मगरमच्छ कौन ?(लघुकथा)

सपुरण कुलदीप

यह कहानी आज से लगभग 30-35 साल पुरानी है । छत्तीसगढ़ के एक गाँव में एक बनियाँ अपनी रोजी-रोटी की तलाश में आया । उसके पास कुछ भी जमा पूंजी नहीं थी किन्तु व्यापार उसके खून में तो था ही ,उसने गाँव के एक दो कद्दावर लोंगो से मेलजोल बढाकर किसी तरह से रहने लगा । किराए के मकान में छोटी सी किराने की दूकान खोल ली । किराने की दूकान के साथ ही कबाड़, कोयला की हेराफरी करना भी शुरू कर दिया ,इस धंधे में गाँव के बेरोजगार नौजवानों को भी शामिल कर लिया । अब उसके पास छोटे-बड़े अधिकारी ,पुलिस भी आने जाने लगे सभी स्तर पर उसने अच्छे सबंध बना लिए थे । किराए के मकान पर भी उसने कब्जा कर लिया । गाहे-बेगाहे लोंगो को जरुरत पड़ने पर मदद भी कर दिया करता । किसी तरह की दिक्कत या मजबूरी हो जाने पर लोग उसी के पास मदद मांगने पहुंच जाते और मदद के बदले वह लोंगो से रूपये जमीन आदि लेकर काम करा देता । अब वह बनियाँ सेठजी हो गया था । गाँव की पंचायत में भी उसकी ही राय ली जाने लगी थी । गाँव में जितने भी विकास के कार्य होते थे सेठजी ही देखते थे । गाँव की सरकारी राशन की दूकान कई सालों से बंद पड़ी थी इस समस्या को लेकर गाँव का एक नौजवान कुछ और साथियो के साथ तहसीलदार और खाद्य विभाग में अर्जी लेकर गया तो पता चला कि राशन दुकान तो कभी बंद हुयी ही नहीं उसे तो सेठ जी चला रहे है और हर सप्ताह राशन का वितरण हो रहा है । गाँव में आकर उस नौजवान ने गाँव वालों की पंचायत बुलाई और इस बात की जानकारी दी । तब गांववालों ने उस नौजवान को बड़ा बुरा भला कहा । गांववाले उस नौजवान को समझा रहे थे पानी में रहना हे त मगरमच्छ से बैर नई करना चाहिए । अब वह सेठ सारे काला कारोबार छोड़ चुका है कई फैक्ट्री का मालिक है और गाँव के बेरोजगार अब नशा के आदि हो चुके हैं , छोटे मोटे चोरी चपाटी करके अपना परिवार चलाते हैं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!