जैविक उत्पादनों की होगी ब्रांडिंग , छत्तीसगढ़ में खोले जाएंगे वनोपज आधारित उद्योग

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले सप्ताह वन विभाग के कार्यो की विस्तार से समीक्षा की। बैठक में में सीएम के सवालों की बौछार से कई अधिकारी भौचक नजर आए। सीएम बघेल ने अधिकारियों से कहा, कि वनोपजों का उपयोग इस तरह किया जाए, जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिले और वहां के नागरिकों का जीवन उन्नत बन सके, उनके जीवन में बदलाव आये। ऐसे कार्यो से नक्सल जैसी समस्या को दूर करने में भी मदद मिलेगी।

मुख्यमंत्री ने वन विभाग के मैदानी अधिकारियों से पूछा कि वनों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए क्या किया जा रहा है ? अभी तक प्रदेश में वनोपज पर आधारित कितने लघु उद्योग स्थापित किए गए है ? वनोपज पर आधारित कौन-कौन सी औषधियां बनाई जा रही है? कल्लू गोंद, महुआ और चरोटा बीज से क्या-क्या उत्पाद बनाया जा सकता है ? मुख्यमंत्री यहीं नहीं रुके उन्होंने पूछा कि नारायणपुर के समीप आंवला के कितने जंगल हैं और उसमें उत्पादन कितना होता है ? इनके प्रोसेसिंग के लिए कितनी प्राइवेट कंपनियां छत्तीसगढ़ में कार्य कर रही हैं? उन्हें सुविधाएं, जमीन आदि देकर यहां उत्पादन करने के लिए बढ़ावा क्यों नहीं दिया जा रहा है? मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से पूछा कि बस्तर में बड़ी संख्या में उत्पादित होने वाली इमली से क्या-क्या बना सकते हैं, यह बताएं जाने पर कि इसके बीज से स्टार्च भी बनता है। उन्होंने पूछा की इसके लिए छत्तीसगढ़ में प्लांट क्यों नहीं लगाया जा सकता। सीएम ने बस्तर के सभी वनमंडलाधिकारियों को इमली के प्रसंस्करण तथा उपयोगिता को ध्यान रखते हुए एक माह के भीतर इसका प्लॉन बनाने को कहा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हर्रा, बेहड़ा, आंवला, तिखुर, हल्दी जैसे वनों उत्पादों का बड़ी संख्या में नैसर्गिक एवं प्राकृतिक वातावरण में जैविक रूप से उत्पादन होता है। आज जैविक उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ी है और देश के राजधानी दिल्ली सहित अन्य स्थानों में छत्तीसगढ़ में उपलब्ध इन उत्पादों की ब्रांडिंग और मार्केटिंग करने की जरूरत है। सीएम ने इसके अलावा छत्तीसगढ़ में बड़ी तादाद में पाए जाने वाले बांस आधारित उद्योगों की संभावना तलाशने के लिए भी अफसरों से कहा। इसको लेकर उन्होंने मास्टर प्लान तैयार कर 15 दिनों में रिपोर्ट देने के लिए कहा है।

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