बस्तर के प्रवासी मजदूरों के बारे में माकपा ने लिखा छग, आंध्र और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों को पत्र

प्रवासी मजदूरों पर सिर्फ 50 लाख, तो अमीरों के बच्चों पर 2 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का लगाया आरोप

बस्तर के प्रवासी मजदूरों की दयनीय दशा का उल्लेख करते हुए उन्हें जरूरी सरकारी सहायता पहुंचाने तथा उनकी सुरक्षित घर वापसी को सुनिश्चित करने की मांग करते हुए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित आंध्रप्रदेश तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है तथा इस संबंध में तत्काल आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है। पार्टी ने इन मजदूरों को संबंधित मिर्ची खेत मालिकों द्वारा उनकी मजदूरी का पूरा भुगतान होना सुनिश्चित करने का भी इन मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया है।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने बताया कि बस्तर से लगभग 10,000 मजदूर आंध्र प्रदेश के ईस्ट गोदावरी जिले में तथा तेलंगाना के मुलुग व भद्राद्री कोठागुडेम जिलों में मिर्ची के खेतों में काम करने के लिए जाते हैं। इन मजदूरों में बहुसंख्यक आदिवासी तथा अधिकांश नाबालिग बच्चे व महिलाएं होती है। कोरोना संकट के कारण लॉक डाउन होने से इनकी आजीविका खत्म हो गई है तथा मिर्ची खेतों के मालिकों ने और उन्हें लेकर गए ठेकेदारों ने उन्हें आश्रय देना बंद कर दिया है। इन परिस्थितियों में हजारों मजदूरों को घर वापसी के लिए जंगल का रास्ता चुनना पड़ा और जमालो मड़कामी जैसी बच्ची की मौत की हृदय विदारक घटना सामने आई है।

माकपा नेता ने अपने पत्र में कहा है कि आज भी इन दोनों राज्यों में हजारों मजदूर फंसे हुए हैं, जिन तक न तो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सरकार की और न ही छत्तीसगढ़ सरकार की बहुप्रचारित सहायता पहुंच रही है। सहायता व राहत के अभाव में ये मजदूर बिना आश्रय भुखमरी के शिकार हो रहे हैं और जंगलों में या सड़क किनारे पड़े हुए हैं। माकपा नेता ने कहा कि छत्तीसगढ़ के जिन हजारों प्रवासी मजदूरों को दूसरे राज्यों में आश्रय देने, उनका भरण-पोषण करने तथा उन्हें आर्थिक मदद देने का दावा छत्तीसगढ़ सरकार कर रही है, ऐसी सहायता का एकांश भी बस्तर के इन प्रवासी आदिवासी मजदूरों तक नहीं पहुंचा है।

उन्होंने तीनों सरकारों से आग्रह किया है कि बस्तर के ऐसे मजदूरों को चिन्हित कर उनके भरण-पोषण और आश्रय की व्यवस्था की जाए तथा उनकी सुरक्षित घर वापसी के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। उन्होंने कहा कि जो मजदूर अपने गांव में वापस लौट कर आ चुके हैं, उन्हें भी प्रवासी मजदूर के रूप में आर्थिक मदद दी जाए। उन्होंने कहा कि यह देखना सरकार का काम है कि खेत मालिकों द्वारा उन्हें उनकी मजदूरी का पूरा-पूरा भुगतान हो।

अपने मीडिया बयान में सरकार के आंकड़ों के हवाले से उन्होंने कहा कि राज्य के 108315 प्रवासी मजदूरों में से केवल 13613 मजदूरों (कुल प्रवासी मजदूरों का 12.56%) को ही राज्य सरकार की कुछ सहायता पहुंच पाई है, जबकि पूरे बस्तर संभाग में सुकमा जिले के केवल दो मजदूरों को कुल 1000 रुपये की ही सहायता मिली है। उन्होंने कहा कि दक्षिण बस्तर के 5 जिलों से 10000 से अधिक मजदूर दिसंबर-फरवरी के मध्य आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में मिर्ची की खेती में मजदूरी करने जाते हैं, जबकि जमालो मड़कामी की मौत के बाद भी इन मजदूरों को चिन्हित कर उन्हें मदद देने की जरूरत राज्य सरकार को महसूस नहीं हुई है। यह सरकार और प्रशासन का आदिवासी विरोधी और संवेदनहीन रवैया है। जिन 13613 मजदूरों को सरकारी सहायता मिली है, उनमें से 12000 से ज्यादा लोग केवल चार जिलों – मुंगेली, बेमेतरा, दुर्ग और कोरिया जिले के ही है। अतः उन्होंने सभी प्रवासी मजदूरों को चिन्हित कर उन तक तत्काल घोषित आर्थिक सहायता पहुंचाने की मांग की है।

उन्होंने आरोप लगाया कि जहां एक ओर एक लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों पर अभी तक सिर्फ 50.37 लाख रुपये ही खर्च किये गए हैं, वहीं अमीरों, राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और ठेकेदारों के 2252 बच्चों को कोटा से लाने के लिए दो करोड़ रुपयों से अधिक खर्च किये गए हैं। यह भेदभाव ही यह दिखाने के लिए पर्याप्त है कि कोरोना महामारी में भी इस सरकार को केवल अमीरों की ही चिंता है और वह वर्गीय पक्षधरता से ही काम कर रही है। सरकार का ऐसा रवैया कोरोना महामारी से निपटने में मददगार साबित नहीं होगा।

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