छत्तीसगढ़ : बघेल सरकार में भी आदिवासियों की जमीन नियम-कानून ताक पर रखकर छीनी जा रही है

कांकेर 18 अप्रेल 2019। छत्तीसगढ़ के  कांकेर जिले में अंतागढ़ तहसील के ग्राम कलगाँव में 30 से अधिक परिवारों को बेदखली के नोटिस प्राप्त होने पर छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन ने गहरी चिन्ता व्यक्त की है। इसी गाँव की जंगल भूमि को 2017 में छत्तीसगढ़ शासन ने भिलाई इस्पात संयत्र (बीएसपी) को “अदला बदली” की फर्जी और गैर कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत हस्तांतरित किया था, जिस पर तब कांग्रेस पार्टी द्वारा इसी प्रक्रिया को गैर संवैधानिक और पेसा कानून 1996 के सिद्धान्तों के विपरीत बताया गया था, परन्तु आज उसी प्रक्रिया को यह सरकार आगे बढ़ाते हुए उस भूमि पर खेती कर रहे किसानों को बेदखल करने जा रही है।

ज्ञात हो कि इस “अदला बदली” के अन्तर्गत शासन द्वारा भिलाई इस्पात संयत्र (बीएसपी) की स्वामित्व की दुर्ग ज़िले में सामान्य क्षेत्र में भूमि आई आई टी भिलाई के निर्माण हेतु ली गई थी और उसके बदले में बीएसपी को रावघाट खनन परियोजना हेतु पांचवी अनुसूची क्षेत्र के कई गाँवों में ग्राम सभा की आपत्तियों के बावजूद निःशर्त भूमि प्रदान की गई थी ।

ग्राम कलगाँव में इस झुड़पी जंगल की भूमि पर आदिवासी और अन्य समुदायों के किसान कई पीढ़ियों से काबिज हैं, और इसका अन्य ग्रामवासियों द्वारा निस्तार के लिए भी प्रयोग होता है। सन् 2009 से ग्रामवासियों ने वन अधिकार मान्यता के लिए वन अधिकार दावे दर्ज किये हैं, परन्तु आज तक उन्हें इससे सम्बंधित कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई है। ग्रामवासियों के वन अधिकारों को मान्यता देने के बजाय इस भूमि को बीएसपी को आवंटित करने की गैर कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ ग्रामवासियों ने दर्जनों शिकायत, प्रदर्शन एवं पत्राचार किये है। परन्तु इन नोटिसों से स्पष्ट है कि वे आज भी अतिक्रामक ही माने जा रहे हैं, और बीएसपी भूमिस्वामी। चुनाव समाप्त होने के तुरन्त बाद अप्रैल 24 से लेकर अप्रैल 27 तक अंतागढ़ में इन ग्रामीणों की बेदखली पर सुनवाई नियत है।

छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन ने सरकार की दोगली नीतियों की निन्दा करते हुए कहा कि जहाँ एक ओर राष्ट्रीय स्तर पर भूपेश बघेल की सरकार सर्वोच्च न्यायालय के 13 फरवरी के वन अधिकार पत्र के निरस्तीकरण उपरांत बेदखली के आदेश को चुनौती देनी की बात कर रही है, वहाँ दूसरी ओर अपने ही ग्रामों में वन अधिकार मान्यता कानून की अधूरी प्रक्रिया के बावजूद ग्रामवासियों को बेदखल किया जा रहा है। आदिवासियों और ग्रामीणों की बेदखली के लिये यह अभियान जो चुनावी समय पर भी चालू है, चुनाव के पश्चात और भी रफ़्तार पकड़ेगा और न जाने कितने आदीवासी परिवारों को चपेट में लेगा। छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन इस बेदखली की प्रक्रिया का पुरज़ोर विरोध करता है और तत्काल इसे रोकने, गैरकानूनी जमीन अदला बदली प्रक्रिया को निरस्त कर काबिज लोगों के वनाधिकारों को मान्यता देने की मांग करता हैं।

ज्ञात हो कि कलगांव में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा बीएसपी (भिलाई इस्पात सयंत्र) की किसी परियोजना हेतु 17.750 हेक्टेयर जमीन अदला-बदली के नाम पर ले ली गई है। इसका ग्रामीण शुरू से ही विरोध कर रहे हैं। इस जमीन पर गांव वाले कई वर्षों से खेती करते आ रहे हैं और सामूहिक निस्तार की भी जंगल जमीन है।

संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में किसी भी परियोजना हेतु जमीन लेने के पूर्व ग्राम सभा की सहमति अनिवार्य है। इसके साथ ही वन अधिकार मान्यता कनून 2006 की धारा 4 उपधारा 5 एवं केंद्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 30 जुलाई 2009 के आदेश अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसकी काबिज वन भूमि से बेदखल नहीं किया जा सकता जब तक उसके वन अधिकार की मान्यता की प्रक्रिया समाप्त नहीं होगी। उक्त दोनों कानूनों का उल्लंघन कर कलगांव में अदला-बदली के नाम पर जमीन छीनी गई है।

उल्लेखित जमीन पर निर्माण कार्य पर शीघ्र रोक लगाने एवं आदिवासियों की जमीन वापसी की मांग को लेकर प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक गुहार लगाई जा चुकी है। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। अब आलम यह है कि आदिवासी किसानों के आंदोलन को सरकार नक्सल का नाम देने पर तुली हुई है। हालांकि ग्रामीण किसी भी हालत में बीएसपी को जमीन देना नहीं चाह रहे हैं और आगे आंदोलन की बात कह रहे हैं।

आपको बता दें कि कलगांव का अपने आप में पहला मामला है जो किसी परियोजना के लिए कम्पनी द्वारा शहरी क्षेत्र (सामान्य क्षेत्र) में जमीन उपलब्ध करवाई गई और इसके बदले राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित क्षेत्र में जमीन छीन ली गई है। यदि इस प्रक्रिया को कानूनी मान्यता दी जाए तो संविधान की पांचवी अनुसूची से प्रदत्त संरक्षण, पेसा और वन अधिकार कानून एवं भू अर्जन कानून का कोई औचित्य नहीं रहेगा। यह अपने आप में एक उदाहरण है कि आदिवासियों से जमीन छीनने के लिए किस तरह नए नए हथकंडे अपनाए जा रहे हैं।

कलगांव के किसान हृदयराम का कहना है कि यह भूमि बीएसपी को “अदला-बदली” में दी गई है। बीएसपी ने राज्य शासन को दुर्ग जिले में भूमि दी है, जिसके बदले में उन्हें यह भूमि दी जा रही है। यह संलग्नक क्र. 2 के आम उद्घोषणा पत्र में अंकित है। आम किन्तु सामान्य भूमि के बदले में संविधान की पांचवी अनुसूची के अन्तर्गत क्षेत्र की भूमि को देना असंवैधानिक है और अनुच्छेद 244 के सिद्धान्तों के विपरीत है।

इस प्रकार की “अदला-बदली” के लिये कानून में कोई प्रावधान नहीं है। शासन ने इस प्रक्रिया के लिये राजस्व परिपत्र पुस्तक खंड 4- क्र. 3 – कंडिका 20 का उपयोग किया है परन्तु इस कंडिका में केवल कृषि प्रयोजन के लिये शासकीय भूमि को निजी भूमि से अदला बदली में देने का प्रावधान है – और वह भी आस-पास के गाँव में जो कि एक ही जिले में या एक ही संभाग में हो, और जिससे कृषकों की भूमि की चकबन्दी में सहायता मिले। दो विभिन्न संभागों में इस प्रकार की भूमि का औद्योगिक या अन्य प्रयोजन के लिये अदला-बदली का कानून में कोई प्रावधान नहीं है। इस अदला-बदली से ग्रामवासियों को कोई सुविधा या लाभ उप्लब्ध नहीं है और यह हर रूप में असंवैधानिक है। अगर बीएसपी को इस क्षेत्र में अपने प्रयोजन के लिये भूमि की आवश्यकता है तो उसे विधिवत् सरकार को प्रस्ताव देकर, सम्पूर्ण भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में शामिल होना चाहिए, और इस भूमि का क्या उपयोग होगा इसकी जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए ताकि जनता अपने हितों की रक्षा कर सके।

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