक भारतीय नागरिक की पीड़ा मानने से केंद्र सरकार इंकार कर रही है और राज्य सरकारें भी उनकी सुरक्षित वापसी की घोषणा के अलावा जमीनी स्तर पर कोई कार्य नहीं कर रही हैं. नतीजन, प्रवासी मजदूर अपने ही देश में नागरिकहीनता की स्थिति को झेल रहे हैं. पराते ने कहा कि देश में एक करोड़ से ज्यादा प्रवासी मजदूर हैं. भारी प्रतिबंधों के साथ जिस तरह सीमित संख्या में ट्रेनें चलाई जा रही हैं, उससे साल भर में भी मजदूर अपने गांवों में नहीं पहुंच पायेंगे.

संजय पराते

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!