नक्सली हिंसा से सवाल


कनक तिवारी

छत्तीसगढ़ सघन नक्सली हिंसा का प्रदेश हो गया है। सरकार के अनुसार ही बस्तर संभाग में एक लाख से अधिक नक्सली हो गए हैं। सरगुजा में भी नक्सली घुसपैठ की स्थितियां रही हैं, यद्यपि वहां स्थिति नियंत्रण में है। संविधान ने आदिवासियों के हितों का संरक्षण करने के लिए विशेष उपबंध किए लेकिन उनको सही ढंग से अमल में नहीं लाया जा सका। स्वयं आदिवासी नेतृत्व में इन उपबंधों को लागू करने के संबंध में हिंसात्मक मतभेद तक उजागर हुए हैं। जिन कानूनों के आधार पर लोकतंत्रीय शासन चल रहा है, वे ज्यादातर उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए हैं। दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, सुखभोग अधिनियम, साक्ष्य अधिनियम, संविदा अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम, व्यवहार प्रक्रिया संहिता, वन अधिनियम, भू अर्जन अधिनियम जैसे कानून 1857 के जनसंग्राम की प्रतिक्रिया के स्वरूप बनाए गए प्रतीत होते हैं। उनका समयानुकूल आधुनिकीकरण नहीं किया गया है। नक्सलवादी खुद को ‘माओवादी‘ कहते हैं। इस शब्द के अनेक फलितार्थ हैं। यदि हिंसा और गुरिल्ला युद्ध के जरिए राजनीतिक सत्ता हथियाने की कोशिश नक्सलवादियों द्वारा की जाती है तो उसका भी राजनीतिक दमन संभव और वांछनीय है। मंत्री लगातार फरमाते हैं कि जब तक माओवादी हथियार नहीं फेंक देते, उनसे बातचीत संभव नहीं है। हथियार नक्सली और सरकारी दोनों हाथों में हैं। नक्सलवाद वामपंथ का सबसे कट्टर और हिंसक धड़ा है। दुनिया में कम्युनिस्ट आंदोलन लातीनी अमेरिकी देशों को छोड़कर पिट गया है। रूस और चीन तक अमेरिका समर्थक हो रहे हैं। नक्सलवाद उनसे भी उसी तरह कट गया है जैसे बच्चा मां की नाल से। सरकारी भ्रष्टाचार के कारण उपजने पर भी वह भ्रष्ट अफसरों और ठेकेदारों पर मेहरबान है। उसे चौथ वसूलने और अय्याशी करने से भी परहेज नहीं है। वह किसी स्वीकार्य राजनीतिक प्रक्रिया का हिस्सेदार समानांतर या विकल्प नहीं बन रहा है। वह निहत्थे, लाचार, नामालूम आदिवासियों को अंकगणित की इकाइयों की तरह इस्तेमाल करता है। वह उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए कोई प्रयोगात्मक मैदानी आर्थिक क्रांति बस्तर में नहीं कर रहा है।

नक्सलवाद आदिवासियों का आर्थिक नुकसान भी कर रहा है। वह तेंदूपत्ता श्रमिकों की सहकारी समितियां बनाने का विरोधी रहा है। वह तेंदूपत्ता व्यापारियों से मजदूरों के लिए ज्यादा पारिश्रमिक दिलाने के दावों से संतुष्ट है। वह स्कूलों के भवन डेटोनेटर लगाकर उड़ा रहा है क्योंकि इनमें पुलिस और अर्धसैनिक बल के सिपाही ठहराए जाते हैं। उस पर आदिवासियों के ही अपहरण, डकैती और हत्या के आरोप भी दर्ज हैं। नक्सलवाद संविधानसम्मत राज्य परिकल्पना को वहशी हिंसा के दम पर तहस नहस करने का दंभ क्यों पालता है? उसे अधुनातन देशी विदेषी हथियार भी अज्ञात स्त्रोतों से मिलते हैं। आतंकवाद और नक्सलवाद हिंसा-पुत्र होने के बावजूद सौतेले भाई हैं, सगे नहीं। देश की सीमाओं पर गुर्राता आतंकवाद संविधान को चुनौती देता है। वह देश के सार्वभौम हिस्से को अलग राष्ट्र में तब्दील होने की हिमायत और हिमाकत करता है। उसे जनसमर्थन प्राप्त नहीं है लेकिन वह अलगाववाद की घुट्टी जाति, धर्म और भूगोल की विसंगतियों के कारण पिलाता रहता है। नक्सलवाद राज्य व्यवस्था की खामियों के सबसे प्रबल और हिंसक जनप्रतिरोध का मुखौटा लगाकर एक राजनीतिक आंदोलन के रूप में इतिहास से अपनी पहचान मांगता है।

अस्पतालों और आदिवासी जीवन को सहायता देने वाले अन्य माध्यमों को नक्सलवादी बरबाद क्यों कर रहे हैं? बस्तर में बार-बार बिजली काटकर उसे अंधेरे में रखने की गैर मानवीय स्थितियां क्यों कायम की जा रही हैं। निर्दोष नागरिकों को मोटर गाड़ियों से उतारकर गोलियों से भूंजना नक्सलवाद का कैसा ककहरा है? यह किसने अधिकार दिया कि नक्सलवादी किसी भी आदिवासी भाई या बहन को खुद पुलिस का मुखबिर घोषित करें और सरेआम उसकी लाश को चौराहे पर लटका दें? गांव के गांव नक्सलवाद के भय के कारण खाली हो रहे हैं। यदि यही हाल कायम रहा तो दुनिया की सबसे समृद्ध आदिवासी संस्कृति और लोककलाओं के क्षरण और विलोप का खतरा बढ़ता जाएगा। प्रचारित तौर पर नक्सली अब भी सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया में बदलाव का हामी है, लेकिन अब वे मूल नक्सलवाद के घटिया संस्करण क्यों लगते हैं? व्यापारियों और उद्योगपतियों से हफ्ता वसूलना, ठेकों में कमीशन खाना और छोटे और मझोले कद के मैदानी सरकारी अफसरों को अपनी हिंसा का शिकार बनाना नक्सलवाद का नया प्रदर्शन है। वह उन आदिवासियों को भी बंधक बनाता है जो उसकी विचारधारा में अज्ञान तक के कारण विश्वास नहीं रखते। वह जिरह कम करता है और जिबह ज्यादा। युवक युवतियां रूमानी उम्र के दोष के कारण उसकी ओर आकर्षित होते हैं। एक तरह की हिंसक संस्कृति घने जंगलों में जड़ जमाती जा रही है। नक्सलवाद के पास अत्याधुनिक हथियार हैं और वह धीरे धीरे अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का बगलगीर भी बनाया जा सकता है।

कनक तिवारी प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता हैं व देश के सुप्रसिद्ध राजनीतिक चिंतक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!